अखिल भारतीय बंजारा सेवा संघकी स्थापना करनेका आदरणीय महानायक वसंतरावजी
नायककी भूमिका या उद्देश क्या था?
ता- 27-12-2021
अखिल भारतीय बंजारा सेवा संघकी स्थापना करनेका आदरणीय महानायक वसंतरावजी
नायककी भूमिका या उद्देश क्या था?
1) भारतकी स्वाधिनता पूर्व समयमें भारतकी बहुजन जनता यह आर्य
ब्राह्मण, ग्रीक, मुसलीम, मोगल, डच, फ्रान्सीसी, अंग्रेज आदी शासकोंकी गुलामीमे था।
कुछ बहुजन समुह गांव-नगरोंमे या पास पडोसमें रहते थे। किंतु बहुजनोंमेंसे कुछ समुह
ऐसे थे, जो गावं-शहरोमेें न रहकर गांव-शहरोंसे दूर कही पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रोंमे
रहते थे और वहां उन्हें किसी भी प्रकारकी नागरी एवं प्रशासकीय सुविधाये उपलब्ध नहीं
थी। ऐसे सभी जनसमुह घुमंतु या घुमक्कड़ अवस्थामे रहकर शिकार, वन्यसंपत्ती, भिक्षा
मांगकर, चोरी, डकैती, छोटे-छोटे घरेलु चीजोंकी निर्मिती, पशु और पंछी, बंदर, आदीका
खेल दिखाकर, गीत गाकर, नृत्य, कसरती खेल, सेवाका काम करके उदरनिर्वाह किया
करते थे। दुसरी अवस्थामें पशुपालन, शिल्पकारी, अल्पमात्रामें कृषि और छोटे-छोटे व्यापार
किया करते थे। मतलब बहुजन समाज पूर्णत: शिक्षा, सत्ता, संपत्ति, संरक्षण, सुख
साधनोंसे अति दूर और गुलामी के बंधनोंमें जकडा था। प्रस्थापित, सत्ताधारी वर्ग
बहुजनोंका हर क्षेत्रमें शोषण कर विलासी, भोगवादी, बेफिकीर जीवन जी रहा था।
2) ऐसे समयमें महानायक वसंतरावजी नायक का जन्म बहुजन समाज के एक घुमंतु
परिवारमें बिसवी सदी के दूसरे दशक में एक किसान परिवारमें हुआ। पिता का नाम
फुलसिंग और माता का नाम हुणकी था। महानायक का जन्म कृषक परिवारमें होने के
कारण वे भी कृषिप्रेमी बने और कृषकों और अकृषकोंकी सभी समस्याओंका ज्ञान उन्हें
प्राप्त हुआ। उनकी पढ़ाईके समयमें और बादमें उन्होंने उपरोक्त समुहकी उन्नति और
सेवा करनेका विचार अपने दिल-दिमाखमें पक्का कर लिया था। पढाई खत्म होतेही कुछ
दिनोंके लिये उन्होंने वकालत की और वकालत करते करते वे समाज सेवाका और
संघटनका काम जोरसे करने लगे। समाज सेवाका अच्छा अवसर मिले इस हेतुसे वे उस
समयके कांग्रेस पक्ष के सदस्य बने और बादमे पुसद कांग्रेस कमिटी के तालुका अध्यक्ष
बन गये। आगे वे पुसद नगरपालिका का चुनाव लड़कर नगरपालिका अध्यक्ष बने। इस लंबे
समयमें उन्हे समाज सेवाका अवसर मिला और बहुत बड़ा अनुभव उन्होने पा लिया था।
नगर, गांव और नगर-गांव के बाहरी जनसमुहकी समस्याओंका ज्ञान भी उन्हें बड़ी मात्रामें
हो चुका था। बहुजन समाजकी और सभी घुमंतु, गोर बंजारा जनसमुहकी अनगिनत
समस्यायोंसे वे बहुत व्यथित, दु:खी और बेचैन हुये। किंतु देश के बहुजनोंकी, पीछड़ोंकी,
अछुतोंकी, बहिष्कृतोंकी, घुमंतुओंकी, बेकारोंकी, बेरोजगारोंकी, भूमिहीनोंकी, निरक्षरोंकी,
सत्ता, संपत्ति, साधनहीनोंकी, बिमारोंकी, नागरी असुविधाओंका समाधान वे अकेले नहीं
कर सकते, इस सच्चाईको वे अच्छी तरहसे समझ गये थे। अत: इन सभी समस्याओंसे
संघर्ष करने के लिये, हल करने के लिये उन्होंने एक अच्छे, मजबुत, सेवाभावी, त्यागी,
समाजनिष्ठ सेवकोंके संघटनका निर्माण करनेका निश्चय किया और इसी निश्चय के
कारण उनके बड़े भाई (बाबासाहेब नायक-राजुसिंग नायक) के सलाहसे और सोनबा, चंदू
नायक, रामसिंगजी भानावत, बाबुसिंग राठोड, प्रतापसिंग आडे, गजाधर राठोड, डॉ.
आर.आर. राठोड, पुडे गुरुजी, हिरा सदा पवार, हरजी नायक, रामराव राठोड, तेजसिंग
राठोड, चंद्राम गुरुजी, जगारावजी चव्हाण आदीके विचार, सहयोगसे एक संघटनाका निर्माण
किया गया। इस संघटनाका नाम ‘अखिल भारतीय बंजारा सेवा संघ’ है। यह संघटना मा.
महानायक वसंतरावजी नायक इनके नेतृत्व और अध्यक्षतामे और उस समय के रेलमंत्री,
आदरणीय लाल बहादुर शास्त्रीजीकी प्रमुख अतिथी के रुपमे उपस्थितीके दिन दिग्रसमें
तिथि 30 जनवरी 1953 को किया गया था।
3) इस संघटन निर्मिति के बाद मा. महानायक वसंतरावजी नायक, म.प्र के सहकारमंत्री
1956 में, उसके बाद कृषिमंत्री, महसूलमंत्री और अंतमे 5 दिसंबर 1963 से महाराष्ट्र के
मुख्यमंत्री बने। उपरोक्त 1956 से 1975 तकके समय कालमें महानायक वसंतरावजी
नायकने महाराष्ट्र के सभी क्षेत्रोंमे जो सुधारात्मक और विकासात्मक कार्य किये वे ना
पीछले समयमे किये गये थे और ना उसके बाद के समयमें आज तक हो पाये है। नायक
साहबने जाति, धर्म, ईश्वर, कर्मकांड, क्षेत्रसीमा, बोलीभाषा, आदीमे किसी प्रकारका भेदभाव
ना करते हुये, अभिजनों, बहुजनोंकी उन्नति, विकास कार्य पिता के स्थान रहकर की है।
सबसे योग्य न्याय उसने, किसानों, मजुरों, जवानों, कलाकारो, वंचित समुह और ग्रामिण
क्षेत्र, नोकरी, व्यापारीक्षेत्रमें देनेका प्रयास किया है। उनके शासन कालमें उसने महाराष्ट्र
राज्यका रंग-रुपही बदला था। उनके जैसा न्यायोचित कार्य उनके पश्चात अब तक संभव
नहीं हुआ है और जाति-धर्मवादी, साम्राज्यवादी आज के शासनसे वैसी अपेक्षा करना भी
मूर्खता है। किसानोंकी कृषिविषयक सभी समस्याओंको जड़से उखाड़ फेकने के लिये
अनेकानेक कार्य उन्होंने किये।
आज नायक साहब जीवित और सत्तामे रहते तो आजकी कृषिविषयक विवादोंका
नामोनिशान ना रहता। उनके शासनकालमें उन्होंने पीछड़ोका नौकरी और अन्य क्षेत्रोंका
अनुशेष भी पुरा किया। जहां अवश्यक था वहा उन्होंने पाठशाला, महाविद्यालय,
विद्यापीठ, कृषि विद्यापीठ, प्रशिक्षण संशोधन, संरक्षण केेंद्र निर्माण किये। रोजगार
हमी योजना के माध्यमसे देश की बेकारी, बेरोजगारी मिटानेका, जातिवाद, सीमावाद
मिटानेका प्रयास किया। रस्ते, जल व्यवस्था, बिजलीपूर्ती, बाजरपेठोंका, सहकारी बँकोेंका
निर्माण किया। उनकी हरितक्रांति के बारेमें सभीको मालुमात है। जनता, कृषिभूमी, कृषक,
जवान, महिला, युवा वर्ग, वंचित वर्ग सभी के साथ उनका पुत्रवत स्नेह था और सभी
उनको अपना हितचिंतक राजा और महाराष्ट्र का हिरा मानते थे। किंतु दु:खकी बात है,
कि, जातिवादी, धर्मवादी, विषमतावादियोंने उन्हे जानबुझकर सत्तापदसे हटाया और उन्हे
यह अपमान सहन न होने के कारण हृदयगति रुककर उनका देहान्त हुआ और महाराष्ट्र
के साथही वंचित समुहका अमर्याद नुकसान हुआ है।
4) अखिल भारतीय बंजारा सेवा संघ निर्मितिका उनका उद्देश - विशेषत: घुमंतु बंजारा,
अन्य घुमक्कड़ वर्ग, अन्य पीछड़ा वर्ग, इनकी शिक्षा, व्यवसाय, नौकरी, सामाजिक,
आर्थिक, सांस्कृतिक दुरावस्था, संघटनका अभाव, अंधश्रध्दा, घातक रुढी, परंपरा,
व्यसनाधिनता, लोकतांत्रिक अधिकारोंके बारेमे अज्ञान, उनका शोषण, अन्याय, अत्याचार,
कुपोषण, अज्ञान, बेकारी, बिमारी आदीके बारेमे जागृति निर्माण करके, उन्हें संघटित
बनाकर शासन के विरोधमें खड़ा करना और संख्या के अनुपातमे सभी अधिकार मिला देने
के लिये यह संघटन निर्माण किया गया था। उनपर मंत्री, मुख्यमंत्री के नातेसे कार्यभार
बढ़नेसे यह प्रबोधनपर कार्य जागृतिका कार्य उन्होंने संघटना के कार्यकर्ताओंपर सौपा था।
आरंभमें इस संघटनामेंं बड़ी संख्यामें सेवाभावी, समाजनिष्ठ, कार्यनिष्ट, त्यागी, कार्यकर्ता
थे। उन्होंने, नायक साहेब, भानावतजी और अन्य साथीदारोंके साथ दूर दूर प्रदेश के
टांडोंमे जाकर समाज जागृतिका और दिशा निर्देशका कार्य किया। किंतु निरक्षरता, अज्ञान,
अंधश्रध्दा, जवान, शिक्षित युवक-युवतियोंका नये कार्यकर्ताओंका अभाव, आर्थिक समस्याये
इन कारणोंसे बड़ी मात्रामें जागृति नहीं हो पायी। नायक साहब के समकालीन संघटना के
कार्यकर्ताओंने त्यागमय कार्य किया। किंतु बाद के कार्यकर्ता आज तक बहुतही उदासीन
दिखाई दे रहे है।
5) आज के संघके कार्यकर्ताओंको केवल पद और फेक भाषण चाहिए। प्रथम, द्वितीय
और तृतीय संघ अध्यक्ष के कार्यकालमें संघमे चेतना थी। मा. रणजीत नायकने तो ‘भारत
बंजारा’ नामक अनियतकालीक चलाकर समाजकी आशाये पल्लवित की थी। संघटनामे
चेतनाका अस्तित्व दिखने लगा था। किंतु मा. रणजीत नायक के निधन के पश्चात
संघटनमें विवाद के अलावा और कुछ नजर नहीं आ रहा है। मातृसंघटना के माध्यमसे
आज तक पुरे देशमें टांडा, तालुका, जिल्हा विभागीय, राज्यस्तर तक निष्ठावान संघ
कार्यकर्ताओंकी शाखाये निर्माण हो जाना चाहिए था। किंतु दु:ख के साथ कहना पड रहा है,
कि, महानायक के अपेक्षानुसार कुछ भी ना हो पाया। बंजारा संघ के माध्यमसे अन्य सभी
घुमंतु, अर्धघुमंतु जमातियोंको जोड़कर एन.टी. और डी.एन.टी., ओबीसी की एक संघ शक्ति
निर्माण करनेकी अनिवार्यता थी। किंतु बंजारोंका टांडोकी सीमा तक भी संघटन नही हो
पाया।
मा. शंकर नायक के अचानक निधन के पश्चात राजू नायक संघ के अध्यक्ष बने। उन्होंने
रचनात्मक कोई कार्य तो नही किया। किंतु संघ के नियमोंका पालन न कर संघ के दो
टुकडे बनाकर देशमे तमाशा खड़ा कर रखा है। समाज संघटनामें फुट निर्माण करना और
फेक बातेकर समाजका मनोरंजन करना यही कार्य राजूनायक का दिखाई देता है।
संघद्वारा एक लाख बंजारा सेना खड़ी करनेकी और पाच करोड़की निधी जमा करनेकी
बाते राजू नायकने कई बार कही थी। किंतु ना सेना खड़ी हुई और ना पाच करोड़की निधी
जमा हुई। मा. तिलावतजी और मा. शंकर पवार के बीच विवाद खड़ा हुआ। दोनोंने
राजीनामा देकर विवाद खत्म करनेकी सलाह कई विचारवंत दे रहे हैं। किंतु दोनोंने आप
अपनी प्रतिष्ठाका मुद्दा बनाकर समाजको दो भागोंमे विभाजित कर रखा है। इस विवाद
और तमाशा के लिये राजू नायक को सभीने धन्यवाद देना चाहिए। यह बात तुम लड़ो, मैं
कपडे संभालता हुं, इस कहावत जैसी लगती है।
कुछ गोर बंजारा लोग चुनावमें आमने सामने खड़े होकर धन, समय और शक्तिकी बरबादी
कर समाज विकासगतिको घटा रहे है, तो कुछ गोर धाटी के स्थानपर धर्मकी स्थापना
कर प्राचीन जाति, धर्म, ईश्वर मुक्त गोर संस्कृतिको नष्ट करनेपर तुले है। ऐसी अवस्थामें
बुुद्धिवानोंने चुपी साधे रखना यह विनाश के ओर जानेका संकेत नजर आता है।
आज की गोर बंजारोंकी महत्त्वकी समस्या उनकी समग्र जनगणनाकी है। जनगणना
होनेपर संविधान के अनुसार जनसंख्या के अनुपातमें सभी क्षेत्रोंमे हिस्सेकी मांग कर सकते
है। दुसरी महत्त्वकी बात सत्ता के हर क्षेत्रमे यानी स्थानिक संस्थाओंसे लेकर विधानसभा
और लोकसभामे हम हमारे लायक प्रतिनिधी भेज सकेंगे। तिसरी हमारी बड़ी समस्या
शिक्षासे संबंधित है। हर तांडेमें जो भी पाठशालाये चालु है, उन्हे कक्षाके अनुपातमे कमरे
व अध्यापक नहीं दिये जाते। इस कारणसे उन पाठशालाके सभी छात्र-छात्राये
गुणवत्तायुक्त पढाईसे वंचित रहते हैं। अन्य सभी सुविधायुक्त पाठशालायोंके
छात्र-छात्राओंकी तुलनामे वे पढाईमे बहुत कमजोर रहते है और इस कारणसे टांडे के
छात्र-छात्राये उच्च पदतक नहीं पहुचते। इतनाही नहीं तो राजसत्ताके क्षेत्रमें भी वे चमक
नहीं सकते। दुसरोके उपदेश या इशारोंपर उन्हें सत्तापदपर रहना पडता है। यदि
सत्तापदपर हमारे बुद्धिमान प्रतिनिधि पहुच गये तो वे आरक्षण, क्रिमीलेअर, बढती,
जनगणना, बोलीभाषाकी मान्यता और अधिकारोंके लिये कठोरताके साथ संघर्ष कर
अधिकार मिला सकते है। अत: तांडावासियोंकों सुविधायुक्त पाठशाला, पढाईके लिये संघर्ष
करनेकी, साथही तालुका या जिल्हा स्थलपर छात्रालय खोलने के प्रयासोंकी अनिवार्यता है।
चौथी टांडेकी सबसे बड़ी समस्या व्यसनाधिनता है। दहेज प्रथा, गरिबी के कारण
लड़कियोंकी बिक्री, उपजातियां, धाड़ी, ढालीया, भाट, सोनार, जांगड, बौद्ध, इसाई आदी के
साथ बंजारोंने बेटी व्यवहार ना करना आदी के कारण गोर बंजारोंकी संख्या घट रही है
और अन्योंकी संख्या बढ़ रही है। यह बहुतही गंभीर और चिंताजनक समस्या है। इसपर
शीघ्र विचारोंके अदान-प्रदानद्वारा समस्या हल का रास्ता निकालना अनिवार्य है। अन्यथा
समय बीतनेपर पछताना पडेगा। मराठा, मुसलीम, गुजराती, जाट, जैन, इसाई, एस.सी.,
एस.टी. आदी समुहकी लड़कियां, लड़कोंके साथ शादियां हो रही हैं। फिर उपजातियोंके साथ
तो बिना हिचकिच के शादी होनी चाहिए। इसके लिये बड़े प्रमाणमे प्रबोधन और जागृतिकी
अनिवार्यता है। इस काम के लिये, अखिल भारतीय बंजारा सेवा संघकी ओरसे शीघ्र कदम
उठाये जाने चाहिए। वर्तमान समयमें संघ के दो गुटोमें जो विवाद चालू है, दोनों
अध्यक्षोंसे राजीनामा अपेक्षित है और शीघ्र नये तरुण युवक-युवतियोंके हाथोंमे संघका
कारोबार सौप देना चाहिए।
गोर बंजारा समाजमे शीघ्र सुधार और परिवर्तन लाने के लिये, मेरे विचारसे और
महानायक आदरणीय वसंतरावजी नायक के उद्देश एवं स्वप्नपूर्ति के लिये संघ
कार्यकर्ताओंने निम्न कार्य, निम्न ढंगसे पुरे करने के लिये कदम उठाने चाहिए, ऐसे मेरे
व्यक्तिगत विचार है। इसके अलावा समाजमें जो अनुभवी, विद्वान और विचारवंत लोग
है, उनकी बैठक लेकर उनकी सलाहसे भी समाजकी जो भी समस्या है, उन्हे हल करने के
प्रयत्न शीघ्र किये जाने चाहिए। कार्यक्रमकी रुपरेषा निम्न प्रकार से है।
1) गोर बंजारा गणमें एकता निर्माण करने के लिये और गोर बंजारा गण का
समस्याओंका उद्देश साध्य करने के लिये शिक्षित, समझदार, सधन और ध्येयवादी
युवकोंका संघटन (विचारमंत्र) तांडा, तहसील, जिल्हा, विभाग और राष्ट्रीय स्तरतक निर्माण
करनेकी आवश्यकता है।
2) सभी टांडोके माध्यमिक, महाविद्यालयीन, विद्यापीठीय छात्र-छात्राओंको व्यावसायिक,
तंत्र, संगणकीय, शिक्षा क्षेत्रमें मार्गदर्शन करने के लिये स्थानस्थानपर मार्गदर्शक केंद्र या
घुमता हुआ पथक तयार करना चाहिए। साथही उनके अगली पढ़ाईकी व्यवस्था के बारेमें
भी कुछ करना और सोचना चाहिए।
3) गोर बंजारा गण के जो भी संघटन या विचारमंत्र तयार किया जायेगा, उन्हें भी
समाजकार्यका और संघटन मजबुत बनाये रखनेका प्रशिक्षण देनेकी व्यवस्था करनी
चाहिए। संघटन और कार्यपूर्तता के लिये उनमें तालमेल बिठानेका प्रयास भी होना चाहिए।
4) शिक्षित युवक-युवती और उनके पालक भी बेकार बनकर ना भटकते रहे, इसके लिये
भी कोई न कोई योजना बनाना और तालमेल रखनेकी व्यवस्था की जानी चाहिए।
5) जो टांडे स्वतंत्र या संयुक्त ग्रामपंचायत बनने लायक है, उन टांडोसे विचार विनिमय
करके स्वतंत्र या संयुक्त ग्रामपंचायत बनाने के लिये टांडोकी ओरसे और संघटनाकी ओरसे
भी उच्च स्तरपर प्रयास किये जाने चाहिए। इसके लिये आंदोलन, बहिष्कार मोर्चा आदि
साधनोंका भी सहारा लिया जाना चाहिए।
6) हर एक टांडेकी जो समस्याये है, उन समस्याओंका एक निवेदन हर साल टांडेकी
ओरसे साथही शिखर संघटना की ओरसे सभी टांडोका संयुक्त निवेदन भेजा जाना चाहिए।
उसका पीछा करते रहना चाहिए। हर प्रकार के चुनाव के समयमें दबाव तंत्र का भी प्रयोग
किया जाना चाहिए।
7) एस. टी. के घटनात्मक आरक्षण जनसंख्या के अनुपातमें प्रतिनिधित्व और गोर बंजारा
गणकी जनगणना कराने के लिये, मोर्चा, आंदोलन, बहिष्कार, अनशन आदी साधनोंका
सहारा लेना चाहिए। एस.टी. आरक्षण प्राप्ति के लिये विशाल आंदोलन और मोर्चा की
अवश्यकता है।
8) टांडा निर्व्यसनी, दहेजमुक्त बनाने हेतु तांडा पंचायत समिती निर्माण, महिलाओंकी
पढ़ाई, उनका संघटन निर्माण करने के लिये भी तांडा सुधार समितीने प्रयास करना
चाहिए।
9) लोकतंत्र शासन प्रणालीका स्वरुप, भारतीय संविधानका स्वरुप और मतदान
अधिकारका सच्चा प्रयोग इन तीनों बातोंके बारेमें जन जागृती, प्रबोधनकी बहुतही बड़ी
जरुरत । इन तीनों विषयोंका महत्त्व और उपयोगिता जब तक समझमें नही आयेगा तब
तक लोकशाही, संविधान और मतदान का मूल्य शून्य समझा जाना चाहिए।
10) वास्तवमें गोर बंजारा गणोंकी सभी समस्याओंका हल करना है, तो राष्ट्रीय स्तरपर
वितकोषका निर्माण करना होगा। सामान्य प्रति परिवारसे प्रति महिना कमसे कम पांच
रुपये, सधन लोगोंसे 100 से 500 रु. वर्ग 1,2,3 और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियोसे वेतनका
क्रमश: 20, 15, 10 और 5 प्रतिशत रक्कम जमा करना चाहिए। उद्योगपती, ठेकेदार,
बड़े व्यापारी आदिओंसे उनके आय के अनुसार एक लाखसे अधिक रक्कम प्रतिमहिना
मिलनेकी अपेक्षा रखना चाहिए। साथही प्रचार-प्रसार एवं प्रवास के साधन, मनुष्य बल
सभी घटकोंकी व्यवस्था करनी चाहिए।
11) न केवल भारतमें बल्कि पुरे विश्वमें गोर बंजारा गण फैला हुआ है, इसके प्रमाण वेद
कालके पूर्वसे उपलब्ध है। किंतु इतने प्राचीन काल के गोर बंजारा गण का कोई इतिहास
और लिखित साहित्य नहीं है। शायद शत्रुने उसका साहित्य और इतिहास नष्ट किया हो
या यह गण अपणा इतिहासकी भूल गया हो। अत: खोज एवं संशोधनकी अवश्यकता है।
12) गोर बंजारा गण अपने इतिहास और साहित्य के साथही साथ अपना गोर धर्म
भूलकर अपने पुराने और बड़े दुश्मन ब्राह्मण (आज के हिंदू) धर्म में बिलीन हो गया है।
अत: उन्हे अपने निजी गोर बंजारा गण धर्मकी पहचान करा देना बहुतही बड़ी (धाटीकी)
अवश्यकता है।
13) गोर बंजारा गण के मानवतावादी एवं सर्वश्रेष्ठ धर्मकी (धाटीकी) पहचान करानेवाले
और गोर बंजारा गण धर्म एवं जीवनशैलीका प्रचार प्रसार करनेवाले प्रचारकोंका संघ
निर्माण करनेकी भी बड़ी अवश्यकता है।
14) गोर बंजारा गणका स्वतंत्र, तर्कशुद्ध, लोकतंत्रवादी, वर्ण, जात, धर्मनिरपेक्ष, समता,
न्याय और स्त्रीको सम्मान देनेवाला साहित्य निर्माणकी जरुरत है।
15) गोर बंजारा गणका साहित्य, धर्म, समाज व्यवस्थाका और संघटनका प्रचार प्रसार के
लिये सभी प्रकार के प्रचार माध्यम (समाचारपत्र) चलाना अवश्यक है।
16) ग्रामिण एवं शहरी होनहार छात्र-छात्राओंके लिये विद्यालय, छात्रालय और साधनोंकी
सुविधा उपलब्ध कराने के प्रयास मोटेतोरपर होना चाहिए।
17) छात्र-छात्राओंके पालक जो रोजगार के लिये दूर और लंबे समय के लिये जाते है;
उनके लिये, वृद्धो के लिये और पशुओंकी व्यवस्था के बारेमें भी कोई योजना बनाना जरुरी
है।
18) छात्र-छात्राओंके अल्प भूधारक माता-पिताओंकी कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिये बैल एवं
अवजारोंकी व्यवस्था के बारेमें सोचना भी अवश्यक है।
19) शिक्षित युवक-युवतीओंको रोजगार और उनके वैवाहिक समस्याओंके बारेमें भी
नियोजनकी अवश्यकता है।
20) शराबकी भट्टीयोका धंदा करनेवालो और पशुबलि देनेवाले गोर बंजारा गणको प्रबोधन
और रोजगार के बारेमें भी योजना बनानी चाहिए।
21) धार्मिक कर्मकांडोमें जो बंजारा गण लुट जाते है और बरबाद होते है, उनमें जागृती
निर्माण करनेकी और उन्हें अंधश्रध्दामुक्त करनेकी अवश्यकता है।
22) जो गोर बंजारा गण अपने लड़के-लड़कियां बेचते है या लड़कियां देह बिक्री का धंदा
करती है, उनकी समस्याओंके बारेमें भी सोचना चाहिए।
23) अंतरजातिय और अंतरराष्ट्रीय विवाह करनेवालोको भी योग्य मार्गदर्शनकी एवं दिशा
देनेकी अवश्यकता है।
24) जो झोपडपट्टीमें रहते है, उनकी समस्याये, शिक्षा, सुधारणा आदिके बारेमें भी कोई
योजना बनाना अवश्यक है।
25) शहरों एवं गावोंमें रहनेवाले लोगों के लिये, धर्मशाला, सभागृह, मंगलकार्यालय आदिकी
व्यवस्था के बारेमें भी प्रयास किये जाने चाहिए।