बंजारा समाज महाकुंभ, 8 एप्रिल 2017 शनिवार(अनुभव)
8 एप्रिल 2017 को विश्व बंजारा दिनके उपलक्षमें मध्यप्रदेशके तहसील झिरण्या जि, खरगोन के मारुगड नामक ग्राममें बंजारा महाकुंभ नामसे एक संमेलन उस क्षेत्र के बहुमान्य संतजनोंके (महाराजोंके) और स्थानिक कार्यकर्ताओं के माध्यमसे आयोजित किया गया था। इस संम्मेलनकी अध्यक्षता ऑल इंडिया बंजारा सेवा संघ के अध्यक्ष मा. राजुसिंह नायकने विभुषित की थी। प्रमुख अतिथीकें रुपमें देशभर से अनेक मान्यवर उपस्थित थे। इसमें प्रमुख रुपसे राजुसिंह नायक, बी.के.नायक, डी.रामा नायक, गोर सिकवाडीके संदेश चव्हाण, मुंबई से रविराज राठोड, क्रांतिदलके आत्माराम जाधव थे. निमंत्रित अनेक अपरिचित अतिथियोंके साथही साथ संम्मेलनके मंचपर संयोजक संत मंडळी भी विराजमान थी। इनमें प्रमुख रुपसे ---खेतीयाके आदरणीय रामानंदपुरीची, बादकोटाके आदरणीय लालचंदजी भारती, बाडा टांडाके सरसपुरीजी झिरण्याके राघवानंदजी भारती, जामनेरके श्याम चैतन्यजी औकांरेश्वर की साध्वी श्री दिव्यानंदजी, पांगरीके आदरणीय भगीरथजी और सिवरियाके आदरणीय सोहनदासजी महाराज खासकर उपस्थित थे।
लगभग दो एकडमें विशाल पंडाल और मार्गदर्शन अतिथी मंच भी बढिया बनाया गया था। इस हदतक संयोजक ---अभिनंदन के पात्र थे. देशके बंजारोको इकठ्ठा करके बंजारोकी समस्याओंका हल ढुंढ निकाल लेना और एकता बढानेका संयोजकोंका प्रयास प्रशंसनीय था।
किंतू अगले दिन आनेवाले और सुबहमें पहुचनेवाले अतिथियोंकी नहाने-धोने की, विश्रांती की और चायनाष्टे की कोई खास व्यवस्था नही थी। सभास्थलपर उपरोक्त व्यवस्था न होनेके कारण कई अतिथियोंको परेशानी झेलनी पडी। व्यवस्था कारण कई लोगोंको रास्तेमें शहरोंमें हॉटेल, लॉजमें रुकना पडा। मै आमंत्रित अतिथी नही था। किंतू रातमेंही सभास्थल पहुच चुका था। मेरे साथ दो आदमी थे। शाममें हमने संयोजकके घरपरही भोजन किया। लेकीन रातमें विश्रांतीकी व्यवस्था न होने के कारण बडी मुश्किलसे रात्रीको साडे ग्यारह बजे हमे एक स्कुलमें रुकना पडा। सुबर उठकर हमने हाथमुँह धोकर और नाश्ता भोजन कर हम दस बजे सभास्थलपर हाजीर हुये। ग्यारह बजे बजे तक सुबह सभा स्थलपर लोग नही के बराबर थे। कार्यक्रमका समय सुबह दस से शामतक का था। साडेबारातक लोग अंदाजा हजार बारासो तक आ पहुचे थे। देड बजे तक देड से दो हजार तक लोग बडी मुश्किलसे जमा हुये थे। कमसे कम पचार हजार लोगोंकी भीड अपेक्षित थी। किंतू केवल दोन हजारके लगभग लोग जमा हुये। सुबह दस बजेका कार्यक्रम दोपहर दो बजे शुरु हुआ। तीन बजे तक अतिथीयोंका सत्कार किया गया। इसके बाद आधा घंटा सांस्कृतिक कार्यक़्रम हुआ। साडेतीन बजेसे लेकर शाम साडे छ बजेतक अतिथीयोंका मार्गदर्शन हुआ।
इस सम्मेलनमें (बंजारा महाकुंभ) लोग मार्गदर्शनके लिये निम्न विषय रखे गये थे।
1) सामुहिक एकता और सामुहिक संघटन शक्तीका प्रदर्शन
2) बंजारा समाजकी संस्कृती, विरासतका प्रगटीकरण
3) दिशाहीन जनशक्तीको एक साथ लक्ष्य प्राप्तिकी ओर अग्रेसर करना.
4) अखंड भारतको सनातन कालसे लेकर आजतक बंजारा समाजने सर्वत्र योगदान दिया है पर आज भारतमें हमारे समाजका अस्तित्वका शासन एवं प्रशासनको स्मरण कराना.
5) समाजको आरक्षण एवं जनप्रतिनिधीकी मांगको लेकर शंखनाद करना.
6) समाजके भिन्न भिन्न संघटनाकों एक साथ सामाजहीत के लक्ष्य प्राप्तीके लिये अवसर खोजना.
7) बंजारा बोली तथा बंजारा संस्कृतिको हमारे व्यवहारोमें लाना.
8) संत सेवालाल महाराज के उपदेशोंको घर घर पहुचाना।
9) संत श्री सेवालाल महाराज के चरित्रपर बनी फिल्म का प्रदर्शनी एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम
10) महाकुंभका सफलताके बाद सजामकी मांगोको जन जन तक पहुचाँना एवं बंजारा समाजमें
समरसता का भाव जगाना।
इस प्रकार संमेलनके संपूर्ण आयोजनमें भारतके विभिन्न प्रांतोसे आये हुये सभी सामाजिक संघटनाओं के प्रमुखोंद्वारा मार्गदर्शन हेतू रखा गया था।
मेलेका समय सुबह दस बजेसे शाम छ: बजे तक का रखा गया था। किंतू कार्यक्रमकी सुरुवात ठिक दो बजे के बाद हुयी। दो से 3 बजे तक स्वागत और सांस्कृतिक कार्यक्रम चलते रहे। तीन बजेसे साडेपाच छ बजे तक प्रमुख अतिथीयोंके हर एकका 5 से 10 मिनिट का भाषण हुये। उपरोक्त दिये दस विषयोेंपर विस्तारसे किसीने भी मार्गदर्शन नही किया गया। केवल संघटनपर ही सभीने जोर दिया। किंतू संघटन किस ढंग से किया जाय इसपर किसीने कोईभी प्रस्ताव नही रखा। मै पहले दिन शाममें छह बजे मेला स्थलपर पहुंच गया था। रातमें हम चार जनोंने संयोजकके घरपरही खाना खाया। साथ में जलगांवसे श्रीमती जीजा राठोड थी। उसकी पुराणी पहचान होने के कारण संयोजकके घर रहने की व्यवस्था हो गयी. किंंतू हम तीन जनोंकी मुक्कामकी कोई व्यवस्था न होने के कारण हमे रात साडे ग्याहर बजे एक पाठशालामें चटईपर सोकर रात गुजारनी पडी। सुबहमें ग्यारह बजे के बाद श्रोताआंका आगमन हुआ। इतने बडे विश्वस्तरपर लिये गये मेलेमें केवल दो-ढाई हजार लोक जमा हुये थे। बाहर देशको काई अतिथी एवं रोमा जिप्सी बंजारा नही था। मैं अखिल भारतीय प्रथम बंजारा साहित्य संमेलनका अध्यक्ष होते हुये भी मुझे मेरे विचार रखनेके लिये संयोजककी ओरसे अवसर नही दिया गया । ऑल इंडिया बंजारा सेवा संघ के महासचिव बी. के. नाईकने मार्गदर्शकोकी सुची में नाम लिखानेके बाद भी और चालू कार्यक्रममें तीन बार विचार रखनेके लिये संयोजकको सुचना देने के पश्चात भी सभी संचालक और संयोजक दोनो ने मुझे अवसर नही दिया। बहुत बडी नाराजी और निराशाके बाद मै शाम छ बजे सभामंच छोडकर लौट आया। कुल मिलाकर इतने बडे मेलेका नियोजन और व्यवस्थापन सही उद्देश्य निश्चित न होने के कारण मेला विफल रहा। मेलेका आयोजन शायद वहांके स्थानिक महाराज ने किया था। अंत: मेलेें लगभर 25-30 महाराज और उनके भक्तोंकी संख्या बडी थी। लोग इन महाराजोंकें इर्दगीर्द और उनके दर्शन लेने के लिए ही भीड कर रहे थे। यह भीड सुबहसे दोपहर दोन बजे तक महाराज के मंदिरोंमेही रुकी थी। और दोपहर 2 बजे गाजे बाजे के साथ सभी महाराजोंके साथ यह भीड सभास्थानपर पहुचनेके बादही कार्य क्रमकी सुरुवात हुयी। हम सुबह हॉटेलमें थोडा नाष्टाकर सभास्थलपर पहुँचे थे। छ बजे बगैर भोजनके हम लौट आये। शेष लोगोंकी भोजनकी व्यवस्था थी या नही , यह हमे ज्ञात नही।
जय भारत जय जगत, जय संविधान, जयभीम
प्रा.ग.ह.राठोड