भारतीय किसान मजदुरों के नेता वसंतरावजी नाईक़

भारतीय किसान मजदुरों के नेता वसंतरावजी नाईक़

हजारों सालोंसे नागरी मुलभूत सुविधाओंसे वंचित इतनाही नहीं तो सभी प्रकार की शिक्षा, सत्ता, संपत्ती, शस्त्रसे, अतिदूर, मुलत: घुमन्तू, गरीब, निरक्षर, निराधार, असंघटित, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, राजकीय, सांस्कृतिक सुधारणा और संस्कारों से भी वंचित, पहाडिओं में रहनेवाले पशुपालक, शिकारप्रिय, निसर्ग संपत्तीपर पेट भरनेवाले, चिंतीत अव्यवस्थामे, चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा, समाजमें तेजस्वी सूरज की भांति अष्टपैलू व्यक्तिमत्व, असामान्य व्यक्तिके रुप में, आदरणीय वसंतरावजी नाईक का जन्म 1 जुलै 1913 को गोर समाज के एक किसान परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम फुलसिंग नाईक और दादा का नाम चतुरसिंग नाईक था। माता का नाम हुनकाबाई था। बचपन में वसंतरावजी नाईक को हाजुसिंग नामसे पहचाना जाता था। तहसील पुसद, जिल्हा यवतमाल का गहुली गांव (तांडा) इनका जन्म स्थल है। वसंतरावजी नाईक साहबके जैसा अष्टपैलु, असामान्य रुप में जन्म होना सचमुच एक अद्भूत चमत्कार है। देश का उध्दारकर्ता, पालक, संरक्षक समझनेवाला नेता भविष्य में जन्म लेना केवल स्वप्न नहीं बल्की असंभव घटना है। स्मृतिशेष वसंतरावजी नाईक जैसे हृदय के किसान, मजदुरों के राजा और नेता भूतकाल में केवल राजा बली का गुणगान आज भी किसान ‘इड़ा पिड़ा जावो और बली का राज आओ’ऐसा कहकर करते हैं। महात्मा फुले ने यदि वैदिक संस्कृति के विरोध में क्रांती न की होती तो हमारी आज जैसी हालात न रहती थी। इसी कारण महात्मा फुले को हम राष्ट्रपिता कहने लगे है। वसंतरावजी नाईक भी आज किसान, मजदूरों, अछूतों, आदिवासी और घुमंतूओंके हृदयसम्राट, राजा, भगवान माने जाते है। इसकी साक्ष बीड जिल्हे के तहसील पाथर्डी गांव के आयुष्यमान मंत्री बबनरावजी ढाकणे के स्नेह प्रयास में जिंदी अवस्था में नाईक साहब के खड़े किये पुतले से मिलती है। नाईक साहब मंत्री और मुख्यमंत्री बनने के पहले महाराष्ट्र राज्य की और विशेष तौरपर किसान मजदूरों की, पीछड़े वर्ग के लोगों के बहुत ही बुरे हाल थे। कृषि योग्य हजारो एकड़ जमीन मुठ्ठीभर जमीनदारों, धनपतीओं और राजा महाराजा संस्थानिकों के कब्जों में थी। इन लोगों की यह जमीन बहुत सारे भूमिहीन लोग ही कसते थे। मालक खेतों में पैर भी नहीं रखते थे। किन्तु खेती के और खेती में आनेवाले मालों के वे मालिक थे। किसान बैलो की तरह खेती में मेहनत करके अनाज उपजाते थे। किन्तु उन्हें पेटभर अनाज और शरीरपर कपडा, पैर में जूते भी नही मिलते थे। कई एकड़ जमीन बगैर मेहनत की पडी रह जाती थी। राज्य में और देश में, अनाज की बहुत बडी कमी थी। अमेरीका की जानवरों को खिलाई जानेवाली लाल ज्वारी और लाल गेहू आयात करके भारतीय खाते थे। देश का बहुत बडा कृषि क्षेत्र जिरायती था। लोगों को पीने के जल की और मवेशिओंकी चारेकी भी कमी थी। लोग बडी संख्या में भूमिहीन और बेकार लोग कर्ज बाजार और वेठबिगार, बेकार, बेघर और बिमार भी थे। निरक्षर भी थे। लोगों की खेती के बगैर और कोई धंदा और रोजगार नहीं था। कृषि मालकों उचित भाव भी नही था। व्यापारी और दलाल सस्ता कृषि माल खरीदकर महंगा बेचकर किसानका शोषण करते थे। ऐसी परिस्थिती मेंं वे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। बहुसंख्यांक में एक अल्प संख्य और वह भी पीछड़ा समाज का आदमी प्रतिनिधी, मुख्यमंत्री बनना, यह उनकी बौध्दिक चमक, कुशलता और मिलनसार स्वभाव का ही फल है। साथ ही ग्यारह साल से भी अधिक समय तक इस पदपर सम्मान, निष्ठा, कर्तव्यदक्षता, सेवाभाव, न्याय, सामंजस्यता, नम्रता, इज्जत, प्रेम के साथ बने रहना यह भी देश में और बेमिसालता का उदाहरण है। आदरणीय राष्ट्रपिता महात्मा फुले, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के भांति आदरणीय वसंतरावजी नाईक का जीवन ध्येय भी, कष्टकरी बहुजन समाज की उन्नती, विकास और न्याय देने की ओर रहा। यहा करते समय उन्होंने अभिजनोंपर भी अन्याय न होने की ओर पुरी तरह से ध्यान दिया था। क्योंकि सभीकों न्याय प्रदान करना यहीं उनका जीवन ध्येय था। कृषि कर्म प्रधान बहुजनों की समस्याओं का समाधान धुंडने के लिए या समस्या दूर करने के लिए उन्होंने सर्वप्रथम कमाल जमीन धारणा कानून बनाया और भूदान आंदोलन भी चलाया। इन दोनों कार्यक्रमों के अंतर्गत उन्होंने जिन जमीनदोरों सावकारों के पास अधिक जमीन थी, वह प्राप्त करके उन्होंने यह जमीन भूमिहीन किसानों को बाट दी। भूमिहीनों को उन्होंने केवल कृषि भूमि ही नहीं बाटी बल्कि उन्होंने बैल, बिजवाई, खाद खेती औजार, दूध जानवर और घरकुल भी दिये। साथ ही कमजोर वर्ग को उन्होंने न्याय देकर समाज व्यवस्था मजबूत बनाने का, देश सेवा कार्य भी किया। इसके अलावा कुल का कानून बनाकर (कसनेवालों की भूमि) घोषणा देकर उन्होंने कई मेहनतकस भूमिहीन किसानों को भी खेती दिला दी। वसंतरावजी नाईक भूमिको, खेतोको अपना शरीर और खेतीहर को प्राण और देशका आधार स्तंभ समझते थे। खेती यह सभी उद्योगों की जननी है। अत: उद्योग की यदि वृध्दि और विकास करना है, तो सर्वप्रथम खेती और खेतीहरों की उन्नती, विकास, सुविधाओं की ओर ध्यान देना अनिवार्य है। ऐसा भी वे समझते थे। वे कहते थे कि, खेती और खेतीहर यदि जीवित रहे तो धरतीपर कौन मरेगा और कृषक यदि नष्ट हो गये तो इस धरतीपर कौन कैसा बचेगा। तात्पर्य यह की यदि सभी को बचना है, जिंदा रहना है, तो प्रथम खेती की सुधारना करना और किसानों को बचाना और सुखी रखना अनिवार्य है। यदि आज आदरणीय वसंतरावजी नाईक होते तो वे देश में एक भी किसानों की स्वयंहत्या ना होने देते थे। देश की नदियों को जोडकर देश की पुरी भूमि वे बागायती कर डालते थे। महंगाई के भस्मासूर को वे जन्मने ही नहीं देते । किन्तु यह सब बाते अब कहने के लिए ही रह गई है। अब भविष्य में कोई वसंतरावजी नाईक निर्माण होने की संभावना नहीं है। शरीर में प्राण, चेतना रही तो शरीर का मूल्य है। शरीर में यदि प्राण ना हो तो शरीर को गाड या जला दिया जाता है। देश में भी किसान जिन्दा रहा तो देश जिन्दा रह सकता है। नहीं तो देश भिक मंगा, लाचार, गुलाम, मृतवत बन जाता है। आज भारत अन्य देशों का गुलाम और भिक मंगा बनने जैसा ही हो चूका है। देश के पांच प्रतिशत उद्योगपती और धनवालों को छोड़कर शेष भारत की मृतवत और गुलामी की ही अवस्था है। आदरणीय वसंतरावजी नाईक देश के किसानों को उद्योगपती और देश के नेता भी बनना चाहते थे। कृषि माल प्रक्रिया उद्योग, शक्कर कारखाने, जिनींगप्रेसिंग, सुतगिरणी, डेअरी, तेल उद्योग, खाद कारखाने, बिजवाई उद्योग आदिसे मिलनेवाला लाभ वह किसानों को ही देना चाहते थे। खेती के औजार और अन्य आवश्यक बाते भी वे किसानों को मालकी की बनाना चाहते थे। किन्तु धनवानों ने और उद्योगपतीओं ने सभी उद्योगोंपर कब्जा करके कच्चा माल सस्ते भावसे जमा करके उसे पक्का बनाकर उंचे भावसे बिकाकर किसानों और सामान्य जनोंका शोषण कर रहे है। वसंतरावजी नाईक का कहना था कि, खेतीे मंत्रो तथा तंत्रोसे नहीं होती। खेती में मन लगाने से ही खेती होती है। मेहनत से ही खेती फलती-फुलती और लहलहाती है। केवल मालक बनने से खेती नही होती। कसी हुई जमीन से भी नाकसी, पंडित या बंजर भूमि अधिक उपज देती है, यह नाईक साहब का अनुभव था। अत: उपज बढाने हेतू और भूमिहीनों को भूमिमालक बनाने हेतू उन्होंने शासन की करोडो एकर जमीन भूमिहीन किसानों को बाटकर उनको भूमि मालक बनाया। मैं मुख्यमंत्री की खुर्चीपर बैठा हुआ हूँ। तो भी मैं खेती के बांधपर खड़ा हूँ। ऐसा वे गर्व के साथ कहते थे। खेती और खेतीहर पूर्ण समाज मुझे मेरी माता से भी प्रिय है ऐसा भी वे कहते थे। लोकशाही शासन व्यवस्था के केंद्र बिंदूपर किसान होना चाहिए। इस विचार से वे किसान हितदर्शन योजना बनाने के प्रयास में थे। ग्रामीण क्षेत्र के बहुजनों को लोकशाही शासन में हाथ बटाते आना चाहिए। साथ ही समाज व्यवस्था और प्रशासन व्यवस्था स्वस्थ बनी रहे इस हेतू उन्होंने पंचायत राज योजना का निर्माण किया। किसान और मजदूर खेती हंगाम को छोड़कर बेकार ना बैठे इसी विचार से उन्होंने रोजगार हमी योजना का निर्माण किया। मजूरों का बोझ कम करने के लिए और किसानों की आय में बढोत्तरी हो इस हेतु ही उन्होंने फल बाग योजना को प्रोत्साहन और सहयोग दिया। किसानों द्वारा उत्पादित कृषि माल को उचित भाव मिले और किसानों का शोषण न हो, इस हेतु से नाईक साहब ने एकाधिकार कपास, ज्वार, चावल, गेहु आदि की खरेदी योजना बनाकर शोषिक किसानों को न्याय देने का अंतकरण से प्रयास किया। कृषि के क्षेत्र में संशोधन हो, उत्पादन और सुविधा बढ़े, समस्याए कम हो, शिक्षण-प्रशिक्षण मार्गदर्शन मिले इस हेतु से नाईक साहब ने महाराष्ट्र में चार कृषि विद्यापीठों का निर्माण किया। कृषिक्षेत्र का उत्पादन बढता रहे और किसानों को राहत मिले इस विचार से उन्होंने नाला, बंडींग, तालाब, वसंत और कोल्हापूरी बंधारे, जलसंधारण, सिंचाई भूजल रोको, भूमि को जल पिलाओ, किसान गृह निर्माण आदि अनेकों योजनाओं का निर्माण किया। खेतीमाल बाजार तक शीघ्र पहुँचे इस हेतू से ग्रामीण रस्ता निर्माण कार्य, पीने के पाणी के लिए नल योजना, सामुहिक कुए खुदवाई के काम किये। गोदावरी और कृष्णा नदी काजल महाराष्ट्र के किसानों को मिले, इस दिशामें भी प्रयास किये गये। इन सभी कृषि और कृषक भलाई, कल्याण, उन्नती, विकास, न्याय देने के कार्य के अलावा, शराब बंदी सिथिलीकरण कानून, राज्य लॉटरी योजना कानून, बहुजनों की पढाई की सुविधा हो इस हेतु से बस्ती वहाँ पाठशाळा व आश्रमशाळा निर्माण योजना, मुंबई शहर की भीड़ कम करने के लिए बॅकबेरी क्लेमेशन योजना, सुखे से बचे रहने की योजना, महाराष्ट्र और पुरा देश अनाज के क्षेत्र में स्वयंपूर्ण बना रहे आदि की अनेकों योजना बनाकर उन्होंने न केवल महाराष्ट्र बल्कि पुरा देश स्वावलंबी, समृध्द, सुखी, सुंदर बनाने के प्रयास उनके जीवन के अंत तक करते रहे। पाक-भारत आक्रमण, चीन-भारत आक्रमण सन 1972 के भयानक सुखे के समय में आदरणीय नाईक साहबने बहुत ही बड़ी और महत्व की भूमिका निभाई। महाराष्ट्र ही नहीं तो पुरा देश और विश्‍व भी उनकी अनेक योजनाओं की भूमिका और कार्य से प्रभावित और आश्‍चर्यचकित था। 1972 के सुखे में नाईक साहब ने लोगों को इतर रोजगार उपलब्ध कर दिया कि, खेती उत्पादन से भी कई गुणा पैसा मजूरों के घर में था और सब लोग खा-पीकर खुशी में थे। इतने काम और धन की व्यवस्था से नाईक साहब की बुध्दि चातुर्यकी कुशलता भी प्रमाणित हो गई और सब लोग भी उनसे खुश और प्रसन्न रहे। नाईक साहब की इन सभी क्षेत्र की सफलता का राज उनकी दूरदर्शिता, निश्‍चित और पक्का ध्येय, न्याय और समतापूर्ण दृष्टीकोन, सहनशीलता, समायोजकता, कार्य और देश के प्रती निष्ठा, परिवर्तनवादी दिशा, देश की जनता के प्यारे नेता, राजा, हृदयसम्राट वसंतरावजी नाईकजी को कोटी प्रणाम। (पूर्व प्रकाशित लेख, बंजारा धर्म-पत्रिका 2013) जय भारत - जय जगत - जय संविधान प्रा. ग.ह. राठोड

G H Rathod

162 Blog posts

Comments