धोळो झंडा (ध्वल ध्वज) (समग्र समता का प्रतिक)

आप सभीको ज्ञात है, कि अपने देश के राजकिय पक्षोंके साथही विशेष समाज, संस्था, संघटना, प्रतिष्ठानोंके भी अनेकानेक रंग के या एक रंग का भी ध्वज यानी झंडा देखनेको मिलता है। विशेष रंग के ध्वज का कोई तो भी उद्देश होता है और उस उद्देश की ओर चलनेका बढ़नेका वह ध्वज होता है उस ध्वज के जो अनुयायी होते है, वे उस झंडे के रंग के उद्देशानुसार उद्देशपूर्तिका काम करते रहते है। या उस झंडे के उद्देश के अनुकूल खुद ढलनेका या परिवार, समाज, देश या विश्‍वको ढालनेका, बनानेका प्रयास करते रहते हैं। व्यर्थमे कोई अपने पक्ष, पंथ, संस्था, संघटना, प्रतिष्ठान, देवी-देवता का झंडा नहीं बनाता हैं। अत: झंडा निर्माता और उनके अनुयायियोंका अपने झंडे का उद्देश क्या हैं, या मालूम करके उस उद्देश की पुर्ति के लिये सभी को प्रयत्नरत रहना पड़ता हैं। इतनाही नहीं तो झंडे का उद्देश पुरा करने के लिये पुरी ताकद लगानेकी अनिवार्यता होती है, इसका ज्ञान होना चाहिए।

भाई और बहनो,

आप सभीको ज्ञात है, कि अपने देश के राजकिय पक्षोंके साथही विशेष समाज, संस्था, संघटना, प्रतिष्ठानोंके भी अनेकानेक रंग के या एक रंग का भी ध्वज यानी झंडा देखनेको मिलता है। विशेष रंग के ध्वज का कोई तो भी उद्देश होता है और उस उद्देश की ओर चलनेका बढ़नेका वह ध्वज होता है उस ध्वज के जो अनुयायी होते है, वे उस झंडे के रंग के उद्देशानुसार उद्देशपूर्तिका काम करते रहते है। या उस झंडे के उद्देश के अनुकूल खुद ढलनेका या परिवार, समाज, देश या विश्‍वको ढालनेका, बनानेका प्रयास करते रहते हैं। व्यर्थमे कोई अपने पक्ष, पंथ, संस्था, संघटना, प्रतिष्ठान, देवी-देवता का झंडा नहीं बनाता हैं। अत: झंडा निर्माता और उनके अनुयायियोंका अपने झंडे का उद्देश क्या हैं, या मालूम करके उस उद्देश की पुर्ति के लिये सभी को प्रयत्नरत रहना पड़ता हैं। इतनाही नहीं तो झंडे का उद्देश पुरा करने के लिये पुरी ताकद लगानेकी अनिवार्यता होती है, इसका ज्ञान होना चाहिए।

गोर बंजारा समाजमे आज से लगभग 300 वर्षपूर्व एक अशिक्षित क्रांतिकारी समाज सुधारक, संत होकर गया। वे केवल 32 वर्षतकही जीवित रहे और इस 32 वर्षमें उन्होंने जो गोर समाज जागृतिका कार्य किया, वह कार्य अतुलनीय, समतावादी कार्य माना जाता है। क्योंकि उनके कार्य की, उनके विचारोंकी, तत्त्वज्ञानकी तुलना सिद्धार्थ बुद्ध, संत बसवेश्‍वर, संत रोहिदास, कबीर, नारायण गुरू, संत गुरू नानक, संत पेरियार, संत नामदेव, संत तुकाराम, गाडगेबाबा, संत तुकडोजी, राजा छ. शिवाजी, सयाजीराव, शाहु महाराज, संभाजी महाराज, म. फुले, डॉ. आंबेडकर, मा. कांशीराम, मा. उपरेकाका इनके विचारोंके साथ की जाती हैं। उनके प्रबोधन, वचन सोये हुये समाजको जगाने के लिये हैं। किंतु उनकी दूरदर्शी विचारोंके अनुसार आज तक भी सभी घटित होनेवाली घटनायें आज के बदलते हुये परिवेश अनुसार घटित हो रही है, यह एक बहुत बड़ा सत्य और चमत्कार है।

उन्होंने जो उनके उद्देशपूर्ति हेतु झंडा बनाया है, वह पुरे विश्‍व के हेतुपुर्ति के उद्देश से बनाया था और वह ध्वज/झंडा है केवल एकही ध्वल (सफेद) रंग का है। इस ध्वल ध्वज, झंडा (गोर बंजारा बोलीम धोळो झंडा) ऐसा नाम है। झंडा का मूल उद्देश पुरे विश्‍वमे समता निर्मितीसे है। संसार विविधतासे भरा है। किंतु मानव समाज के व्यवहारमे समाज और शासन व्यवस्थामें, सभी क्षेत्रोमें कोई विषमता न रखते हुये समता रखकर देशको समृद्ध और विश्‍व गुरू बनाया जाना चाहिए, यह इस ध्वल ध्वज (धोळो झंडा) का उद्देश है। देश मे सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजकिय, साहित्यिक, कलागुणसहित सभी क्षेत्रोंकी विषमता नष्ट कर हर एक जनसमुहको न्याय दिया जाना चाहिए और देश को उन्नत, समृद्ध, सक्षम, वैभवशाली, सुखी, शांतीपूर्ण और विश्‍वगुरू बनाये जाने के प्रयास सभी के एकता से किया जाना चाहिए, यही इस सफेद झंडे का प्रतिकात्मक अर्थ एवं उद्देश है।

इस भौतिक एकता के साथही साथ मनुष्य के मन की और व्यवहारोंकी सभी कलुषितायें यानी बुराईंया, दोष भी नष्ट होने चाहिए। उदाहरण के लिये- जाति, धर्म, देवी-देवता, कर्मकांड, धर्मक्षेत्र, धर्मगुरू, धर्मग्रंथ इनमें जो भी विसंगतियां, विकृतियां, विषमताये नष्ट कर पुरे मानव समुह को एकही सुत्रमे पिरोया जाना चाहिए, यही इस ध्वल ध्वज का प्राणतत्व, विचारधारा या सिद्धांत है।

इस के साथही साथ स्त्री-पुरुषभेद, वर्ण, जाति, धर्मभेद, मनुष्य के मानसिक रोग अस्पृश्यता, व्यसनाधिनता, व्यवसाय भेद, काला-गोरा, गरीब-अमीर, द्वेष, जमाखोरी, भ्रष्टाचार, भेसळ, व्याभिचार, अन्याय, अत्याचार, शैक्षणिक, आर्थिक, रोजगार की विषमता यह सभी विकृतियां मिटाने का प्रतिक यह ध्वल ध्वज माना जाता है।

साथही साथ क्रांतिकारी महामानव संत सेवालाल बापुने मूर्ति, मंदिर, क्षेत्र कही निर्माण नहीं किये। भजन, पूजन, आरती, अभिषेक, यज्ञयाग, मंत्र-तंत्र, आदी का भी उन्होंने विरोध जताया हैं। सत्ता संघटित होकर एक विचार और उद्देशसेही होती है। समाज को तोड़ने के स्थान पर जोड़नेसेही सत्ता प्राप्त होती है, ऐसा उनका मानना था। गोर बोलीम उन्होंने ‘जाणजो, छाणजो अन पछज मानजो’ कहा है। मतलब चारों ओर घटित घटनाओंका परिक्षण कर कारणों को जानकर जो योग्य हैं, उसीका अनुसरन किया जाना चाहिए; यह अति महत्त्का उपदेश उन्होंने सभी को दिया हैं। मतलब जिस काम मे, कल्याण है, सर्जन है, विधायकता है, सर्व संमती है, उसी कार्य को किया जाना चाहिए, ऐसा उनका कहना था। अत: झंडे के उद्देश के अनुसार समाज निर्माण का काम किया जाना चाहिए, यही इस झंडे से सभी ने बोध लेकर आगे बढ़ना चाहिए, यही अपेक्षा है।

जय भारत - जय संविधान - जय गोर बंजारा


G H Rathod

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