दि. 12/3/2023
भारतीय धरातल के मिथुनी मानव वंशोंका विस्तार
मानव वंशोंके विस्तार के बारेमें जानने के पहले हमे मिथुनी और अमिथुनी वंश या वंशों के बारेमें जानना अनिवार्य है। मिथुनी और अमिथुनी यह दोनो शब्द प्रथक या उलट अर्थ के शब्द है। मिथुन का मतलब है निश्चित ऐसा स्त्री-पुरुष का जोडा। मतलब जनमान्यता से विवाहबद्ध होकर दोनो साथमे रहकर शरीर सुख लेनेवाला और अपनी संतती निर्माता स्त्री-पुरुष का जोडा। इसके विपरित अमिथुनी याने अविवाहित स्त्री और पुरुष समुह। इस अविवाहित स्त्री-पुरुष समुहमे अनियंत्रित रुपसे किसी स्त्रीका और किसी भी पुरुष का किसी के भी साथ शरीर संबंध होते रहता था और उनकी संततीकी पहचान केवल स्त्री माता के द्वाराही होती थी। किस पुरुषसे स्त्री की गर्भधारणा हुयी यह निश्चित तौरपर नही कहा जाता था। अत: संतती की माता जन्मदात्री माता मानी जाती थी। किंतु उनका बाप निश्चित नहीं माना जाता था। क्योंकि यह संतती पशुओंकी तरह स्वैर संबंधसे पैदा होती थी। अत: उस समय का मानव समुह यह स्वैराचारी मातावंशी जन समुह माना जाता था।
किंतु जिस समयसे विवाहबद्ध होकर स्त्री और पुरुष केवल दोनों ही साथ साथ रहकर संतती पैदा करने लगे तोे ऐसी संतती को मिथुनी संतती या मिथुनी वंश और स्त्री-पुुरुषको मिथुनी जोडा यानी सहचारिणी और साथी पती-पत्नी कहा जाने लगा।
इस घटना क्रमसे हमे ज्ञात होता है, कि आदि यानी प्राचीन कालमें स्त्री-पुरुषोंद्वारा अमिथुनी, स्वैराचारी संबंध के कारण स्त्री-पुरुष का एकही स्त्री-पुरुष वंश या, जिसकी पशुओंसे अलग पहचान थी। किंतु जिस समयसे मिथुनी सृष्टिकी, मिथुनी संततीकी पैदास शुरु हुयी तबसे मिथुनके जोडे के, पती-पत्नी के आधारपर कई वंशोंका निर्माण हुआ है।
प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. एस.एल. निर्मोही और डॉ. नवल वियोगी इन इतिहासकारों के ग्रंथानुसार सोम नाम का प्रथम पुरुष माना जाता है। इस सोम नामक पुरुषसे मारीच और दक्ष पुत्रोंकी उत्पत्ति बताई गई है। सोम और उनके पुत्र मारीच और दक्ष ़के पत्नियोंके नाम मुझे ज्ञात नहीं है। किंतु मारीच का पुत्र कश्यप था और मारीच के भाई दक्ष को 60 कन्यायें बताई गई हैं। कश्यप ने चाचा दक्ष की 60 कन्याओमेसे तेरह कन्याओंके साथ विवाह किया था। जिसमे आठ कन्याओंके नाम प्राप्त हैं। किंतु चाचा दक्ष की कन्याओंके साथ विवाह करने की मजबुरीका कोई कारण नहीं मिलता। ॠषि कश्यपकी तेरह पत्नियोंमेसे आठ पत्नियोंके नाम और उनकी संतती का विवरण निम्न प्रकारसे है।
ॠषि कश्यप को ब्रम्हा भी कहा गया है। कश्यप को ब्रम्हा क्यों कहा गया है, यह जानने के लिये इतिहासकार डॉ. एस.एल. निर्मोहीद्वारा लिखी गयी रचना ‘—ॠग्वैदिक असुर और आर्य’ नामक पुस्तक पढ़ना आवश्यक है। अब इस ॠषि कश्यप ब्रम्हा की पत्नियोंके नाम और उनसे पैदा हुये संततियोंके वंशोका विवरण देखेंगे।
दिती, अदिती, दनु, मनु, दनायु, कद्रु, विनता और सिमुक यह उनकी तेरह पत्नियोंमेसे है। बताया गया है कि, दितीसे दैत्य, अदितीसे आदित्य (देव), दनुसे दानव, मनुसे मानव, कद्रुसे नाग पुत्रोंकी उत्पत्ति हुयी। दनायुसे दानवोंकी और शेष विनता और सिमुक के संतानों के बारेमें कोई मालुमात उपलब्ध नहीं है। उपरी संततिओंके नामसेही उनके वंशोंका नाम दैत्य, अदित्य, दानव, मानव, नाग, दानव आदि प्रसिद्ध हुये। आगे बताया गया है, कि दिती के पुत्र हिरण्यक्ष और हिरण्यकश्यप थे। हिरण्यक्ष की संतती के बारेमे कुछ लिखा नहीं मिलता। किंतु हिरण्यकश्यप के बारेमे निम्न मालुमात उपलब्ध है।
हिरण्यकश्यपको प्रल्हाद कालनेमि, अनहलाद, सहलाद और हलाद ऐसे पाच पुत्र बताये है।
जेष्ठ पुत्र प्रल्हाद को विरोचन, कुंभ, निकुंभ, जम्भ और रातदुदुंभी ऐसे पाच पुत्र बताये जाते है। प्रल्हाद के जेष्ठ पुत्र विरोचनको दिर्घजीव्ही, बली त्रिलोक विजेता और कमलादि ऐसे तीन पुत्र बताये गये हैं। आगे बलीको (द्वितीय पुत्र) को बाणासुर, चंद्रमा-सूर्या और धृतराष्ट्र बताये गये है। इस प्रकार ॠषि कश्यपोंके पुत्रोंके नामसेही मानव वंश, दैत्यवंश, दानव वंश, नागवंश, असुरवंश, देववंश, चंद्रवंश, सूर्यवंश, यदुवंश, नहुस, अनु, पुरु, कुरु, तुर्वश वंश आदी माने गये है। हिरण्यकश्यपु पुत्र प्रल्हाद के समय की अवतारवादी देवोंकी यानी ब्रम्हा, वामन, विष्णु, महेश, इंद्र आदी की कथा से कही जाती है। सोम, मारीच, कश्यप, हिरण्यक्ष, प्रल्हाद, विरोचन, बाणासुर बली और बाणासुरकी आठवी पिढ़ी दिखाई देती है। महेश (शिव) यह ॠषि कश्यप का साडू यानी दक्ष का दामाद, इंद्र और उसकी माता निष्तोभी दोनो असुर बताये गये है। इंद्र के पिता का नाम बल बताया गया है। सिंधू संस्कृति के समयमे बल सिंधुवासियोंका देवता बताया गया है। क्या यह बल देवता आज का बालाजी है?
ॠषि कश्यपकी उपर बताई या उल्लेखित कुद्र पत्नियोंसे दैत्य, दानव, नाग, मानवों की और आदित्य नाम की पत्नी से आदित्य यानी देवोंकी उत्पत्ति बताई गई है। आर्य ब्राह्मणोंने उनके उत्तरकालीन वेद ग्रंथों एवं पुराण ग्रंथोमे इंद्र ब्रम्हा, विष्णु, वामन, शिव (महेश), गणेश, हनुमान, राम, कृष्ण, पांच पांडवोंको, नारद, शकुनी, बालाजी आदी को भी देव बताया है। अत: हमे कश्यप की पत्नी अदितीसे उत्पन्न देव और पौराणिक ब्रम्हाने निर्माण किये एकही है या अलग अलग है और दोनोंका समयकाल निश्चित करके पौराणिको की सच्चाई और झूटाई, बकवास, धोकेबाजी सिद्ध करनी होगी।
हिरण्यकश्यपु और उनकी संताने तो राक्षस, दानव, दैत्य, अनार्य, असुर मानी गई थी। हिरण्यकश्यपु के पिता कश्यप, कश्यप के पिता मारीच और मारीच के पिता सोम सभी दानव, राक्षस सहजतासे वंश के आधारपर प्रमाणित होते है। कश्यप के साडू शिव थे और दोनोंके ससूर राजा दक्ष थे। कश्यप और सोम के पुत्र मारीच और दक्ष थे, तब दक्ष और कश्यप का रिश्ता चाचा-भतीजे का होता है। इसका अर्थ ॠषि कश्यपने चचेरी बहनोंसे शादी की थी, ऐसा प्रमाणित होता है।
यदि कश्यपकी संताने राक्षस, दानव मानी जाती है, तो अदितीसे पैदा संतती अदित्य (देव) कैसी मानी जायेगी? यदि मानी भी गई तो वे पुराण पूर्व के देव (मानव) ही हो सकते है। गंप्पोडो पौराणिक देवों के तरह वे काल्पनिक सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सर्वव्याप्त, संकटमोचक नहीं थे। वे सभी समतावादी, त्यागी, दानी, बहुजन हितचिंतक थे। पौराणिक देवों के भांति परोपजीवी, चमत्कारी, षडयंत्रकारी, व्याभिचारी, याज्ञिक, मांत्रिक, अवतारी नहीं होगे। वह सभी मिथुनी जीवनशैली जीनेवाले उत्तर वैदिक, पौराणिक देवताओंके भांति अमिथुनी स्वैराचारी, असभ्य, असंस्कृत, जंगली, सर्व मांसाहारी नहीं थे। इसका मतलब देव, दैव, धर्म, वर्ण, जातिवादी आर्य बादमे भारतमे आये थे। आर्यों के आर्य जीवनशैली के समर्थक बाल गंगाधर तिलक, नेहरु, गांधी और अन्य अनेक आर्य ब्राह्मणोंने बार बार कहा है कि वे बाहरसे युरोप के देशोंसे इ.स.पूर्व 2000 के लगभग भारत आकर मूलनिवासियोंको परस्परोंकी लड़ाईमे हराकर भारत के शासक बने है। जिन्होंने मूलनिवासियोंको दानव, राक्षस ठहराया है वे वास्तवमे मानव थे। मात्र उनको हराकर शासक बनकर शासन करनेवाले भारतीय आर्य ब्राह्मणही वास्तवमे उनकेे शब्दोंमे दानव, राक्षस, दैत्य, सैतान है, यह उन्होंने मानवद्रोही व्यवहार करके प्रमाणित किया है। आर्य ब्राह्मण यह भारतीय जनसमुह नहीं है। यह युरोपीय है। युरोपमे उत्तर ध्रुवीय प्रदेशोंमे यह आर्य ब्राह्मण जनसमुह रहता था, जहां पुरे बारह महिने अति ठंडी के कारण बर्फ तयार होते रहती है। यहांपर अनाज पैदा करने के लिये कृषिभूमि नहीं है। इतनाही नहीं तो इस क्षेत्रमे रहनेवाले जनसमुहको खेती करके अनाज निर्माण करने का ज्ञान भी नहीं है। अत: यह समुह प्राचीन कालमे इसापूर्व 4000 से 3000 के कालमें कंदमुल, फल, मांसाहार, शिकार करके उदरनिर्वाह करता था। इ.स. पूर्व 3000 के लगभग वहां बहुत अधिक ठंडी और बर्फ पड़ने के कारण पशु एवं मनुष्योंको वहां जीवनयापन करना मुश्किल होने के कारण वहां के लोगोंने टोली टोलीसे भारतमे प्रवेश करना शुरु किया। यह युरोपीय आर्य ब्राह्मण पुर्णत: जंगली, असभ्य, असंस्कृत, स्वैराचारी, घुमंतु, पशुपालक, बर्बर और जंगली चीजें और मांसाहार करके टोली टोली से प्रथम भारतमें पहुंचे तो वे भारतीय नगरोंसे दूर जंगलोमेही रहने लगे। युरोपमे वे खुली जगहोंपर या गुफा, झोपडियोंमें, जंगलोंमे मुक्त संचार करते थे। भारत पहुंचने के बाद यहां के भारतियों के नगरीय निवास, इमारते, खेती क्षेत्र, नदी, तालाब, पशुपालन, सामुहिक सुखी जीवन देखकर वे चक्रा गये। यहां के लोग मकानोंमे रहते है। कपडे पहनते है। कृषि से अनाज उपजाकर अनाज खाते है, पशुसे खेती करते है। दुध निकालते है। रस्ते, गाडीया, जलपोत, व्यापार, घरेलू उद्योग देखकर वे सोचमें पड़ गये और जंगलोंमे छुपकर रहने लगे, नगरों, खेती, पशु, अनाज लुटने लगे। खुन खराबी, आगजली और नारियोंको भी भगाने, चुराने लगे। यह प्रक्रिया यानी अमानवियता कई सालोतक चालु रही। आरंभ मे आर्य ब्राह्मणोंकी पुरुषोंकी टोलियां भारतमें आयी थी। अत: शुरु की लुटमार मे वे भारतीय महिलायें उठाकर ले जाया करते थे। किंतु बाद की जो आर्य ब्राह्मणोंकी टोलियां भारतमे आयी, उनके साथ उनकी सुंदर गोरी विष कन्याये भी साथमें ले आये। परस्परोंपर जो भारतमें मूलनिवासी और आर्योमें झडप होती थी, उस वक्त मुलनिवासी भी उनकी गोरी कन्याये उठाकर लाने लगे। ऐसी सुंदर, गोरी कन्याये भारतीय राजा और राजपुत्र तीन-तीन, चार-चार कन्याये पत्नी के रुपमे रखने लगे और भोग विलासमे डुबने लगे। सालोंतक चलनेवाले संघर्ष मे दोनों पक्षका नुकसान होते रहने के कारण कुछ समय के पश्चात उनमें समझौता हुआ और परस्पर विवाह संबंध शुरु होने लगे। विदेशी आर्य संबंध बढ़ने के बाद उनकी गोरी कन्यायें धनवानोंको भेट के रुपमे देने लगे। विष कन्याओंका मुलनिवासियोंमें जाल फैलाकर उन्होंने भारतियोंको वशमे कर लिया। प्रमुख स्थानोंपर भी कब्जा कर लिया। इसके बाद अनुकूल समय पाकर उन्होंने भारतीय मुलनिवासी राजा महाराजाओंपर आक्रमण कर उन्हें मारकर, युद्धमें हराकर भारतपर कब्जा कर लिया और भारत के शासक बन गये।
भारतीय मुलनिवासियोंको हराकर देशपर कब्जा करने के बाद और शासक बनने के बाद उन्होंने भारतीय मुलनिवासिओंको गुलाम बनाकर उनका मनचाहा प्रयोग किया। दुबारा उन्होंने मुलनिवासिओंका शासक वर्ग नहीं बनने दिया। सिंधू नदी किनारे की संस्कृतिका इ.स.पूर्व 1700-1600 में विनाश करने के बाद सिद्धार्थ गौतम की क्रांति तक इ.पू. 400 से इ.स.पूर्व 184 तक रहा।
इ.स.पूर्व 185 में आर्य ब्राह्मणों के सेनापती पुष्यमित्र शुंग ने सिद्धार्थ बुद्ध के अनुयायी बृहद्रथ की हत्या करके, प्रतिक्रांति के माध्यमसे पुन: आर्य ब्राह्मणोंकी सत्ता भारतमें स्थापित की। इ.पू. 185 से तो आज तक अनेकों विदेशी-देशी राजाओंने भारतपर शासन किया। किंतु इन सभी शासकों के साथ मिलकर हिस्सेदार के रुपमे आर्य ब्राह्मण आज तक भारतीय सत्तापर कब्जा बनाये बैठे हैं। 1947 को विदेशी अंग्रेज भारत की सत्ता छोड़कर भारतियोंको सत्ता सौपकर चले गये। किंतु उसके बादमे आर्य ब्राह्मणोंने मुलनिवासियोंको सत्ता पर नहीं आने दिया। वे अंग्रेजो के बाद खुद शासक हो बैठे और आज भी केवल 4% प्रतिशत आर्य ब्राह्मण भारतपर छाये हुये है और भारतीय मुलनिवासियोंको गुलाम बनाकर शासन कर रहे है; यह एक शोकांतिका और सच्चाई है, जिसे नकारा नहीं जा सकता।
4% आर्य ब्राह्मण और अन्य बनिया जैन, राजपूत, ठाकूर, पारसी, गुजराती आदी सब 11% यानी 4 + 11 = 15% अश्रमी, परोपजीवी लोग मिलकर अन्य 85% अनुसूचित जाति, जमाति, अन्य पीछड़ा वर्ग, घुमंतु, अल्पसंख्यकोंको गुलाम बनाकर यानी श़िक्षा, सत्ता, संपत्ति साधनोंसे परे रखकर भारतपर राज कर रहे हैं। 85% प्रतिशत पीछड़ा वर्ग संघटित बनकर जब तक 15% परोपजीविओंका मुकाबला नहीं करेंगे, तब तक 15% वालोंकी सत्ता बनी रहनेवाली है, इसमें कोई संदेह नहीं है। इति
जय भारत - जय संविधान
प्रा. ग.ह. राठोड, अध्यक्ष - अखिल भारतीय गोर बंजारा साहित्य संघ, भारत.