स्वातंत्र्य सेनानी आयुष्यमान कर्मवीर शंकरसिंह नाईक(चव्हाण) उर्फ मामा

जन्म और जन्मभूमी : औरंगाबाद जिल्हा की दक्षिण दिशा में लगभग 10 कि.मी. दूरीपर भिंदोन नामका गांव है। इसी गांव के अंतर्गत गोर बंजारा लोगोंकी एक बस्ती याने टांडा बसा हुआ है, जिसे भिंदोन टांडा (शिवगड़) नामसे पहचाना जाता है।

जन्म और जन्मभूमी : औरंगाबाद जिल्हा की दक्षिण दिशा में लगभग 10 कि.मी. दूरीपर भिंदोन नामका गांव है। इसी गांव के अंतर्गत गोर बंजारा लोगोंकी एक बस्ती याने टांडा बसा हुआ है, जिसे भिंदोन टांडा (शिवगड़) नामसे पहचाना जाता है। किसी भी गांव की परिसीमामें बसे हुए बहुसंख्ये टांडो को अपवाद छोडकर उस गांव के नामसेही एवं उस टांडेक के ायक के नामसे ही पहचानने की विशेषता है । स्वाधिनता के बाद कुछ टांडोको विशेष नाम या टांडा नंबर दिये गये है। किंतु बहुसंख्ये टांडे गांव के नामसेही पहचाने जाते हैं। औरंगाबाद जिल्हे का शंकरसिंह मामाका टांडा अब भिंदोन टांडके के साथ ही साथ शिवगड टांडा नामसे, पहचाना जाता है। इसी भिंदोन टांडे(शिवगड टांडे में) आयुष्यमान शंकरसिंह नाईक(चव्हाण) मामाका जन्म दि. 25/7/1925 को एक किसान एवं मजूर पिता आयुष्यमान पुरणसिंह नाईक और माता आयुष्यमती बदलीबाई के घर हुआ । बच्चपण में टांडा के लोग मामाको शकरू नायक नामसे पहचानत थे। किंन्तू आगे समाज सुरधाणका काम करने के कारण, साथही शहरी लोगोंसे संबंध बढ़ने के कारण सभी लोग उन्हे प्यारसे शंकरसिंह मामा कहने लगे। आज मामा की उमर 82 साल की है। आजभी लोग उन्हे शंकर मामा कहकर बोलते है। पढाई और समाजकार्य - मामाके माता-पिताकी परिस्थिती बहुतही साधारण होनेके कारण और पढाईकी सुविधाओंके अभाव के कारण शंकरमाममा की पढ़ाई कुछ तांडागांव और शहर में मिलकर मोडी और मराठी में 5वी 6 वी तक हुयी । आगे वे पढ़ नहीं सके । पेट भरनेकी चिंता में वे कामकी खोज में टांडेसे औरंगाबाद शहर आना-जाना करने लगे और गारके व्यापार के निमित्तसे शहरमेंही बस गये। शहर में रहने के कारण और साथ ही समाज कार्य करते रहने के कारण उनका संपर्क शहर के उस समय के कुछ कार्यकर्तांओंसे और स्वतंत्रता सेनानिओसें बढ़ गया और उनके साथ वे भी स्वाधिनता संग्राम आंदोलनमें 1942 में कुद पड़े। इस प्रकार राजनीतिमें खिचे जाने का श्रेय वे उस समयके स्वाधिनता संग्रामके सेनानी स्वामी रामानंद तीर्थ के अनुयायी आयुष्यमान ठाकूरदास सेठजी, और प्रसिध्द वकील माणिकचंदजी पहाड़ेजीकोें देते हैं। इनके साथ रहकर शंकरमामाने हैद्राबाद मुक्ति संग्राममें भी हिस्सा लिया था। स्वाधिनतापूर्व मराठवाडामें राजनीतिमें हिस्सा लेनेवाले बंजारा समाजमें शंकरमामा एक मात्र कार्यकर्ता थे। राजनीति करने में उन्हे औरंगाबाद के बाबुराव जाधव, लाला लक्ष्मीनारायण, रामगोपाल नावंदर आदी सहयोगिओंका बहुत बड़ा सहयोग और मार्गदर्शन मिला ऐसा वे कहते हैं। उन्हे राजनीति और समाजकार्यमें सहयोग देनेवालोंमे और साथ रहने वालोंमें समाज केही शेवगा निवासी आयुष्यमान लालसिंग नायक राठोड, कचनेरके नान्हुसिंग जाधव, शामानाईक राठोड, भीकानायक जाधव, देवगांव के दलसिंग नाईक राठोड, बक्षीकी बाडीके मन्नु नायक जाधव, आडगांव माहुली के मन्साराम नायक, जांभळी टांडेके किसन टोपा चव्हाण, गिरनेराके रामदास नायक पवार बीडकीन के उदयसिंग राठोड, सोमा हसू राठोड, एलोराके लाला चव्हाण आदीने भी सहयोग दिया ऐसा आज भी वे कहते हैं। छात्रालय और शिक्षण संस्थाओंका निर्माण - राजनीतिमें उतरनेके पश्‍चात उन्हें सामाजिक अकेलेपण का और सामाजिक दुरावस्थाका आकलन हुआ। समाजमें चारो ओर फैली हुई गरीबी, बेकारी, निरक्षरता, असहायता, अज्ञान उन्होंने देख लिया और समाज की भलाई के लिये कुछ तो भी करना इस हेतुसे उन्होंने सर्वप्रथम पढ़ाईको प्रोत्साहन देने के विचारसे औरंगाबादमें मोंढेके पास शासनमान्य एक छात्रालय चालु किया। आरंभ में इस छात्रालय में केवल 7-8 ही लड़कोकी व्यवस्था की गई। किन्तु बाद में समाज के सहयोगके आधार पर और सरकारकी मदतसे यह संख्या लगभग सौ तक बढ़ाई गई। छात्रालय आज तक चालु है। छात्रोंके छात्रालयके साथ साथ छात्राओंका भी एक स्वतंत्र छात्रालय चालु है। आज तक हजारों लड़के और लड़कियों ने इस छात्रालयका लाभ उठाकर अपनी पढ़ाई की इच्छा कुछ हद तक पुरी की है। लड़किया तो नहीं पर शेकडो लड़के इस छात्रालयके सहयोग से पढ़ाई पुरी करके वर्ग 2 वर्ग 1 के अधिकारी बनकर सेवानिवृत्त भी हो चुके हैं। इस प्रकार छात्रालय खोलकर मामाने एक पीछड़े समाज की मौलिक सेवा की है। इस छायालय के अलावा चार आश्रम पाठशालाये और कनिष्ठ महाविद्यालय भी वे चला रहे हैं। एक आश्रम पाठशाला औरंगाबाद तहसील में कचनेर टांडा धारेश्‍वर को, दुसरी बोकुड जलगाव तहसील पैठण में, तीसरी औरंगाबाद तहसील शिवगड तांडा को और चौथी आश्रम पाठशाला सोयगाव तहसील में घानेगांव तांडे को चल रही है। दो कनिष्ठ महाविद्यालय, औरंगाबाद शहर में ही है। मामाकी इस सामाजिक सेवा से प्रभावित होकर महाराष्ट्र शासनने उनको ‘कर्मवीर’ की उपाधिक भी प्रदान की है। शारीरिक थकावटके कारण अब इन सभी संस्थाओंकी व्यवस्था और नियंत्रणका काम उनके परिवारके उनके लडके कर रहे है। शंकरमामा के परिवारकी व्याप्ती- शंकरमामा को कुल चार पत्निया थी। इनमेंसे अब एक भी जीवित नहीं है। इन चार पत्नियोंमें एक संतान विहिन रही। बाकी तीन पत्निओंको रामसिंग, भीमसिंग, लालसिंग, पंडित और विपिन नामक पाच लडके और मीरा-एवं पींकी नामक दोन लडकिया है। पाच लडकोंमें से लालसिंग नाम के तीसरे लडकेि तीन साल पूर्व देहान्त हुआ है। यह पुरा परिवार अब औरंगाबाद शहरमेंही रहता हैरू और संस्थाओंका कारोबार देखता है। इस पुरी संस्था में मात्र उनके दोन विश्‍वस्त चव्हाण जाधव परिवार और रिश्तेदारोंके अलावा अन्य किसीको भी स्थान नही दिया गया है। अब यह संस्था लगभग व्यावसायिक बनती जा रही है। और संस्था की मालमत्ता भी बिकाने के प्रयास हो रहे है। साथ ही गुणवत्ता के अभाव होने के कारण गुणवान छात्रछात्राओंकी संख्या नहीं के बरोबर है। संस्था चालकोंको इन सभी त्रुटिओंको हटाने की और ध्यान देना बहुत जरुरी है। अन्यथा समाज को फायदा होने के स्थानपर नुकसानही ज्यादा होने की संभावनायें बढ़ रही है। छात्रालयेसे तयार हुये कुठ छात्रोकी सूचि - आज के दोन लड़के और लड़कियों का छात्रालय और शैक्षणिक संस्थायें ‘मराठवाडा बंजारा सेवा संघ’ औरंगाबाद इस विश्‍वस्त के द्वारा चलाये जाते हैं। इस विश्‍वस्त के सुरू के बहुत से विश्‍वस्त मर चुके हैं। और बहुतसे विश्‍वस्तोंको और सदस्योंको नियम छोड़कर निकाल दिया गया है। नये सभी विश्‍वस्त एवं सदस्य उपरी दो ही परिवार के बनाये गये हैं। अत: संस्था संचालक मनमाने व्यवहार कर रहे हैं। सभी संस्थाचालक अब मजबूत अवस्था में होने के कारण अब उनका विरोध करनेवाला और दोष बतानेवाला कोई न होनेके कारण संस्था के कर्मचारी मुठ्ठी में जान रखकर जी रहे हैं, और शोषण भी सहन कर रहे है। अत: संस्था में सुधारणा और गुणवत्ता बढ़ने और बढ़ाने की अपेक्षा करना निरर्थक बात हैं। इस विश्‍वस्तद्वारा संचलित ‘बंजारा वस्ती गृहसे’ सन 1954 से सन 1970 तक जो भी 100-150 छात्रोने अपनी पढ़ाई पुरी की, वे लगभग सभी शासकीय सेवा में वर्ग 1 तक पहुचकर सुख एवं चैनकी जिंदगी बिता रहे हैं। इनमें से कुछ सेवा निवृत्त होकर दिनभर घर बैठे रहते हैं। किंन्तू समाज के लिये कुछ करना, इस बारेमें विचार भी करते नही दिखाई देते। केवल अपने परिवार के साथ ही खुशियां मना रहे हैं। केवल प्रा. मोतीराज राठोड भटके आदिवासी विमुक्तोंको संघटीत करने उनके हक्क और अधिकारोंके लिये महाराष्ट्र में आंदोलन चला रहे हैं। उन्होंने हजारों अन्यायग्रस्त लोगोंको न्याय और उनके हक्क और अधिकार मिला देनेमें सफलता पाई हैं। साथ ही वे एक संवेदनशील साहियित्यक भी हैं। मंठा के निवासी धोंडीराम राठोड के कुछ शैक्षणिक संस्थाये निर्माण कर समाज के युवक युवतीओंको रोजगांर दिलाने में योगदान दिया है। ब्राह्मणवाद के विरोध में और अंधश्रद्धा के विरोध में लगभग 15-16 पुस्तके लिखकर मैं भी समाज जागृती का काम कर रहा हूँ। अन्य छात्रालयवासियोंका समाज के लिये कोई विशेष कार्य नजर नही आ रहा है। उपर बताये समय में छात्रालयम में मेरी स्मृति के अनुसार वालू कानू राठोड, वाघू राठोड, ज्ञानेश्‍वर पवार, के.बी.जाधव, जी.जे.जाधव, प्रा.मोतीराज राठोड, मदन सिंग राठोड, सुखदेव राठोड, कसळसिंग राठोड, सुखदेव दौलत राठोड, प्रल्हाद आर. राठोड, सीताराम जेसू जाधव, बदूसिंग जाधव, गुलाब भीका जाधव, सुंदरलाल नान्हू जाधव, कन्हीराम धंज्जी राठोड, तोताराम नेमा राठोड, लालसिंग गेमा राठोड, हरि फूलसिंग चव्हाण, उत्तम नेमा राठोड, हरिरावजी राठोड, गोपीनाथ भीका चव्हाण, लालसिंग चव्हाण, चुन्नीलाल राठोड, ओंकार राठोड, शंकर हरसिंग राठोड, गोविंद दिपा राठोड, गंगाराम धुमा राठोड, ग्यानसिंग किसन चव्हाण, जगन्नाथ शामा राठोड, जगन्नाथ सेवा राठोड, खेमा लोभा राठोड, बाबु फुलसिंग राठोड, पांडुरंग राठोड, चंदरसिंग राठोड, रामचंद चव्हाण, लखू जाधव, गोपीचंद जाधव, लक्ष्मण राठोड, गोवर्धन चव्हाण, बन्सी आडे, भोफ्त आडे, तेजराव दलसिंग राठोड, बन्सी राठोड, बाबु राठोड, सीताराम राठोड, बी.डी. राठोड, देविदास रावजी राठोड, प्रताप टोपा चव्हाण, प्रताप लालसिंग राठोड, सज्जन राठोड, सुकलाल फत्तु, राठोड, गुलाब सिताराम राठोड, मगन चव्हाण, धुमा चव्हाण, दुधा शाहु चव्हाण, सुकलाल दलसिंग चव्हाण,आदी छात्र थे। इनमें आजभी कुछ छात्र शासकीय सेवामें है। कुछ सेवा निवृत्त हो चुके है। कुछ का देहान्त हो चुका है और कुछ खेती और धंदा करके जीवन व्यतीत कर रहे है। समाजसेवा, सुधारणा और राजनीतिसे इन्होनें कोई संबंध नाही रखा, यह समाजके लिये बहुत बडी हानि है। जयभारत-जय जगत माजी प्रा. ग.ह.राठोड

G H Rathod

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