सोना और पितलका मूल्य समान नहीं होता।

बहती नदीका पाणी और संचित गढ्ढ़े के पाणी की शुध्दता में बहुत फर्क होता है। बहती धार का पाणी कोई इन्सान शुध्दता परखकर शीघ्र पी लेता है। किंतु संचित जल छानकरही पिना पड़ता है।

बहती नदीका पाणी और संचित गढ्ढ़े के पाणी की शुध्दता में बहुत फर्क होता है। बहती धार का पाणी कोई इन्सान शुध्दता परखकर शीघ्र पी लेता है। किंतु संचित जल छानकरही पिना पड़ता है। अन्यथा इन्सान बिमार पड़ता है। पश्‍चात बिमारी के फल भोगने पड़ते है। सोना समझकर पितलकी खरेदी कर ली गई तो बादमें बहुत पछताना पड़ता है और आर्थिक नुकसान भी सहन करना पड़ता है। गाय, भैस, बकरीका दूध सफेदही दिखता है। किंतु उनकी गुणवत्तामें फरक होता है। स्त्री और पुरुष दोनों मानवही है। किंतु दोनोंकी शारीरिक विशेषतामें बहुत बड़ा फरक होता है। भूमि भी अलग अलग प्रकारकी होती है। उनकी भी विशेषता और उत्पादन क्षमता अलग अलग होती है। विचारधारा भी अलग अलग पाई जाती है, और उसके परिणाम भी अलग अलग होते दिखाई देते है। राजकिय पक्ष, पक्षही होते हैं। किंतु उनकी पक्षीयी नीतीके परिणाम अलग अलग निकलते या दिखाई देते है। आहारोंमे फल, अनाज और सुकामेवा, भूक भगाते है। किंतू तीनो आहारोंका परिणाम शरीरपर अलग अलग होता है। दूध, दही, मख्खन, छाछ, घी का भी शरीरपर अलग परिणाम होते है। मांसाहारके भी शरीरपर अलग परिणाम होते है। इसी प्रकार भारतमे हिंदु, ब्राह्मण, मुस्लिम, शिख, इसाई, पारसी, जैन, बौध्द आदी अनेक धर्म है। धर्मोमे तात्पर्य यहा नियम, कानून, व्यावहारिक पध्दत तथा मानवी जीवनशैली ऐसा होता है। इन नियमो एवे कानुनोंके अंतर्गत कई भली, बुरी, उपयुक्त या निरर्थक कृतियोंका समावेश होता है। इसके अंतर्गत किसीका शोषण और किसीका पोषण होता है। साथही किसीको केवल सुखही सुख और किसीको दु:ख, वेदनाये, अन्याय, अत्याचारके बगैर कुछ भी नहीं मिलता। धर्मोमे स्वार्थी, परोपजीवी यानी अश्रमी, श्रम न करनेवालोंका भोगवादी जीवन प्राप्त होता है। किंतु भोले, निरक्षर, कष्ट करनेवालोंके हिस्सेमे दु:ख और दर्दभरा जीवन आता है। सभी धर्मोमें थोड़ी तो भी दुर्गंध, दोष पाये जाते है। किंतु समता, सत्य, धाटी, मार्गमें, विचारधारामें, जीवन पध्दतीमें कही भी दुर्गंध या दोष नहीं पाये जाते। यदि पाये गये तो उन्हे न्यायदृष्टीके अनुसार हटाकर बदले जाते है। अत: समता, सत्य, मानवता, धाटी, धम्मजीवनशैलीमें चारो दिशामें सुगंधकी गंध पाई जाती है। धर्म यह अपरिवर्तनीय, सनातन होने के कारण दुर्गंध और दोष हटाये या बदल नहीं जाते। अत: हमे किस जीवनशैलीको अपनाना है, यह अप अपनी बौध्दिक परिपक्वता और प्रगल्भता, चिंतनपर निर्भर है। प्रा. ग. ह. राठोड

G H Rathod

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