अखिल भारतीय हिंदु गोर बंजारा, लभाना, नायकडा समाज कुंभ मेला - उद्देश और फलीत

अखिल भारतीय हिंदु गोर बंजारा, लभाना, नायकडा समाज कुंभ मेला - उद्देश और फलीत

ता. 4/2/2023 अखिल भारतीय हिंदु गोर बंजारा, लभाना, नायकडा समाज कुंभ मेला - उद्देश और फलीत 1) भारतमें मनुवादियोंद्वारा साधु-संतोका और सामान्य लोगोंका कुंभमेला कई सालोंसे लिया जा रहा। यह कुंभमेले 12 वर्षीय, 6 वर्षीय और 3 वर्षीय होते आ रहे है या लिये आ रहे है। कुंभ का अर्थ घड़ा या माठ होता है, जिसमे जल भरा या रखा जाता है। मेला का अर्थ है सभा, बैठक, चिंतन या चर्चा विचारोंका प्रगटन या लेना देना। किंतु मनुवादियोंके वर्तमानमे लिये जानेवाले कुंभमेले यह समुद्र मंथनमे प्राप्त कुंभ यानी अमृत कुंभसे, घड़ेसे है। कुंभमेला यानी अमृत भरे कलशसे संबंधित घटनाकी याद रखना या दिलाना, उसका प्रचार-प्रसार करते रहना। घटना या इतिहास यह बताता है, कि समुद्रके गर्भ या तलमे जो चीजे है पड़ी रखी या फेकी गयी है, उनको समुद्र मंथन के द्वारा यानी मथनीके द्वारा जल बाहर फेक कर प्राप्त की जाय। यह निर्णय होने के पश्‍चात देव-दैत्योंने मिलकर मथनीस समुद्र जल बाहर फेक कर समुद्र तलकी चीजे बाहर निकाली और इन चीजों को दोनोंने मतलब देव-दैत्योंने आपसमे बाट ली। किंतु अमृतका कलश यानी घड़ा दैत्य, दानव, राक्षस लेकर भाग गये। इस अमृतभरे कलश, घड़ा, कुंभको प्राप्त करने के लिये देव-दैत्योंमें बारा साल तक संघर्ष चला। अमृत कलश/कुंभकी छिना झपटीमे थोडा थोडा अमृत हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नाशिक को छलक गया। अत: इस अमृत कुंभ छलके और संघर्षकी स्मृतिमे मनुवाद हर बारा साल के बाद क्रमश: हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नाशिक की प्रसिद्ध नदियोंके किनारे कुंभमेला महोत्सव मनाया करते है और इस महोत्सव की सभामें दैत्यो, बहुजनोंके विरोधमे गुपित ढंगसे प्रस्ताव पास करके उनपर अमल करते रहते है। यानी दैत्यो, दानवों, राक्षसो, बहुजनो, वंचितो, शुद्रोंको कैसे दबाया रखा जाय और दबाकर उनके हितोंमे उनका किस ढंगसे प्रयोग किया जाय, यह निर्णय मेलेमे लिया जाता है। यह निर्णय कुछ खास संतो, महंतो, मंडलेश्‍वरो, महामंडलेश्‍वरो और सभी शंकराचार्योके साथ मिलकर लिये जाते है। फिर सभी शंकराचार्य उनके प्रस्तावोंकी अमलमे लाने के लिये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उनके सभी परिवारोंको आदेश देते रहते है। इन्हीं प्रस्तावोंके आधारपर आजकी सभी सरकारे (आज तक की) काम कर रही है। शुद्रोंको दबाके रखने के या गुलाम बनानेके कामको 2014 से भाजप सरकार बहुतही तेजीसे अमलमे ला रही है और पुरे देशकी साधन संपत्ती शुद्रोंसे छिनकर उनके कब्जेमें ले रही है। यदि शुद्रोंके साथ चले वर्तमान संघर्षमे उनकी हार और शुद्रोकी जय हुई तो भारत देश छोड़कर दूसरे देशोंमे जा बसनेकी तयारी भी गुपित रूपसे सरकार कर रही है। क्योंकि सरकारमे उनका वर्चस्व है। पीछली कांग्रेस शासनमें भी बहुसंख्य मनुवादी यानी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रशिक्षित लोग थे। अत: शुद्रोंको दबाने या गुलाम बनानेका काम उनका 1947 से गुप्त ढंगसे चुपचाप चालू था। शुद्रोकों सभी प्रतिनिधी यानी आमदार खासदार, अधिकारियोंको उन्होंने खसी या पालीत कुत्ते बनाकर रखा था और आज भी है। 2) अखिल भारतीय हिंदु गोर बंजारा, लभाना, नायकडा कुंभमेला लेनेका गोपनिय उद्देश- जलगांव जिल्हा जामनेर तालुकाके गोद्री नायक गोरबंजारा तांडेमे 25 जनवरीसे 30 जनवरी 2023 तक छह दिवसीय गोर बंजारा कुंभमेला लेनेका कोई ठोस आवश्यक कारण नहीं था। किंतु भाजप सरकारकी 2014 से तेज पक्षपातपूर्ण, अन्यायी, अत्याचारी, विषमतावादी, शुद्रविरोधी नीतियोंको देखकर शुद्र भड़क गये। सभी शुद्र संघटित होकर हिंदुत्व, हिंदुधर्म (ब्राह्मण धर्म) त्याग करनेकी घोषणा करने लगे, हिंदू धर्म छोड़ने लगे तो हिंदुओेंकी संघटित संख्या बड़े प्रमाणमें घट गयी। एस.सी., एस.टी., घुमंतु, अर्धघुमंतु, सबसे बड़ी संख्या के घुमंतु आदिवासी सभीने यदि हिंदु धर्म छोड़ दिया तो पीछे केवल 15 प्रतिशत सवर्णही रह जायेंगे, इस डरसे मनुवादी घबरा गये। आदिवासी, जाट, राजपुत, शिख आदि समुह हिंदु धर्म छोड़ने लगे। यदि सबसे बड़ा समुह गोर बंजारा, लभाना, नायकडा समुहने और उनके समकक्ष 198 जरायमपेशी (गुनहगार घोषित) समुहोंने भी हिंदु धर्म छोड़ दिया तो हिंदुओंकी संख्या भारतमें नहीं के बराबर हो जायेगी। यह मनुवादियों के सामने बड़ा संकट था। वास्तवमें बंजारा और अन्य घुमंतु कोई जाती मुल हिंदू नहीं है। उन्हें जबरदस्ती हिंदू बनाया गया है या कहा जाता है। गोर बंजारा और अन्य घुमंतुओंको भी उनका प्राचीन श्रमण धर्म यानी जीवनशैलीका ज्ञान न होने के कारण अज्ञानवश वे मजबुरीसे हिंदु कहलाते है। गोर बंजारोंकी जीवनशैली सिंधू संस्कृतिसे आज तक धाटी ही है। उनका किसी भी मानव निर्मित कृत्रिम, विकृत, स्वार्थी, विषमतावादी, अमानविय धर्मसे तिलमात्र संबंध नहीं है। सभी बहुजन, शुद्र वास्तवमे निसर्ग, प्रकृति, सृष्टि, सनातनवादी है। ॠग्वेदिक और मनुस्मृतिप्रनीत वर्ण, अश्रम, जाती, धर्म, मूर्ती, कर्मकांडवादी, बहुजनोंका, शुद्रोंका धर्म या जीवनशैली नहीं है। आज तक किसी जाति विशेषका कुंभमेला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने नहीं लिया था। गोद्री तांडेका गोर बंजारा, लभाना, नायकडा यह प्रथम कुंभमेला है और यह सफल होने के बाद अन्य जाति समुहोंको संमेलन लेनेका उनका विचार हो सकता है। किंतु प्रथम जाति विशेष कुंभमेला असफल होने के कारण यह कुंभ लेने के पीछे आर.एस.एस. के दो उद्देश थे। पहला हिंदु बनाकर हिंदुओंकी संख्या बढ़ाना और दुसरा हिंदु धर्म के कर्मकांड बढ़ाकर मंदिरो द्वारा, दान दक्षिणा, पूजा, अभिषेक बढ़ाकर ब्राम्हणोंका उत्पन्न बढ़ाना। अंधश्रद्ध बनाकर लुटना, फसाना और प्रगति रोकना था। भविष्यमे कोई कुुंभमेला लेनेकी संभावना नहीं रही है। यह संमेलन लेनेेमे गिरिश महाजन उनका कार्यकर्ता रामेश्‍वर नायक और पोहरा पालके संत महंतोका भी राजकिय और आर्थिक हित छुपा होने के बगैर गोद्री कुुंभमेला नहीं हुआ है। 3) अब हिंदु धर्म और सनातन धर्मका वास्तव अर्थ देखेंगे :- हिंदु धर्म और सनातन धर्म यह दोनों अलग अलग है। वास्तवमे धर्म का अर्थ नियम, कानून, कायदा, शिष्टाचार, सुत्र, मार्ग ऐसा ध्वनीत होता है। धर्म यह शब्द इसवीसन के कृत्रिम रूपसे समाज विशेषकी जीवनशैली के लिये प्रयोग किया है। प्रथक प्रथक समाज की प्रथक प्रथक जीवनशैली नियम, कानुन, सुत्र एवं मार्गकोही धर्म कहा गया है। धर्म नियम भी दो प्रकारके है। कल्याणकारी एवं अकल्याणकारी, सर्जनकारी एवं असर्जनकारी, मानविय एवं अमानविय, समतावादी एवं विषमतावादी अविकृत एवं विकृत, विधायक एवं विध्वंसक, हितकारी एवं अहितकारी नि:स्वार्थी एवं स्वार्थी, सार्थक एवं असार्थक, धारक एवं असाधक, धार्मिक एवं अधार्मिक यह सभी शब्द धर्म के गर्भमें है। धर्म एवं धार्मिक का अर्थ धारन करनेवाला, सभी का स्वीकार करनेवाला, सभी को साथमे लेकर चलनेवाला, सभी का कल्याण करनेवाला, सभी को न्याय, सुख, आनंद, समृद्धि, अवसर देनेवाला। इस नियमसे वेदोंमे धर्म का अर्थ ’धारयति जीवस्य इति धर्म:’। तात्पर्य यह की जिस धर्मसे, नियम, कानुन, शिष्टाचार, सुत्र, मार्गसे सभी जीवोंका मानव समुहका कल्याण, सर्जन, विकास होता है, वह धर्म अन्यथा विपरित अवस्थाको अधर्म यानी नियम, कानुन, न्यायविहित। इस व्याख्या के अनुसार आज के सभी धर्म (नियम) धर्म नही अधर्म है। क्योंकि आज के सनातन, हिंदु, मुसलिम, शिख, पारसी, जैन, आर्य, वैदिक यह सभी अन्य जनसमुहपर अन्याय करते है। मतलब नियमे न्याय नहीं देते। अत: सभी धर्म अधर्म, नियमबाह्य है। केवल नियम, कानुन घटना, संविधानही मानव धर्म है। क्योंकि सभी धर्म विकृती, अन्याय, अत्याचार, कल्याण, सर्जनहीन है। अत: किसी धर्मको मानव धर्म कहना अज्ञान और मूर्खता है। 4) सनातन धर्म क्या है? - सनातन शब्दका मूल अर्थ है, विश्‍व की किसी भी वस्तुका गुण, स्वभाव एवं विशेषता। वस्तुओंके गुण, स्वभाव, विशेष, प्रक्रिया छोड़कर सनातन यानी अपरिवर्तनीय होते है। गुणविशेषतामे, स्वभावकोही सनातन या सत्य धर्म कहा गया है। वस्तुओंकी, चीजों की एवं जीवोंकी इन प्राकृतिक, नैसर्गिक या सृष्टीचक्रकोही सत्यधर्म, सत्य जीवनशैली या सत्य व्यवहार कहा जाता है। सिंधू सभ्यता के पूर्व बहुजनोंका आज के शुद्रोंका यह सनातन, नैसर्गिक प्रकृति धर्म या जीवनशैली थी। मतलब सनातन नैसर्गिक, प्राकृतिक जीवनशैलीमे मूर्तिपूजा नही, मूर्ति, पूर्वज, पंचतत्व, पशु, वृक्षवल्ली, नदी, पहाड़, चंद्र, सूर्य, सितारे आदीको वंदन किया जाता था। सम्मान, आदर किया जाता था। मूलनिवासी, बहुजन, शुद्रोकी जीवनशैली हिंदु एवं ब्राह्मणी जीवनशैली के समान वर्ण, अश्रम, मूर्ति, मंदिर, तीर्थक्षेत्रसमान शोषक, कर्मकांडयुक्त नहीं थी। ब्राह्मण (हिंदु धर्म) इसी जीवनशैलीको सनातन यानी अपरिवर्तनीय मानता है। यह सनातन जीवनशैली उनके लिये उत्पादक, विनाश्रम बैठके जीवन व्यापन करने के लिये उन्होंने निर्माण की है। बहुजन मूलनिवासीयोंकी, आज के शुद्रोंकी प्रकृति, पूर्वज, पशुवंदक सनातन जीवनशैलीभी काल, समाज, परिस्थिती सापेक्ष थी। अत: बहुजनोंको शुद्रोंको हिंदु यानी ब्राह्मणी वर्णप्रधान, मूर्तिप्रधान, मंदिर-तीर्थक्षेत, कर्मकांड जीवनशैलीका त्याग करके प्रकृति प्रधान सनातन जीवनशैलीका अनुसरण करना चाहिए। जय भारत - जय संविधान प्रा. ग. ह. राठोड

G H Rathod

162 Blog posts

Comments