अंधा और अन्यायी ईश्‍वर

अंधा और अन्यायी ईश्‍वर

ता. 10/2/2023 अंधा और अन्यायी ईश्‍वर कहा जाता है, कि ईश्‍वर केे पास देर है लेकिन अंधेर नहीं, अन्याय नहीं किंतु सर्वव्याप्त, सर्वज्ञ, सर्व शक्तिमान, संकटमोचक, अवतारी, न्यायी माने जानेवाला देव, ईश्‍वर, अल्ला, गॉड सब के सब अंधे, अन्यायी सोये हुये स्वार्थी, जातिवादी, दूर्बल, डरपोक, एक काल्पनिक हैं। क्योंकि शास्त्रोंमे ईश्‍वर के बारेमे जो कुछ कहा गया है कि ईश्‍वर न्यायी है और वह अन्यायीका विनाश करने के लिये खुद अवतार, जन्म लेता है और अन्यायी लोगोंका विनाश करता हैं। किंतु ऐसा कुछ भी इस दुनियामे होता हुआ दिखाई नहीं देता। इस कारण से विश्‍व के सभी शास्त्र, धर्म ग्र्रंथ मतलब हिंदुओंके गीता, भागवत, रामायण, महाभारत, वेद, पुराण, उपनिषद, वेदांत, मनुस्मृति आदी और मुसलीम का कुराण, इसाईओंका धर्मग्रंथ बायबल और अन्य सभी जनसमुह के शास्त्र एवं धर्मग्रंथ झूठे, फेक, काल्पनिक, पाखंड एवं थोतांड, भ्रम, भूलभुलैया मात्र है। उनके रचियता प्रचार-प्रसारक धर्मगुरू सब के सब महाझूठे, स्वार्थी, पाखंडी, धोकेबाज, लुटारु और विलासी और भोगवादी दिखाई देते हैं। आज भारत मे और विश्‍व के अन्य देशोमें सर्वत्र अन्याय, अत्याचार, व्याभिचार, भ्रष्टाचार, लुटखसोट, खूनखराबी, धोकेबाजी, गुंडागर्दी, निरक्षरता, बेकारी, कर्जबाजारी, बँकोंकी लूट, कर्जा डूबाना, विदेशोमें भागना, हेराफेरी करना, बड़े बड़े घोटाले, घपले, घुसखोरी, कांड, गबन, झूटाई, असत्यता, बेकारी, बिमारी, महंगाई, अनैतिकता, विषमता, शोषण, रिश्‍वतखोरी, परिग्रह, हिंसा आदी का नंगानाच अत्र, तत्र, सर्वत्र चालू हैं। करोड़ो मंदिर, मजीद, चर्च, गिरजाघर, गुरुद्वारा, प्रार्थनास्थल, मूर्तिया, प्रतिमाओंका निर्माण हुआ है, हो रहा है। किसी भी समाज के ईश्‍वर, अल्ला, जिझस चर्च आदी ने न मांग करने पर भी यह ईश्‍वर निवासस्थान बनायें गये है और हर रोज बनाये जा रहे हैं। इन सभी देव-देवताओंकी उत्पादक काम छोड़कर, पंडे पुजारी, भक्तगण, धर्मगुरु, संत-महंत, पूजापाठ, स्तोत्र, आरती, अभिषेक, होम हवन, यज्ञयाग, कथापठन, अन्य कर्मकांड, श्रद्धा, भक्ति, आस्था से हर रोज कर रहे हैं। दान दक्षिणा भी दे रहे हैं। वस्त्र-अलंकार भी चढ़ा रहे हैं। प्रसाद भी खिला रहे है। किंतु भगवान न खाकर जनता खा रही हैं, इतनी बात ठिक हैं किंतु इतना सब करनेपर भी देश मे, विश्‍वमे विषमता, बेकारी, महंगाई, निरक्षरता, लड़ाई, युद्ध, बाढ़, सुखा, भूकंप, कोरोना, भूकमरी, स्वहत्या, झूगी झोपडियोंका प्रकोप बढ़ते ही जा रहा हैं। इसके अलावा जातिवाद, धर्मवाद, हिंदु-मुसलीम वाद, हिंदू राष्ट्रवाद, 22 प्रतिज्ञा, आदिवासी धर्मकांड, किसान मजुरोंपर, जवानों, तृतीय, चतुर्थ वर्ग के कर्मचारियोंपर, वंचितोंपर, संविधानपर विवाद खड़े हैं। केवल ब्राह्मण, बनिया, गुजराती, सिंधी, पारसी, राजपुत, ठाकूर इन समुहोंने देश के सब साधनोंपर कब्जा बनाकर वे सब विलासी भोगवादी जीवन जी रहे हैं। देश में हिंसा, अशांतता, भ्रष्टाचार, परिगृह, आतंकवाद, जाति धर्मवाद, सामंतवाद, पुजीवाद इन्हीं समुहोंने बढ़ा रखा हैं। कष्ट करनेवाला भूका और कष्ट न करनेवाला लुटारु भोगवादी जीवन जी रहा हैं। सभी देव गहरी निंदमें हैं। अत: देवोंको छुट्टी देकर उनका प्रयोग सार्वजनिक हित मे करनेकी अनिवार्यता है। प्रा. ग. ह. राठोड

G H Rathod

162 Blog posts

Comments