मानव इतिहासकी कुछ चिंतनीय और संशोधनीय घटनाये

मानव इतिहासकी कुछ चिंतनीय और संशोधनीय घटनाये

1) इतिहासकारोंका मानना है, कि मानव समुहका इतिहास आजसे लगभग दससे सात हजार सालका पीछला इतिहास उपलब्ध हुआ हैं । इसके पूर्व के इतिहास के कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं। भारत का इतिहास भी आज से साडेसात हजार साल पीछेका मिला है। आजसे पीछे साडेसात हजार सालपूर्व भारत भूमीपर किसी भी मानव समुहकी बस्ती नहीं थी ऐसा इतिहासकारोंने बताया हैं। भारतमें प्रथम बस्ती इसापूर्व 7000 के लगभग आज के पाकिस्तान के बलुचिस्तान राज्यमें काछी (मेहरगड) मैदानपर बसी थी। यह बस्ती यहांपर लगभग 2500 सालतक बनी रही। इसके पश्‍चात इस बस्ती के समुह धीरे धीरे इसापूर्व 4500 के लगभग सप्तसिंधू नदीकी ओर मोहेंजोदडो, हडप्पा, कालीबंगा आदी क्षेत्रोंकी ओर बढ़ और वहांपर उन्होंने इस सप्तसिंधू नदियोंके किनारोपर नागरी बस्ती बढ़ाई। यहांपर उन्होंने पशुपालन, कृषि, व्यापार, शिल्पकारी के अनेक उद्योग करके आदर्शनगर, आदर्श बस्ती बनाकर जनतंत्र की जड़े मजबुत की। इसापूर्व 2500 मे समुह यहांपर सुख, शांति एंव समृद्धि, विकास के शिखरपर था। यह समुह आफ्रिका से लाल समुद्र के मार्गसे कई सालोंके पश्‍चात भूमध्य समुद्र के पूर्व किनारेपर आ बसा था। यह कई साल रुकनेके पश्‍चात यह समुह पूर्व इजिप्त, इराण, इराक, अफगणिस्तान के अनेक खिंडो (दरोंसे) भारतमे पहुचकर प्रथम बलुचिस्तानमेर बादमें पुरे भारतमें फैला था। यह मुलनिवासी, आदिनिवासी भारतवासी (आजका बहुजन) भारतका राजा, शासक, मालक था। इनकी सभ्यता, संस्कृति, जीवनशैली यह आर्य ब्राह्मणोंद्वारा उनका पराभव होनेतक प्रकृति, पूर्वज, पशु, मातृवंदक और जात, धर्म, कृत्रिम देवी-देवता, कर्मकांडमुक्त थी। यह सभी लोग, नागवंशी, द्रविडवंशी थे। इनकी सिंधु, नाग, द्रविड, मोहेंजोदडो, हडप्पा, कृषि, शिल्पकारी, व्यापारी, समतावादी संस्कृतिका विनाश उत्तर ध्रुव प्रदेशोंसे आये हुये आर्य ब्राह्मणोंद्वारा इ. पू. 1700/1750 के किया गया। तबसे यह जनसमुह बड़ी संख्यामें नगरोंसे दूर देशकी चारों दिशामें पहाड़ी क्षेत्रोंमे रहने लगा। आज भी इस जनसमुहकी बड़ी संख्या नगरोंसे दूर पहाड़ी पर्वतीय क्षेत्रों मे रहती हैं। पश्‍चात आर्योकी पीछली टोलियोंके साथ अधिक संख्या के साथ सुुंदरीयां आने लगी तब आर्योने इन सुंदरियोंको भेट या विवाह के रुपमें सिंधुवासियोंके राजा एवं राजपुत्रोंको ब्याहकर दामाद और समदी बनाना शुरु किया। इस कारण दोनो समुह मिलजुलकर रहने लगे। किंतु मुलनिवासियोंद्वारा आर्योका धन कमानेका और पदपर रहनेका अधिकार नही दिया गया था। आर्य ब्राह्मण भिक्षा और दान-दक्षिणा के आधारपर मुलनिवासियोंंकी सेवा करते थे। मुलनिवासी मात्र अनेकों सुंदरियोंके भोग-विलासमे और सुख लेनेमें खुष रहे और प्रशासन साथही सामान्य जनोंकी सेवाकी ओर उनका ध्यान घट गया। यह सुअवसर समझकर आर्योने एक एक राजापर संघटीत रुपसे हमला करके क्रमश: सभी राजाओंका पराभव किया और खुद शासक बन गये और मुलनिवासी (बहुजनोंको) गुलाम बनाया। यह गुलामी इ.पू. 1750 से तथागत सिद्धार्थ गौतम के धम्म स्थापना तक थी। इस प्रकार आर्य दुबारा सिद्धार्थ गौतम शासन कालमें मुलनिवासी के गुलाम बनकर रहे। क्योंकि सिद्धार्थ गौतम ने आर्योको धम्म अनुयायी बना लिया था। किंतु दुबारा आर्योने गौतम धम्म अनुयायी राजा बृहद्रथकी हत्या कर आर्योकी शासन, प्रशासन व्यवस्था भारतमें मुगल, राजपुत, मराठा शासनकालके अंततक 40 प्रतिशत तक थी। इसवीसन 1713 में आर्योने पुन: मुगल, मराठा, राजपुतोंका विश्‍वासघात करके पेशवाई स्थान की। मुगलाई, राजपुत और मराठाशाहीके नष्ट होने के पश्‍चात ब्रिटिशोंके सहयोगसे यह पेशवाई 1817 के अंततक रही। किंतु 1 जनवरी 1818 को भीमा कोरेगांवकी लड़ाईमे पेशवाई नष्ट होने के बाद भारतमें ब्रिटिशोंका राज आया। किंतु ब्रिटिश प्रशासनमें लगभग 80% ब्राह्मणोंकीही हिस्सेदारी थी। ब्राह्मण आर्योने और ब्रिटिशोंने जहातक हो सके मुलनिवासियोंका वर्चस्व घटाकर, लुट, शोषण करके आर्य ब्राह्मणोंकाही वर्चस्व बढ़ाया। अंतमे 1947 के पूर्व इन ब्राह्मणोंने मुलनिवासियोंके विरोधमे भडकाकर ब्रिटिशोंके विरोधमे आंदोलन खड़ा किया। इस स्वतंत्रता आंदोलनमें आदिवासियोंने बहुत बड़ा त्याग और बलिदान किया। आंदोलनके डरसे ब्रिटिशोंने देश छोड़नेका निर्णय लिया और देश छोड़कर चले गये। 2) आर्य ब्राह्मणोंकी भारतमे आगमनकी तिथि प्रथक प्रथम इतिहासकारोंद्वारा प्रथक प्रथक बताई जाती है। सामान्यत: भारतमें आर्य ब्राह्मणोंका आगमन का समय इ.पू. 3250 से इ.पू. 1500 तक बताया जाता है। किंतु सर्वमान्य समयकाल यह इ.पू. 2800 से 2000 के बीचका माना जाता है। यह आर्य ब्राह्मण उत्तर ध्रुवीय युरोप खंड के 21 देशोंसे टोली टोलीसे भारतमे आये या घुसे थे। यह कृषि कर्म, दूध, दही, अन्न ग्रहनसे अपरिचित, असभ्य, असंस्कृत, घुमंतु, जंगली, अकर्मण्य, स्वैराचारी, लड़ावू, अश्‍वधारी, मांस, कंदमुल, फल आहारी, भोगवादी, स्वर्गवादी, विश्‍वासघाती, ग्रामिण जीवन, जंगली जीवन जीनेवाले थे। यह समुद्र उत्तर ध्रुवीय है, यह बात बाल गंगाधर तिलक, नेहरु, गांधी और अन्य कई सैकडों ब्राह्मणवादियोंने प्रमाणोंके साथ कही है। जब यह आर्य समुह भारतमें घुसा तो प्रथम वह सप्तसिंधूके और मोहेंजोदडो हडप्पा के पास पडोस के जंगलो और पर्वतीय क्षेत्रोंमे घणे जंगलो, दर्रे, गुफा आदीके क्षेत्रोंमे आ बसे। वास्तवमें यह आर्य समुह जंगली, स्वैराचारी, अन्नाहारसे अपरिचित रहने के कारण भारतमे आतेही यहांके लोगोंकी जीवनशैली देखकर वह सोचमे पड़ा और डाकू बनकर वह सिंधुनिवासियोंको लुटने, तोडफोड करने, जलाने और कुछ लेकर जंगलोंमे जाकर छिप जाने लगा और वहांसे हररोज सिंधुवासियोंपर हमला करने लगा। यह समय इ.पू. 2000 के बादका है। जंगली आर्य भारत आनेपर पक्के लुटारु, डाकेखोर बन गये। वे मुलनिवासियोंके ना केवल अनाज, पशु, कपडा और अन्य साधन लुटते थे, वे फसले बस्तीयां जलाते थे। मनुष्योंका भी संव्हार करते थे और नारियां भी उठाकर ले जाया करते थे और उनका जंगलोमें उपभोग लेते थे। दोनो पक्षोमें कई सालोतक संघर्ष चलते रहा। दोनो ओर की मनुष्य हानि हो रही थी। आर्यो के साथ बहुत कम महिलाये थी। क्योंकि वे स्वैराचारी, अमिथुनी रहा करते थे। किंतु आर्योकी नारियां अति गोरी थी और सिंधुवासियोंकी महिलाये कृष्णवर्णीय थी। दोनोंके संघर्षमे मनुष्य हानि तो होती थी। किंतु परस्परोंकी महिलायोंकी भी लुट होती थी। आर्य ब्राह्मणोंकी नारियां गोरी, बहुतही सुंदर और आकर्षक होती थी। अत: सिंधुवासी राजा-महाराजा, युवक आर्योकी ललनाये आक्रमणका ढुंढ ढुंढकर लाने लगे और कई ललनाओंका भोग लेने लगे। कुछ दिनोंके ब्रिटिश शासक भारत छोड़कर चले गये। किंतु देश के भारत और पाकिस्तान ऐसे दो टुकडे बनाकर गये। इसके साथही जो आर्य ब्राह्मण पीछले हजारो सालोंसे आदिवासियोंका शोषण कर रहे थे और उन्हें गुलाम बना रखा था, उन्हींके हाथोंमे सत्ता सुत्र सौपकर चले गये। इ.पू. 1700 में सिंधुघाटी सभ्यताका विनाश करने के बादसे बीचका सिद्धार्थ गौतम और उनके अनुयायिओंका शासनकाल छोड़कर आजतक आदिवासी, मुलनिवासी आर्य ब्राह्मणोंकी, मुगल मुसलिमोंकी, ब्रिटिशोंकी गुलामी करते आ रहे है और 1947 के पश्‍चात ब्रिटिशोंकी ओरसे सत्ता प्राप्ति के बाद भी मुलनिवासी, आदिवासी, आजका पुरा बहुजन वर्ग यह आर्य ब्राह्मणोंका गुलाम है और भविष्यमे भी रहेगा। क्योंकि आजतक 85% बहुजन आर्य ब्राहम्णोंके विरोधमें संघटित नही हो पाये है और भविष्यमे भी संभावना नहीं के बराबर है। क्योंकि आदिवासी, मुलनिवासी, बहुजन आर्य ब्राह्मणोंका हजारों सालोंसे वर्चस्व रहने के कारण आर्य ब्राह्मणोंके रंगमे, ढंगमे, जीवनशैलीमे, समर्थनमे मिलजुल जानेके कारण उन्हें उनकी गुलामीका कोई दु:ख नहीं हैं। हमेशा अंंधेरेमें रहनेवाले जीवको उजाला पसंद नहीं रहता, वह अंधेरेमेही रहना चाहता है। ठिक इसी प्रकार बहुजनोंको हजारों सालोंसे ब्राह्मणोंकी गुलामी में रहने के कारण अब वे गुलामी का त्याग न करके गुलाम बनकरही रहना चाहते है। इस गुलामीको चालनेवालोमें अन्य पीछड़े वर्गकी मतलब बलुतेदार-आलुतेदार और घुमंतु समुहकी बहुत बड़ी संख्या दिखाई देती है। इन समुुहोंको आर्य ब्राह्मणोंने उनका सच्चा और शासनकर्ता प्राचीन वर्ग होनेका इतिहास और लोकतंत्र के हक्क अधिकार मालूम न होने देनेके कारण आजकी उनकी गुलामी है और आनेवाले समयमें भी रहनेवाली है। अत: ब्राह्मणोंकी गुलामीसे मुक्त होनेवालोंका कर्तव्य है, कि उन्होंने गुलामोंको उनके प्राचीन इतिहास और लोकतंत्र उनके हक्क अधिकारोंकी जानकारी देकर, संघटित बनाकर सत्ता प्राप्ति के प्रयास किये जाने चाहिए। अन्यथा गुलामी अटल है। प्रा. ग. ह. राठोड

G H Rathod

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