अन्य (ओबीसी) घुमंतु पीछड़ोकी जनसंख्या और संघ परिवारका षडयंत्र

सुचना- प्रस्तुत लेख थोडा बड़ा है। अत: समय देकर हर एक वंचित समुहको पढ़कर विचार, चिंतनकी आवश्यकता है।

18/12/2021 अन्य (ओबीसी) घुमंतु पीछड़ोकी जनसंख्या और संघ परिवारका षडयंत्र विदेशी आर्य ब्राह्मण भारतमें आने के पूर्व भारतमे मुलनिवासियोंकी, मतलब आज के अनुसूचित जाति, जमाति, अन्य पीछड़ा वर्ग (ओबीसी), अल्पसंख्य वर्गोंकी सत्ता थी। वे सभी भारत के मालक, शासक, राजा, महाराजा, पशुपालक, कृषक, शिल्पकार, कलाकार, व्यापारी, उद्योगपती, आदी थे। उनकी मोहेंजोदडो, हडप्पा क्षेत्रमें हिमालय पर्वतसे अन्य पर्वतोंसे निकली संयुक्त सप्तसिंधू नदियोंके दोनो ओरके किनारोंपर अतिशय विकसित, आधुनिकतम आदर्श सभ्यता एवं संस्कृति बसी हुयी थी। इस संस्कृतिका निर्माण इसापूर्व 7000 से 6000 के बीच आज के पाकिस्तान के बलुचिस्तानमे हुआ था। बादमें यह संस्कृति धीरे धीरे भारतमे सर्वत्र फैल गयी थी। इसापूर्व 2000 में यह संस्कृति उन्नती, विकास और समृद्धि के शिखरपर थी। किंतु इसापूर्व 2500 से 2000 के बीचमे विदेशी असंस्कृत, असभ्य, जंगली, कंदमुल, फल, मांसाहार करनेवाले, घुमंतु, स्वैराचारी, अमिथुनी, आर्य युरोप, मध्य आशिया आदी क्षेत्रोंसे भारतमें घुसे। साधन और सुविधाओंके लिये, मांसाहार, कपडा, मकान और अनाज के लिये उनमे मुलनिवासियोंके साथ कई सालोतक संघर्ष होते रहा। दोनोंमे कई बार हार जीत होते रही। कुछ सालोके पश्‍चात आर्य ब्राह्मण संघर्षमें पूर्णत: हारकर मुलनिवासियोंके शरणार्थी बनकर रहने लगे। सत्ता, संपत्ती, अधिकारोंको छोड़कर पढ़ना-पढ़ाना और भिक्षा और दान-दक्षिणा लेकर उदरनिर्वाह करनेकी शर्तोपर उन्हें शरणार्थी बनाया गया था। किंतु समय बितनेके साथ उनमेें रोटी-बेटी व्यवहार शुरु हुआ। परस्परोंके ब्याही दामाद बन गये। मुलनिवासियोंने आर्य ब्राह्मणोंकी सुंदर, गोरी अनेक कन्याओंके, अप्सराओं के साथ अति भोग-विलासमे लिप्त हो गये। शासन-प्रशासन और जन कल्याणकी ओरसे उनका ध्यान हट गया था। राजा-राजाओंमे गोरी कन्याओंके लिये संघर्ष बढ़ गया था। परस्परोंका सहयोग खत्म हो चुका था। इस सुअवसरका लाभ उठाकर शरणार्थी भिक्षुक आर्य ब्राह्मणोंने सत्ता, संपत्ती, साधन, अधिकारों के लिये एक-एक समधी, दामाद राजाओंके साथ अन्य राजाओंको हराकर सत्ताशक्ति बढ़ाई और अंतमें सभी मुलनिवासियोंको पराभूत करके वे भारत के इसापूर्व 1700 के लगभग सत्ताधिश बन बैठे। उनकी यह सत्ता तथागत सिद्धार्थ गोतमकी धम्म शासन प्रणाली स्थापित होनेतक इसापूर्व 400 तक बनी रही। इसके पश्‍चात तथागत सिद्धार्थ गोतमने (बुद्धने) अपने ज्ञानबल के आधारपर इन आर्य ब्राह्मणोंको अनुयायी बनाकर धम्म व्यवस्थामे मिला लिया और आर्य ब्राह्मणोंकी सत्ता शक्ति खत्म कर दी। किंतु इसा पूर्व 185 में धम्मानुयायी राजा ब्रृहद्रथकी धोकेसे हत्या कर प्रतिक्रांति के माध्यमसे दुबारा सत्ता प्राप्त कर मुलनिवासियोंको गुलाम बनाया। इ.पू. 185 के पश्‍चात आर्य ब्राह्मणोंके शासनकालमें और भी कई विदेशी-देशी शासक भारतमें क्रमश: निम्न क्रमसे आज तक रहे हैं। 185 इ. पूर्व के पश्‍चात भारतमें आर्य ब्राह्मणों के साथही साथ इ.स. 72 के पश्‍चात कुशान, शक, पल्लव, शुंग, कण्व, कनिष्क, सातकर्णी, वाकाटक, चोल, चालुक्य, गुप्तवंश, वर्धनवंश, चंदेलवंश, काश्मीर के नाग, उत्पल, कर्कोटक, औडुंबरा, खस, डोम, लोहारा, गोकुंदा, राजपूत, मुसलीम, मोगल, शिख, मराठा, उच, फ्रान्सीस और अंतमें अंगे्रज भारतमें आये और उन्होंने भारतपर सन 1947 तक राज्य किया। इसापूर्व 185 के बाद उपरोक्त सभी शासकोंके साथ आर्य ब्राह्मणोंकी हिस्सेदारी रही हैं। इसवीसन 1817 के अंतमें अंग्रेजोने आर्य ब्राह्मणोंका (पेशवाई) राज्य पूर्णत: खत्म करके अंग्रेजांकी ब्रिटिश कंपनीका शासन शुरु किया था। किंतु यह अंग्रेजी शासन अंग्रेजोंने पेशवाई खत्म होने के बाद भी बहुसंख्य ब्राह्मणोंके शासन कालमें, मुसलिम, मुगलोंके और अंग्रेजों के शासन कालमें तिहेरी यानी ब्राह्मण, मुस्लिम अंग्रेजोंके गुलाम थे। सभी प्रकार के नागरी अधिकारोंसे वंचित, गुलाम थे। अंग्रेजोंने भारतमें राज्य करने के लिये आर्य ब्राह्मणोंको बड़ी मात्रामें हिस्सेदारी देकर शासन चलाया था। ब्राह्मणोंको खुश करने के लिये अन्य सभी शासनकर्ताओंका, संस्थानोंका, आदिवासी राजा एवं प्रमुखोंका अंत कर दिया था। मुलनिवासी, आदिवासियों, बहुजनोंपर बहुतही बड़ी मात्रामे अन्याय अत्याचार बढ़ रहा था। अत: 1730 के पश्‍चात आदिवासियोंने, मुलनिवासियोंने अंग्रेजोंके विरोधमे जंग छेड दिया। वास्तवमें भारतीय बहुजनोंके सच्चे शत्रु ब्राह्मणही थे। किंतु अंग्रेजोंने जब ब्राह्मणोंपर बहुजनोंके हितमें बंधन लादना आरंभ किया तो अंग्रेज हमारे शत्रु है, एैसा भ्रम ब्राह्मणोंने बहुजनोंमे निर्माण किया। इस कारण बहुजनोंने अंग्रेजों के साथ संघर्ष किया और इस संघर्षमें करोड़ो करोड़ो बहुजन मारे गये और करोड़ो जेलमें गये। लाखोंको फासीकी सजा हुयी। अंग्रेज भी लाखोंकी संख्यामें मारे गये। अंतमे वे बहुजनोंसे डर गये और उधर जर्मनीसे उनका युद्ध शुरु होने के कारण भारत छोड़नेका निर्णय लेकर 1947 मे भारत छोड़कर चले गये। सामाजिक, धार्मिक, राजकिय क्षेत्रकी आर्योकी वर्चस्वता रखकर अंग्रेजोने भारतमे अखंड शासन करते रहना, उनकी 70-80 प्रतिशत भागीदारी रखना इन शर्तोपर वे अ्रंग्रेजोको भारतसे भगाना नहीं चाहते थे। किंतु बहुजनोंको उनकी गुलामीसे मुक्त नही करना ऐसा उनका कहना था। किंतु अंग्रेज ब्राह्मण-बहुजनोंमे समता स्थापन करनेका, मनुस्मृति के कानून नष्ट करनेपर आडे हुये थे। इस कारण गांधी, नेहरु, राजेंद्र प्रसाद, संघ परिवार आदीने अंग्रेजोंको बहुजनोंकोभी उनके विरोधमे भड़काकर भ्रमाकर खड़ा किया। अंग्रेजोंके पास भी सेनाकी कमी और अन्य देशोंके साथ युद्ध शुरु होनेसे घबराकर देश छोड़नेका निर्णय ले लिया। किंतु भारतियोंको सत्ता सौपनेकी एक शर्त रखी गयी थी। वह शर्त थी, हिंदू, मुस्लिम और बहिष्कृत तीनो समुह मिलकर एक सर्वमान्य घटना (संविधान) तैयार करे। मोतीलाल नेहरु समिती, गोलमेज परिषद के सदस्य और तेजप्रताप संप्रु समितीने तीन बार संविधान बनाया। किंतु वह तीनों संविधान अंग्रेजोेने स्वीकार नहीं किये। अंतमे विश्‍वरत्न डॉ. बाबासाहेब के सहयोगसे बने संविधानको मान्यता देकर देश के भारत और पाकिस्तान एैसे दो टुकडोमें बाटकर सत्ता नेहरु, गांधी, राजेंद्र प्रसाद, संघ परिवार प्रमुखोंके हवाले हाथोंमे सौपकर भारत छोड़कर चले गये। नेहरु प्रधानमंत्री बनाये गये। उन्होंने संघ परिवार के इशारोंपर शासन करना शुरु किया। डॉ. बाबासाहेब निर्मित और अंग्रेजोद्वारा स्वीकृत लोकतंत्रवादी संविधान नेहरु मंत्रीमंडलने उठाकर कचरापेटीमें फेक दिया और मनुस्मृति धर्मग्रंथपर शासन करना शुरु किया। बहुजन प्रधानमंत्रीको उन्होंने टिकने नहीं दिया। बार बार संघ विचारकको प्रधानमंत्री और मंत्री मंडल बनाकर आज तक आर्य ब्राह्मण बहुजनोंको गुलाम बनाकर शोषण करते आ रहे है। छ. शिवाजी, शाहू, म. फुले, डॉ. बाबासाहेब, मा. कांशीराम, अन्य समाजसुधारको और संतोने ब्राह्मणवादसे मुक्ती दिलाने के कई सुत्र बताये। किंतु आज तक बहुजन समाज संघटित न हो पाने के कारण अब उनके हिस्सेमें ब्राह्मण बनिया और तत्सम समुहोंकी निर्मित बहुजनोंकी गुलामी, वेठबिगारी, अन्याय, अत्याचार अखंड बने रहनेकी संभावना दिखाई दे रही है। संविधान जलाना, बदलनेकी घोषणा करना, आरक्षण भरती, बढ़ती बंद करना, कॉलेजियन, लॅटरल भरती करना, रोस्टर बदलना, नीजीकरण, उदारीकरण, जागतिकीकरण, सेझ, मॉल्स निर्मिती योजनाओंपर अंमल, नोटबंदी, भ्रष्टाचार ना रोकना, क्रिमीलेअर लगाना, उद्योगपतिओंको कर्जा देकर विदेश भगाना, बँकोका नीजीकरण करना, विदेशी काला धन वापस ना लाना, प्रस्थापितोंको प्रशासनमें लेना, अन्य पीछड़ोंकी जनगणना ना करना, उन्हें राजकिय आरक्षण ना देना। संघपरिवार, मंदिरोंको प्रोत्साहन देना, हिंदु, हिंदुत्व, हिंदु राष्ट्रकी घोषणा करना, अल्पसंख्यांकोको देशसे भगानेकी घोषणा करना। देशकी साधन-संपत्ति बेचना, रिझर्व बँक लुटना, देशका सोना, चांदी, हिरे, मोती बाहर देशमें छुपाना, स्फोटक पदार्थोका संग्रह करना, अमली पदार्थ बहुजन बहुलक्षेत्रमें भेजना, हिंदु-मुस्लिमोमें झगड़े लगाना, महंगाई बढ़ाना, किसान, मजुर, जवानोंका शोषण करना, विदेशी आक्रमकोंके साथ ढिलाई बरतना, विदेशी कर्ज उठाकर देशपर कर्जा बढ़ाना, विभिन्न करोद्वारा सामान्यजनोंका शोषण करना, कारखानाद्वारा निर्मित मालोंके कई गुणा भाव बढ़ाना। किसान, मजुर, जवानोंद्वारा निर्मित चीजोंके भाव घटाना, इंधनोंके अमर्याद भाव बढ़ाना, बहुजनोंको नागरी सुविधा ना देना, उनके नुकसानोंका मुआवजा ना देना; केवल प्रस्थापितोंको बड़े बड़े नौकरीके पद देकर उनके वेतन बढ़ाना, बहुजनोंको केवल तृतीय-चतुर्थ श्रेणीकी नौकरीयां देना एवं ठेकेदारी तरिकेसे 10-12 हजार मासिक देकर 12 घंटे काम लेकर उनका शोषण करना। पीछड़ोका, विनयभंग, इज्जत लुटना, उनका खून करना, घर जलाना, मॉब लिचिंग करना, उन्हे न्याय ना देना, प्रस्थापितोंका संरक्षण कर बहुजनोंको दंड, शिक्षा एवं जेल भेजना, उनको नागरी सुविधाये ना देना, आदी तरीकेसे बहुजनोंकी उन्नति, रोककर उनका केवल बैलोकी तरह उपयोग हो रहा है। राजकारणमें बहुजनोंको पद दिये जा रहे है, किंतु उन्हें बहुजन विकास के अधिकार नहीं दिये जा रहे है। बहुजनोंका सेवा क्षेत्र सीमित करके, भूमिअधिग्रहन कानुन के अंतर्गत कृषिभूमि हडप करने के कानुन बनाये जा रहे है। 340 कलमकी ओर और कलम 244 की सुचि नं. 5/6 का उल्लंघन करके आदिवासियोंकी जमीन, जल, जंगल, हडप करके आदिवासियोंको विस्थापित करने के प्रयास हो रहे है। घुमंतु समुहपर लादा हुआ गुनहगारी कानून हटाने के बजाय वह और मजबूत किया जा रहा है। बेगुनाहगार समुहोंको गुनहगार बताकर उनका संव्हार किया जा रहा है। बहुजनोंकी शिक्षा, नौकरी, स्वास्थ्य, रस्ते, पाणी, बिजल, घरकुल आदी के ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। केवल मंदिर और आर.एस.एस. कार्यालय निर्माणपर जोर दिया जा रहा है। भारतीय नौकर वर्ग कम करके विदेशी नौकर लाने के प्रयास चालू है। बहुजनोंके डरसे विदेशी सेना भी भारतमें लानेकी संभावना है। गरीब तबकेको पॅकेज ना देकर उद्योगपतियोंको पॅकेज, बिना ब्याजी कर्जमुक्त भूभाग, बिजली दी जा रही है। किसान-मजदुरोंका हर एक क्षेत्रमें शोषण करके उनकी कृषिभूमि हड़प करनेकी योजनाये बनायी जा रही है। देशको समृद्ध, सुखी, सुरक्षित किसान, मजूर और जवानोंने बनाया है। किंतु देशका मलीदा श्रम न करनेवाले प्रस्थापित समुह खा रहे है। आर्य ब्राह्मणकों सिंधुवासियो बहुजनोंने संघर्षमे हराकर शरणार्थीके रुपमें आश्रय दिया था। यह आर्य ब्राह्मण पुरोहित एवं भटके रुपमें भिक्षा मांगकर उदरनिर्वाह करता था। घर घर भिक्षा और दान मांगे समय ‘जय जय रघुवीर समर्थ, भिक्षादेही’ कहकर ये हर घरसे भिक्षा जमा करते थे। इस भिक्षा व्यवसायको वे श्रेष्ठ मानते थे। इसका प्रमाण निम्न मराठीभाषी श्‍लोक है। पेशवाईमें भिक्षा मांगते समय वे अन्य जनसमुहको कहते थे कि, ‘ब्राह्मणाची दिक्षा, मागितली पाहिजे भिक्षा, गोराज्य, वाणिज्य, कृषि याहुनही श्रेष्ठ भिक्षा। किंतु ब्राह्मणोंने शरण लेकर बहुजनोंको धोका देकर, विश्‍वासघात करके उनकी गोरी कन्याओंको बहुजनोंको देकर विश्‍वास संपादन करके बादमे विश्‍वासघातसे राजाओंको मारकर, आपसमें लढाकर षडयंत्रके माध्यमसे सत्ता प्राप्त की और शासक बन बैठे। यदि युरोपियन आर्य (अकृषक) ब्राह्मण भारतमें ना आते तो बहुजनोंका भारत विश्‍वमे सर्वशक्तिमान और सर्वगुण संपन्न देश रहता था। किंतु ब्राह्मणोंने भारत के बहुजनोंको सत्ता, संपत्ती, शिक्षा, साधन एवं शस्त्र धारण करके युद्ध करनेसे वंचित करने के कारण और ब्राह्मणोंकी पौरुषहिनता, परोपजीविता के कारण भारतमें अनेकानेक विदेशी लोग घुस आये और वे ब्राह्मणोंको और कुछ बहुजन शासकोंको संघर्षमे हराकर यहांके शासक बन बैठे। ब्राह्मणोंने बहुजनोंसे शत्रुता और विदेशीयोंसे शासनमें हिस्सेदारी के लिये मित्रता रखने के कारण बहुजन ब्राह्मणोंकी गुलामी के साथही साथ विदेशियोके भी गुलाम बन गये, यह वास्तव इतिहास है। भारतमे परोपजीवी, अश्रमी, विषमतावादी, जाति, वर्ण, देव, दैव, अवतारवादी विदेशी युरोपियन आर्य ब्राह्मणोका आगमन ना होता, तो भारतका आजका पुरा स्वरुप, जात, धर्म, देव, दैव, मंदिर, क्षेत्र, भटमुक्त होता। इतनाही नही तो भारत विश्‍वका सर्व श्रेष्ठ, महान, समृद्ध, सुखी, भ्रष्टाचार मुक्त मातृसत्ताक, निरर्थक कर्मकांडरहित स्वयं सुरक्षित, विश्‍वकी सुरक्षा करनेवाला, स्वावलंबी, स्वाभिमानी, सार्वभौम, विषमतामुक्त, सभी देशांको सहयोग करनेवाला, सभीका मार्गदर्शक, सभीका गुरू; विश्‍वप्रमुख रहनेवाला था। आज के चीन, रशिया, अमेरिका, फ्रान्स आदी देश भारत के इशारेपरे चलते। भारत कर्जमुक्त, शुद्ध-जल, अन्न, दही, दूध, घी से पूर्ण, स्वास्थ्यमयुक्त आदर्श और सुंदर आकर्षक देश रहता। गुणवत्ता के क्षेत्रमें भारत सबसे आगे रहता। भारतमें जो विकृतिया आज पायी जाती है, वे आर्योकी अनुपस्थितीमें आज नही दिखाई देती। मातृप्रधान, श्रमप्रधान, शोषणमुक्त, न्याययुक्त मानवी आदर्श संस्कृति; सभ्यताका यहा बोलबाला होता। जयजयकार होता। ब्राह्मणवाद के कारण जो विकृतिया, झूटा इतिहास, झूटे ग्रंथ, चमत्कारी कर्मकांड, चमत्कारी बाबा, स्वैराचार, दुराचारका यहा नामोनिशान ना होता। आज के भारतकी दुरावस्था, बहुजनोंकी गुलामी, देशकी गुलामी आदी सभी विकृतिया, बुराईयोंका कारण एकमात्र परोपजीवी, अश्रमी, अकृषक, विलासी, भोगवादी, भ्रष्टाचारी, स्वैराचारी, श्रेष्ठतावादी ब्राह्मणही है। बनिया, गुजराती, राजपुत, ठाकूर भी उनके जैसेही या उनके भाई है। इन लोगोंका कहना है कि पुरा पीछड़ा वर्ग मूर्खही नहीं तो महामूर्ख है। क्योंकि, पीछड़ा वर्ग कुल संख्याके 85 प्रतिशत होते ही हम 15 प्रतिशत लोग उनपर राज करते हैं। उनको गुलाम, बैल बनाकर उनका प्रयोग मनचाहा कर रहे हैं। फिर भी वे संघटित बनकर उनके अधिकार और राज लेने के लिये तैयार नहीं हो सकते। वे संघटित ना हो, इसके लिये हमने उनको अनेक जाति उपजातियोंमे, पंथ, संप्रदाय, धर्मोमे, देव-देवियोंमें बाट दिया है। दुसरी और हमने झूटे, काल्पनिक देवता, कर्मकांड निर्माण कर दान-दक्षिणा के माध्यमसे लुटनेका कार्यक्रम बनाया है। उनसे बनायी चीज हम मिट्टीमोल खरिद लेते है और वापस उनको चौगुणा भावसे बेचकर उनको हमारे आगे बढ़ने नहीं देते। हमने निर्माण किये कारखाना चीजोंके भाव हम दसगुणा रखकर पीछड़ोंको लुट लेते है और बगैर कष्ट किये हम आरामी, विलासी, भोगवादी, श्रेष्ठतावादीकी जिंदगी बिताते है। इसी कारणवश हम कहते रहते है, कि महामूर्ख पीछड़ोकी कमाई और हम बुद्धिमानोंका खुराक होता है। पीछड़ा वर्ग यह, गेहुके आटे के भांति होता है। आटा जितना कुटा जाता है, उतनी चपाती चिकनी, नरम बनती है। इसी प्रकारसे पीछड़ोंको जितना लुटा जाता है, उतना हमे बुद्धिमानों, अश्रमी, भोगवादियोंको लाभ होता है और बुद्धिवादी (समाज और देशद्रोही) बैठकर खाते रहते है। इन पीछड़ों, मूर्खो, बैलों, गुलामोंको भरपानेने के लिये हमने और एक बहुतही भुलावेकी कहावत गढ रखी है। इस कहावतकी नशामें यह मूर्ख लोग पशुपालन, कृषिकार्य, चीजोंका निर्माण काम, मिट्टीके, सफाईके काम कम मुआवजेपर करते रहते है, जिसके कारण हमे बहुत बड़ा लाभ, मुनाफा होते रहता है और पीछड़ा वर्ग गोबर के किडेके भांति इन्हीं कामोंमे खुष रहता है। यह आकर्षक, भुलानेवाली, भ्रमित करनेवाली कहावत निम्न है। ‘सर्वोत्तम खेतीकाम, मध्यम बेपार और कनिष्ठ नौकरी’ इस कहावतकी माध्यमसे किसानों, मजदुरों बहुजनोंको बहुत भ्रमाया और उन्होंने बेपार और नौकरीके माध्यमसे किसानोंको, सरकारी तिजोरीको लुटा। दुधकी साय, मलई, घी, ब्राम्हण, बनिया, उद्योगपतियोंने खाया और बहुजनोंको जलमिश्रित छाछ भी पर्याप्तमात्रामें नहीं मिलने दी। आज की मोदी सरकार तो 2014 से बहुजनोंको लुट रही है। उनका संव्हार कर रही है और देश के साधन संपत्ती उद्योगपतियोंके हवाले कर, बँकोसे बड़ी बड़ी रक्कमा देकर विदेशोंमे भेजकर प्रस्थापितोंकी भविष्यकालीन व्यवस्थामें जुटा रही है। प्रस्थापित वर्ग इस सच् चाईको अब जान गये है, कि, पीछड़ा वर्ग, बहुजन अब बड़ी संख्यामें जागृत हो चुका है और आनेवाले समयमें वह शासक वर्ग बनकर हमारी भोगवादी, शोषक, अमानवी जीवनशैली नष्ट करनेवाला है। हमपर बहुजनोंजैसी जिंदगी जीनेका समय आनेवाला है और समयमे हमे जिंदा रहना बहुतही मुश्किल होनेवाला है। इस संकट से प्रस्थापितोंने यानी ब्राह्मण, बनिया, राजपुत, ठाकूर, पारसी, सिंधी, गुजराती आदी जनसमुहने उनके अधिकारमें देश बेचकर देशकी पुरी साधन संपत्ती विदेशोंमे जमाकर, विदेशी नागरीकत्व ग्रहन करके भारत देश छोड़ देनेका निर्णय लिया है। बहुजन प्रतिनिधी सचमुच मूर्ख, स्वार्थी और उपरोक्त वर्ग के दलाल, गुलाम, समर्थक होने के कारण और उनको हस्तक्षेप करनेका कोई अधिकार न होने के कारण दुष्ट, विकृतवृत्ती के प्रस्थापित मनुवादियोंने पुरा भारत देश बेचकर विदेशमें स्थाईक होनेका निर्णय ले लिया है, एैसा मेरा पक्का तर्क और अंदाज है। बहुजनोंके हितचिंतक, तथागत सिद्धार्थ गोतम, राजा सम्राट अशोक, छ. शिवाजी, रा. शाहू, म. फुले, विश्‍वरत्न डॉ. आंबेडकर, मा. कांशीराम, कई समाज सुधारक, बसवेश्‍वर, कबीर, तुकारामकालीन संतोंने उम्रभर कष्ट, त्याग, बलिदान कर बहुजनोंको सेठजी, भटजी, लाटजियोंसे सावधान रहकर संघटन, संघर्ष के माध्यमसे सत्ताप्राप्तिका संदेश दिया था। बहुजन पढ़कर कुछ संख्यामे, कुछ सिमामें बुद्धिमान, स्वावलंबी अवश्य हुआ। किंतु वह आज तक संघटित न होने के कारण और अपने सच्चे दुश्मन मित्र यानी भाई-बहन कौन है, इसकी पहचान न करनेसे और प्रस्थापितोंके दलाल, चमचे बनने के कारण बहुजन आजकी तिथीमें सब कुछ खोकर बरबाद होने के या विनाश कर लेनेके कगारपर खड़ा है, इसमें कोई संदेह नहीं। यदि सभी वंचित, बहुजन, मुलनिवासी, आदिवासी उपरी बहुजन हितचिंतक महापुरूषोंने बताये मार्गसे चलते, विश्‍वरत्न, संविधान के शिल्पकार, भारतरत्न डॉ. बाबासाहेब के वचनोंका, उपदेशोंका पालन करते, पढ़ने के बाद संघटित बन जाते, जातियताका अंत करते, सत्ताप्राप्तिकी संघटित प्रतिज्ञा करते, महत्त्वपूर्ण पदोपर विराजमान हो जाते, शत्रु-मित्रकी पहचान कर लेते, बाबाने दिये बाविस प्रतिज्ञाका पालन करते; मनुवादी झूटे साहित्यका त्याग कर देते, अपने पूर्वजोंका प्राचीन आदर्श, प्राकृतिक, मानवतावादी, जाति, धर्म, देव-देवी, कर्मकांडमुक्त इतिहास खोजकर बहुजनोंको पढ़ने के लिये देते, शत्रुसे हमेशा दूर रहनेका प्रयास करते, गोरी अप्सराओंके जालमे ना फसते, दुम हिलानेवाले कुत्ते और पैर चालनेवाले स्वार्थी, समाज-देशद्रोही दलाल, चमचे पैदा ना होते तो हमारे हितचिंतक महापुरुषोंका सपना हम पुरा कर सकते थे। किंतु जो करना था सो नही किया, अब पछताये होत क्या जब चिडिया चुग गयी खेत। संघटित बुद्धिवादियोंकी जय और असंघटित महामूर्खोकी पराजय होना यह सृष्टिका अटल नियम है। उसे केाई टाल नहीं सकता। अब सवाल यह खड़ा होता है, कि भारत सरकार हर दस सालके बाद अन्य पीछड़ा वर्ग, घुमंतु वर्ग इन दोनो समाज समुहको छोड़कर बाकी सभी जनसमुहकी जनगणना करती है। किंतु 1951 से आज 2021 तक अन्य पीछड़ा वर्ग यानी (बलुतेदार-आलुतेदार, घुमक्कड, आदी की जनगणना नहीं कर रही है और जनगणना भविष्यमे भी करना नहीं चाहती। देशकी हर-एक जीवोंकी, चीजोंकी गणना सरकार करते आ रही है। किंतु जिस अन्य पीछड़ा वर्ग और घुमंतु समुहकी देशके विकासमें, शत्रुओंसे संघर्ष करनेमें, देशकी सीमापर मर मिटनेमें भी असामान्य, मौल्यवान योगदान रहा है और आज भी है, उनकी जनगणना कर उन्हें संख्या के अनुपातमे हर क्षेत्रसे न्याय या बराबरीका स्थान ना देना यह बहुतही बड़ी बेईमानी और कृतघ्नता, स्वार्थपरता है। वास्तवमें सरकारको चुनकर लानेमें इनकी बड़ी संख्या है। जब अन्य प्रस्थापित वर्गोकी सरकार चुनकर आनेपर अवश्यकतानुसार सुविधाये प्रदान करती है तो अन्य पीछड़े, घुमंतु वर्गको भी हर क्षेत्रमें सवर्णोके भांति सुविधाये मिलनीही चाहिए। किंतु प्रस्थापित वर्ग इन पीछड़ोका मतदान लेकर चुनकर तो सरकार बनाती है। पर उनके अधिकार न देकर उनके श्रमका शोषण आज तक करते आ रही है। उन्हें निरक्षर, बेकार, बनाकर, गुलाम बनाकर उनका उनके सुख, विलासी, भोगवादी जीवनके लिये प्रयोग कर रही है। यह अमानवियता, निर्दयता, अलोकतांत्रिक व्यवहार है। इसका कारण भी उनके स्वार्थका, पौरुषहीनताका और परोपजीविता है। प्रस्थापित आजका शासक ब्राह्मण, बनिया, गुजराती, पारसी, ठाकुर, राजपूत यह वर्ग कृषि, पशुपालन, मिट्टी पत्थरकाम, सफाई, संरक्षण काम नहीं करता। यह सभी समुह अन्य पीछड़ा वर्ग, कृषक, पशुपालक, शिल्पकार वर्ग, मजुर-आदीके श्रमोंको, कष्टोंका शोषण करके, आरामदेही जीवन जीता है। कष्ट करना, पसीना बहाना, धोकेमें पड़ना और मरनेसे यह वर्ग हमेशा डरता है। यह सभी काम पीछड़ा वर्गही करता है और इन पीछड़ोंको हर क्षेत्रमें लुटकर, फसाकर, झूट बोलकर, उनके अधिकारोंका दुरोपयोग कर, पीछड़ोंके साथ अमानवियताका व्यवहार करते हैं। यदि ऐसा व्यवहार नहीं किया तो उन्हें विलासी, भोगवादी, आरामका जीवन नहीं मिलेगा। पेट भरनेके लिये उन्हें भी बहुजनों, पीछड़ोंकी तरह कृषिकाम, पशुपालन, मिट्टीकाम करना पड़ेगा। ऐसा कष्टमय जीवन जीनेका समय उनपर ना आये, इस उद्देशसे वे पीछड़ोंकी उन्नति नहीं होने देते। उन्हें अच्छी अच्छी नौकरियोंमे, लाभप्रद व्यापारमें, राजकारणमें, ठेकेदारीमे, घुसने नहीं देते। इतनाही नहीं तो अच्छी शिक्षा ना मिले, वे अनपढ बने रहे, वे हमारी बराबरीमे समझमें ना आये। उनको उनके हक्क अधिकार समझमें ना आये। लोकतंत्र भी समझमे ना आय और हमेही चुनकर लाते रहे हौर हम अखंड रुपसे मलीदा खाते रहे, ऐसा उनका दुष्ट मन है। यदि पीछड़ोकी जनगणना की गयी तो वे जागृत हो जायेंगे और संख्याके अनुपातमें सभी क्षेत्रोंसे हक्क अधिकार मांगते रहेंगे। स्पर्धा बढेगी। प्रस्थापितोंका हर क्षेत्रोंमे घट होगी। प्रस्थापितोंमे बेकारी फैलेगी। अंतमे प्रस्थापितोंको पशुपालन, कृषिकाम, मिट्टी और सफाई काम करना पडेगा। साथही प्रस्थापितोंका श्रेष्ठत्व कम होगा। पीछड़ोपर आज तक जो अन्याय और अत्याचार हुये, हो रहे है, वैसे प्रस्थापितोपर भी होंगे। बहुजनोंकी स्पर्धामे हम नहीं टिकेंगे। लाचारी और गुलामी के दिन आयेंगे। इस सच्चाईको प्रस्थापित समुह अच्छा जानता है। ऐसे बुरे दिन उनपर ना आये, इस विचारसे वे आज अन्य पीछड़ा वर्ग और घुमंतु वर्गको कुछ भी ना देनेका निर्णय कर चुके है। भविष्यमे वे एस.सी., एस.टी., अल्पसंख्य समाजकी सुविधा खत्म करेंगे। संविधान, लोकतंत्र और बहुजनोंका प्रतिनिधित्व खत्म करेंगे। चुनाव भी खत्म करेंगे या विदेशोंमे बिक्री करेंगे। बहुजनोंके दलाल, चमचे प्रतिनिधी आज तक स्वार्थके कारण चुपी साधे बैठे थे। गुलामोंके पैर चाट रहे थे। किंतु बहुजन जनता अब इन चमचोपर दबाव डालनेके कारण उनकी भी निंद उड गयी है और संघटित कर संघर्ष करनेकी तयारीमे लग गये है। किंतु स्वार्थके कारणवश पद छोड़नेके लिये और सरकार गिरानेकी कोशीसमें नहीं है। बहुजन जनता जब इन प्रतिनिधियोंका घुमना-फिरना बंद करेंगे, तभी ये स्वार्थी राजीनामा देंगे। सरकार गिरेगी और बादमें बहुजनोंका संघटन हुआ तो बहुजनोंकी सत्ता आयेगी। अन्यथा आज बहुजनोंकी गुलामी अटल, अखंड बनी रहेंगी। जय भारत - जय संविधान प्रा. ग.ह. राठोड

G H Rathod

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