क्या और कौन है तथागत बुध्द

क्या और कौन है तथागत बुध्द

क्या और कौन है तथागत बुध्द प्राचीनकालमे भारतमे शासन व्यवस्था के रुपमे गण व्यवस्था थी। गण यानी सिमित जन समुहकी एक छोटी टोली, कबिला या परिवार, संघ भी कह सकते हो। मध्यकालमे भारतमे शाक्य, कोलीय और वज्जी नाम के तीन प्रमुख गण थे। और भी छोटे-छोटे कई गण थे। शाक्य गण का प्रमुख या राजा शुध्दोधन नामसे पहचाना जाता था और किसान परिवारका था। उसकी सहचारिणी, पत्नी मायादेवी कोलीय गण की थी। इसी किसान परिवार के शुध्दोधन और पत्नी मायादेवी के पुत्ररत्न सिध्दार्थ थे। इनका वंश एवं कुलनाम गोतम था। सिध्दार्थ गोतमकी पत्नी यशोधरा थी और इस दंपती को राहुल नामका पुत्ररत्न भी था। सिध्दार्थ राजपुत्र होने के कारण सुख भोगी थे। किंतु सत्यकी खोजमे उन्होंने गृह त्यागकर सन्यासिनत्व धार कर लिया। संन्यासी बननेके पश्‍चात वे संसार छोड़कर सत्य ज्ञान प्राप्ति के लिये जंगलमे चले गये। जंगलमें बैठकर चिंतन करके और कई त्यागी महात्माओंसे संपर्क करके वैज्ञानशुध्द ज्ञान की प्राप्ति की और इस वैज्ञानिक ज्ञानका प्रचार-प्रसार उन्होंने खुद और शिष्यगणोंके माध्यमसे जनतामें सर्वत्र किया। जनताको यह तर्कशुध्द, सुसंगत और वैज्ञानिक ज्ञान बहुतही पसंद आया। इसी कारणवश जनताने सिध्दार्थ गोतमको ‘तथागत बुध्द’ नाम की उपाधि, पदवी या सम्मान पद दे दिया। मतलब तथागत बुध्द यह सिध्दार्थ गोतमका दुसरा-तीसरा कोई नाम नही, बल्कि सम्मानजनक उपाधि, पदवी है। नाम नहीं सिध्दार्थ को दिया हुआ विशेषण है। विशेषण का अर्थ जो शब्द किसीकी विशेषता, खासियत, गुणवत्ता, विद्वता दर्शाता है, उसे विशेषण कहा जाता है। तथागत बुध्द यह शब्द सिध्दार्थकी विशेषता, खासियत दर्शाता है। इसी कारण उन्हें, तथागत बुध्द के नामसे संबोधा जाता है। तथागत बुध्द ना तो नाम है, ना कोई, धर्म, पंथ या संप्रदाय और ना कोई भगवान, ईश्‍वर, अल्ला, येशु है। तथागत बुध्द यह एक वैज्ञानिक, मानवतावादी, समतावादी, न्यायवादी, भाईचारावादी, एकतावादी विचारधारा, तत्वज्ञान, सिधान्त, जीवन पध्दती या जीवनशैली है, जिसमें किसीका भी शोषण और द्वेष संभव नहीं है। तथागत का अर्थ विज्ञानानुकुल, तर्कशुध्द, मानवी जीवन सुसंगत है और बुध्द का अर्थ विज्ञानिक प्रखर ज्ञान, बुध्दिवादी विचारवंत, विद्वान, महामानव है। भगवान का अर्थ निर्माता, ईश्‍वर नही, बल्कि त्यागी महामानव है। यह महामानव पूजनीय नहीं है। वंदनीय, सम्माननीय और मार्गदर्शक है। वह संकट मोचक और मुक्तीदाता भी नहीं है। वह केवल मार्गदाता, मार्गदर्शक है। किसीका गुरु भी नहीं है और ना उसके कोई शिष्य और सेवक है। केवल प्रचारक है। तथागत बुध्द ने जो ज्ञान, तत्वज्ञान, विचारधारा जीवनपध्दती, जीवनशैली, सिध्दांत, जनताको दिया है, उसे संक्षिप्त रुपमें धम्म नामसे संबोधा जाता है। इस धम्म शब्दका अर्थ नैतिक नियम, नीतियुक्त, समता, बंधुता, न्याय, स्वातंत्र्य, प्रेम, सहयोग, सहजीवन युक्त शासकिय, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, निवासयुक्त कानून, विधि विधान या संविधान नाम से भी संबोधा जाता है। धम्म यह धर्म नहीं है। धर्म मे अन्याय अत्याचार, विषमता, गुलामी कुट कुट कर भरी हुयी है। अमानवियता सडी हुयी गंध आती है। किंतु धम्ममें जहा तहा मानवतारुपी फुलोंकी सुगंधही सुगंध आती है। विश्‍वरत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरने हिंदु धर्मरुपी सडी गंधका त्याग कर समता, मानवतावादी धम्मका स्वीकार किया था। बाबासाहेब के इस धर्म त्याग को लोग धर्मांतर मानते है। मेरे विचारसे एक धर्मका त्याग कर जब अन्य धर्मका मतलब हिंदु धर्म का त्यागकर मुस्लिम, इसाई, शिख, पारसी, जैन आदी धर्मोको स्वीकृतिको धर्मांतर कहना चाहिए। बाबासाहेबने हिंदु धर्मका त्यागकर धम्मका स्वीकार किया है। अत: इसे धर्मांतर न कहते धम्म स्वीकृति मानना चाहिए। क्योेंकि धम्म यह धर्म नहीं है। धम्म यह नैतिक जीवनशैलीका सिध्दांत है। अत: हिंदु धर्मको, धर्म त्याग और धम्मको धम्म स्वीकृतिही मानना उचित है, एैसा मेरा तर्क है। डॉ. बाबासाहेबने भी कहा था कि मुझे कोई धर्म नहीं है। इसके साथही उन्होंने धम्मको धर्म नही नीतिनियम माना है। अत: इस हिंदू धर्म त्याग प्रक्रियाको धर्म त्याग और धम्म स्वीकार माननाही योग्य है, न की धर्मांतर। धर्म और धम्ममें पूर्व-पश्‍चिम दिशाके भांति अंतर है। धर्म यह अनेक निरर्थक कर्मकांडोसे और परस्पर द्वेष भावनासे ओतप्रोत है। वही धम्ममे कोई निरर्थक कर्मकांड और किसीसे कोई द्वेषभाव नहीं है। इसी कारण धर्मसे, धम्म यह जीवनपध्दति करोडो गुणा श्रेष्ठ और मानवतावादी है। इसी गुणवत्ता के कारण बुध्द का धम्म यह पुरे विश्‍वमें फैल रहा है और धर्मकी लोकप्रियता घटती जा रही है। अब हम धर्म निरपेक्षता के बारेमे सोचेंगे। धर्मनिरपेक्षता यह एक ऐसी संकल्पना एवं धारणा है, जिसमें किसी अन्य धर्मो के प्रति कोई द्वेष या हीनभावना नही है। साथही किसी धर्मके प्रति, यानी विशेष धर्म के प्रति प्रेम रखकर उसका समर्थन या सहयोग ना करना। सभी के साथ शासक वर्गने बराबरीका बर्ताव करना और किसी धर्म के कारण समाज या देशमें अशांतता निर्माण होती है। समाज विशेष का या देशका नुकसान होता होगा तो उसे रोका जाना चाहिए और देशमें विद्रोह निर्माण ना होने देना चाहिए। जयभारत- जयभीम, जय संविधान-जय जगत- प्रा. ग.ह. राठोड

G H Rathod

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