तारीख : 19/1/2022
गोर बंजारा समाजमें देवोकी संख्या बढ रही है।
देवोंकी संकल्पना और उनकी प्रतिमा गोर यात्रा क्षेत्रोंकी संख्या, गोर समाजमें ब़ढ़ती जा रही है। 300 वर्षपूर्व समाजमें एक भी देव और देवी नहीं थे। केवल क्रांतिकारी, परिवर्तनवादी, समाजसुधारक, मार्गदर्शक, पुढारी, नेता थे। वे समाजको दिशा देनेका, न्याय देनेका कार्य करते थे। उनके विचार और कार्यका प्रचार-प्रसार मौखिक और चरित्र या इतिहास लिखकर, साथही भजन, किर्तन, प्रवचनोंके द्वारा किया जाता था। उनकी प्रतिमाये और तीर्थक्षेत्र न होते हुये भी उन्हे प्रणाम, वंदन करके सम्मान था, आदर व्यक्त किया जाता था। उनके गुणकर्म गाये या कथाओंद्वारा सुनाये जाते थे। उनकी, पूजा, प्रार्थना, आरती, अभिषेक, मंदिर, तीर्थक्षेत्र नहीं होते थे। विशेष कर्मस्थल या जन्मस्थल उनके नामोंसे पहचाने या संबोधे जाते थे। महान क्रांतिकारी नायक बापु के अलावा किसीकी प्रतिमा और यात्रास्थल नहीं थे। पुष्पाअर्पन, नमन, प्रणाम, कार्य और गुणोंका प्रचार प्रसार किया जाता था। किंतु कालप्रवाहमें और भट-पुरोहितोंके और भोंदू भक्तोंने, अंधश्रद्ध भक्तोंने, उनकी पूजा, प्रार्थना, आरती, अभिषेक, भोग लगाना, प्रसाद बाटना पशुबली देना शुरु करके विचार, कार्यसे प्रेरणा लेनेके स्थानपर केवल दर्शन और पापमुक्ती स्थल बना दिया है। वास्तवमें महापुरुषोंके नामसे शिक्षा संस्था, स्वास्थालय, ग्रंथालय, छात्रालय, अनाथालय, वृद्धाश्रम, क्रिडा मैदान, संग्रहालय, शिल्प और कला शिक्षण केंद्र, सभागृह, मंगल कार्यालय, अतिथी निवास भवण, जलप्यावू केंद्र, शिशुदक्षता केंद्र, गीत, नृत्यकेंद्र आदी समाज कल्याणकारी काम करनेकी आवश्यकता है। किंतु दर्शन, पापमुक्ती स्थल, पूजा, प्रार्थना, आरती, अभिषेक, पशुबलि, तिर्थस्थल, भोग, प्रसाद स्थल बनाकर समाजका समय, धन, मनुष्य बल खर्च करके तथाकथित भक्तगण, समाजको पतन और अधोगतिकी ओर ले जा रहे है, अंधश्रद्ध, अज्ञानी बना रहे है, यह बड़ी घातक बाते है। आदरणीय क्रांतिवीर सेवालाल बापु, आदरणीय महानायक नायक बापुके समकालीन भारतभर घुमकर गोर बंजारा समाजमे सोनबाना, रामसिंगजी भानावत, बाबुसिंग राठोड, गजाधर राठोड, चंदराम चव्हाण गुरुजी, जगारावजी चव्हाण और अन्य शेकडो समाज सुधारकोने समाज जागृतिका महान कार्य किये है। क्या इन सभी के स्मृतिस्थल बनाकर भोग लगाने और यज्ञ करने के लिये तीर्थस्थल घोषित कर देना चाहिए? सेवालाल बापु और नायक बापुने ऐसा कोई कार्य नहीं होने दिया। क्योंकि तीर्थस्थल बनाकर वे आलसी, परोपजीवी भोंदू भक्तोंका दर्शन और निवास स्थान बनवाना नहीं चाहते थे। क्योंकि ऐसे स्थलोंके दर्शनमें, पूजा, प्रार्थनामें भोले अंधभक्त, निरक्षर, अज्ञानी लोक अपना किंमती समय, धन बरबाद कर कर्जबाजार बनकर जिंदगीभर दु:ख और वेदनाये सहन करते, भोगते रहते है। विद्वान, विचारवंत, परिवर्तनवादी और तथागत बुद्ध, छ. शिवाजी, रा. शाहु, क्रांतीवीर सेवालाल, डॉ. आंबेडकर, कांशीराम, पेरीयार, कबीर, बसवेश्वर, नानक, नामदेव, तुकाराम, तुकडोजी, गाडगेवादी, ऐसे कार्य गलतीसे भी नहीं करते। उपरोक्त सभी महामानवोंने केवल किसी एक विशेष समाज के लिये कार्य नहीं किया। समस्त मानव समुह के लिये काम किया है। क्रांतिवीर सेवालाल बापु के और महानायक नायक बापु के अनेक बोधवचन इन बातोंकी साक्ष देते है। अत: हमे जिन जिन महापुरुषोंने भारत देशको ब्राह्मणी गुलामीसे, मुगल और ब्रिटिश गुलामीसे मुक्त करने के लिये महान त्याग एवं बलिदान किया है, उन सभीका जयघोष, आदर और स्तुती करनी चाहिए। कुछ संघटक और उनके भक्त केवल सेवालाल बापु और नायक बापुकी घोषणा देते और छायाचित्र रखकर कार्यक्रम लेते हैं। यह संविधानदाता डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, उनके गुरु और अनुयायिओंका अपमान है, देशद्रोह, घटनाद्रोह है, यह सच्चाई समझनेकी, बहुत बड़ी आवश्यकता है। केवल दाढी-जटा बढ़ानेसे, गलेमें माला, टिला लगाकर, भजन, किर्तन, प्रवचन करनेसे और नीजी सुख और बड़प्पन के लिये जनतासे वसूली करके समाजको फसानेका, अंधश्रध्द बनानेका काम न करते हुये वैज्ञानिक दृष्टि देनेकी आज बड़ी आवश्यकता है। जनताको अध्यात्म और धार्मिकता के नामसे शोषण करनेवाले शेकडो भोंदू संत आज जेलमें है, यह बात अच्छी तरहसे समझ लेनी चाहिए। धर्म, धार्मिकता, धर्मगुरु, धर्मक्षेत्र, धर्मग्रंथ के नामसे समाज और देशद्रोह करनेसे हमेे दुबारा विदेशी गुलाम बननेकी संभावना दिखाई दे रही है। हमारे पूर्वजोने ऐसे कोई काम नहीं किये। किंतु दु:खकी बात यह, है की आज वैज्ञानिक युगमें उच्चशिक्षित लोग धर्म, धार्मिकता, देव, दैव आदी के चक्रमे फसकर पीढियां बरबाद कर रहे है। हमे ऐसे लोगोंसे सावधान रहनेकी बड़ी जरुरत है।
हिंदू धर्ममे 33 करोड़ देवी-देवता बताये जाते है। देवी-देवोंके कारण केवल शोषक ब्राह्मणोंको और भोंदू साधु-संतोंका कल्याण हुआ है। देवों, देवियोंने ब्राह्मणों और ढोंगी साधु-संतोकी बैठकर खानेकी, बगैर कष्ट के जीवन जीनेकी व्यवस्था हुई है। अन्य समान्य जनता, कष्टकरी, बहुजन तो बड़ी संख्यामें लुटे, फसायें जा रहे हैं। मंदिर, मठ, मजीद, गिरजाघर, गुरुद्वारा, चर्चमें कष्ट न करनेवालोंकी कमाई बढ़ी है, बढ़ रही है। उनकी बैठकर खानेकी, ऐशो-आराम करनेकी, विलासी, भोगवादी जीवनकी व्यवस्था हो रही है। 33 कोटीे देवोंके देशकी, देशमें रहनेवाले बहुजनोंकी कोई बिमारी, बेकारी, भूकमरी, बेघरी, नंगापन, भिकारीपण कम नहीं हुआ है। बढ़तेही जा रहा है। ब्राह्मण निर्मित देव-देवी न माननेवाला गोर बंजारा, बहुजन अब अप-अपने समाजमें देवोंकी संख्या बढ़ा रहा हैं। समाज ढोंगी साधु-संतोंको, साध्वीओंको, स्वार्थी समाजसुधारकोंको देव-देवी मानकर, बनाकर, उनके पुतले, मंदिर, तिर्थस्थल बनाकर अपना धन, समय, बरबादकर समाजकों धार्मिकता के निमित्तसे अंधश्रद्धालू बनाकर उन्हें बौद्धिक, मानसिक और ढोंगी संत और स्वार्थी समाजसेवकोंके गुलाम बनानेकी प्रक्रियामें लगा है। मनुष्य जितना धन और समय धार्मिक क्षेत्रमें खर्च कर रहा है उतना खर्च यदि शिक्षा, स्वास्थ्य, संरक्षण, पर्यावरण संतुलीत रखनेमें खर्च करता, भगवान, भाग्य, देवी-देवता और कर्मकांडोेंमे बरबाद ना होता तो देशसे, निरक्षरता, बिमारी, बेकारी, भूकमरी, नष्ट होकर मनुष्य समाज सुखी और समाधानी रह सकता था। किंतु ब्राह्मणों और ढोंगी संतोने बगैर कष्टका जीवन जीने के लिये जनताको देवों और धर्मोकी जालमें, किचडमें फसाकर मेहनतकसोंका जीवन कष्टमय, निंदनामय बना रखा है। आज हम देख रहे है, कि, हमारे देशमे देवों, धर्मो, मंदिरों, मजीदों, चर्चो, गिरजाघर, गुरुद्वारोंके कारण उनके धर्मस्थलो, धर्मगुरु, धर्मग्रंथोंके के कारण सब भारतीय आपसमें लड़कर अशांतता फैला रहे है। विषमता, अन्याय, अत्याचार फैलकर देवो-धर्मोकी राजनीती करके, जनता और देशको बरबाद, गुलाम बनानेमें लगे है। देशसे जब तक देव, धर्म, जाति, मंदिर, तिर्थस्थलोंकी, धर्मग्रंथ, धर्मगुरुओंकी बिमारी नष्ट ना होगी और देश के संविधानकी रक्षा ना होगी, तब तक भारत देश और भारतकी जनता किसी भी संकटसे मुक्त नहीं होगी।
जय भारत- जय सविधान
प्रा. ग. ह. राठोड