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दि. 19/7/2023
॥ जय सेवालाल॥ ॥ जय संविधान ॥
गोर भाई एवं बहनों,
गोर बंजारा सभ्यता एवं संस्कृति यह भारत की अति प्राचीन सभ्यता एंव संस्कृति है। पुरातत्व विभाग एवं गोरबंजारा समुहको मोहेंजोदड़ो एवं हड़प्पा नगरोंकी आदर्श संस्कृति के निर्माता मानते है। उत्तर वेदकालीन एवं पुराणकालीन आर्य ब्राह्मणोंने इस गोर बंजारा समुहको सभ्यता एवं संस्कृति इसापूर्व 6000 से 5500 हजार वर्ष या इसके भी पूर्व की मानी जाती है, जो वर्तमान समय में सिंधूघाटी याने सिंधू नदी के परिक्षेत्र में बसी या विकसित हुई सिंधू संस्कृति एवं मोहेंजोदाड़ो और हड़प्पा नगर की आदर्श सभ्यता एवं संस्कृति या जीवनशैली के नाम से पुरे विश्व में पहचानी जाती है। इस संस्कृति में जाति, धर्म, देव, दैव और उनसे संबंधित किसी भी कर्मकांडो की तीलमात्र संकल्पना नहीं थी। उस समय की समाज और शासन व्यवस्था धर्म, जाती, देव, दैव और शोसक, निरर्थक कर्मकांडो से मुक्त थी। लोक निसर्ग एवं पूर्वज वंदक थे। लोकतांत्रिक गणसंघात्मक, मातृसत्ताक, समाजवादी समाज और शासन व्यवस्था उस समयमें अस्तित्व में थी। किसी भी प्रकार की विषमता उस समय समाज और शासन व्यवस्था में नहीं थी। हर एक को व्यवसाय की स्वतंत्रता और रोटी-बेई की स्वतंत्रता थी। वर्तमान समय की वैदिक एवं ब्राह्मणी या हिंदू जाती एवं वर्णव्यवस्था उस समय नहीं थी केवल वर्ग व्यवस्था ही थी। उस समय भारत में देव-दानव, सुर-असुर, आर्य-अनार्य, हिंदू-मुस्लिम, शिख, जैन, बौद्ध, इसाई, छुत-अछुत, श्रेष्ठ-कनिष्ठ एैसी कोई संकल्पना नहीं थी। जन समुह वर्गोंमे बटा हुआ था, स्त्री-पुरुष समानता थी। परिवार का प्रमुख पुरुष नहीं स्त्री थी। समता, भाईचारा, स्वातंत्र्य और न्यायकी व्यवस्था बनी रहने के कारण लोक शांती से और समृद्धि के साथ जीवन जी रहे थे। सिंधू संस्कृति के समयमें कोई मंदिर, तीर्थक्षेत्र, देव-देवी प्रतिमायें, मुर्तियाँ भी नहीं थी और ना कोई पुजारी, धर्मग्रंथ और ना ही कोई धर्मगुरु था। केवल समाज का मतलब जनसमुहका मुखिया, नायक, मार्गदर्शक एक राजा था। देश समाज और शासन की व्यवस्था समाज व समाज प्रमुख, राजा की नीती, नियम कानून एवं आचार संहिता के बलपर चलती थी। कोई विशेष धर्म, पंथ एवं संप्रदाय अस्तित्वमें नहीं था। सभी जनसमुह पशुपालन, कृषिकार्य, शिल्पकारी और आंतरराष्ट्रीय स्तर का बहुमूल्य चीजोंका, अनाज, कपड़ोका व्यापार करते थे। लोग सभी के सभी श्रमजीवी थे। साथही युद्धमें भी सभी कुशल और बहादुर थे। सभी राष्ट्रनिष्ठ लोग थे।
किंतु इतिहासकारोंका मानना है, कि इ.स.पूर्व तीन हजारसे पंद्रह सौ की शताब्दिमें आर्य लोग युरोप से भारत में आये। यह आर्य लोग अज्ञानी यानी मेहनत न करनेवाले और पशुओंको काटकर केवल मांसाहार करनेवाले और स्वैराचारी लोग थे। पशुओंको चुराकर पशुयज्ञ करने, मांसाहार करने के कारण और लुटमार के साथही साथ महिलाओंका शीलभंग करने के कारण उनसे यहाँ के मुलनिवासी पणि, मेलुवा एवं द्रविड़ों के साथ संघर्ष शुरु हुआ। इस संघर्ष मे यहाँ के मुलनिवासी अनार्योकी पणि, मेलुवा, द्रविड़ोंकी हार हुई। राजा महाराजा और जनता की भी हार होने के कारण कुछ लोगोंको गुलाम बनाया गया और कुछ लोग देश के दक्षिण उत्तर क्षेत्रमें बिहड स्थानोंपर पहाड़ो पर्वतोंपर जा बसे।
गोर बंजारा जनसमुह भी इन जनसमुहसे एक समुह है। इनकी हार इसापूर्व 1750 के लगभग मानी जाती है। इसा पूर्व 1750 से इसवीसन 1947 तक भारत की स्वाधिनता तक गोर बंजारा समुह और आदिवासी, घुमंतु समुह गांव नगरों के बाहर पहाड़ी क्षेत्रमें रहता था। इसा पूर्व 2000 के लगभग जो संघर्ष हुआ था, इस संघर्षमे आर्योंने अनार्योंका साहित्य, इतिहास, राजा, मार्गदर्शक, उनकी इमारते, दुर्ग, प्रतिक आदि सभी नष्ट कर डाले। मेहनत न करके बैठकर खाने के लिए उन्होंने पौराणिक देव-देविओंके ग्रंथ और वेदों में भारी परिवर्तन करके मंदिर, मठ, तीर्थक्षेत्र, पूजापाठ के मंत्र, दान-दक्षिणा, यज्ञ की निर्मिती कर उनके माध्यम से बहुजनोंका शोषण आजतक आर्य ब्राह्मण करते आ रहे है। इस शोषण काही हिस्सा पोहरादेवी विश्वशांती शतचंडी यज्ञ है। इन ब्राह्मणोंके साथही साथ तांडो के कई महाराज और संतों ने भी अब यज्ञ का उद्योग शुरु कर दिया है, इसमें कोई संदेह नहीं है। गोर बंजारा समुह का कोई धर्म नही है, धर्मगुरु और धर्मग्रंथ भी नहीं है। इसा के पश्चात गोर बंजारा समाज में जो महापुरुष लाखाबंजारा, देमागुरु, सेवालाल बापू हो गये वे धर्मगुरु नहीं थे। वे समाज के मार्गदर्शक, जागृतिकार, प्रबोधनकार थे। उनका कोई धर्मग्रंथ नहीं है और धर्मपीठ, धर्मतिर्थ भी नहीं है। उन्होंने धर्मतिर्थ या मंदिर भी नहीं बनाया है। ना किसीको बनाने को कहा है। उन्होंने कभी यज्ञ नहीं किया और ना किसीको यज्ञ करो एैसा कहा है। वे एक महान विद्वान, तत्वज्ञ, तत्वचिंतक और दूरदर्शी समतावादी महापुरुष थे। उनके विचारोंमे चार्वाक, दिग्नाथ, बुद्धा, राजा अशोक, चक्रधर, बसवेश्वर, रोहिदास, कबीर, रहिम, नानक, शिवाजी, शाहु, संभाजी, फुले, डॉ. आंबेडकर, हनुमंतकाका उपरे का रसायन भरा था। इसी कारण सेवालाल बापू ने कहाँ था की, “कोई केनी भजो पूजो मत, सत्कर्म करन वताओ।” क्यों की वे मूर्ती, विभूती पूजक (वंदक) नहीं थे। कुछ लोगों ने उनके साथ भक्ती की मनघड़न कथायें जोड दी हैं।
सेवालाल बापूने कहाँ है की, “गोर गरीबेन जो डांडन खाये, ओरी सात पिढी दु:खे म रीये।” मतलब आज गरिबोंको लुटनेवालों की सात पिढी तक स्वावलंबी नहीं बनेगी। उनकी सात पिढी तक गरिबोंको लुटकर, फसाकर खाने की आदत बनी रहेगी। मतलब वह भिक मंगा बना रहेगा। आज यज्ञ के नामसे लुटनेवालोंकी पिढीयाँ भीक मांगते रहेगी। सेवालाल बापुने और एक सच्चाई बताई है। उनका कहना था कि, ‘तम सौता तमार, जीवनेम दिवो लगा सकोछो’, मतलब हर कोई इन्सान अपनी उन्नती खुदबखुद कर सकता है। उसका अपनपे बाहुबलपर पुरुषार्थपर विश्वास होना चाहिए। ब्राह्मणोंकी तरह परावलबी भिक्षाधारी बनकर यज्ञ, सत्यनारायण, वास्तुशांती, ग्रहशांति, शांतिमंत्र, मंगलाष्टक आदी के माध्यमसे पुण्य की लालच बताकर भोले लोगोंको नहीं लुटना चाहिए। यज्ञ के कामसे किसी सामान्य मनुष्य से सौ पाँचसौ, हजार, ग्याहर हजार, 21 हजार की रक्कम जमा कर किसी को नहीं लुटना, फसाना चाहिए। यह कर्म वास्तव में महादुष्ट कर्म एवं महापाप है।
अत: गोर बंजारा में गोर धाटी गोर नीती, रिती, नियम, आचारसंहिता, गोर कानुन छोड़कर विषमतावादी ब्राह्मणी हिंदू धर्म एवं कर्मकांडोंको, हिंदूधर्मशास्त्रोंका पालन समर्थन करना, यह गोरधाटी, गोर नीती, गोर संहिता का अपमान और बदनामी है। वंदनीय सेवालाल बापून कहाँ था की, “जाणजो, छानजो अन पछज माणजो” संसार में जो भी घटनाँए हो रही है उन घटनाओं को समझ लो उन घटनाओंकी चिकित्सा, समिक्षा, छना-छुन, पुछताछ करलो, उस घटना के भले-बुरे पहलुओंको जाँच लो। घटनाओं के कार्यकारणभाव को पहचानलो और इसके बादही इन बातों एवं घटनाओंका स्विकार करना है या नहीं इसका निर्णय लो। अन्यथा आपको कोई भी धोका दे सकता है। या गुलाम बना सकता है। इतनाही नहीं आपका अस्तित्व भी नष्ट कर सकता है।
आज ब्राह्मण, मनुवाद, हिंदुवाद यज्ञ के रूप में आपके घर आंगन में आ पहुँचा है। कल घर में घुसनेवाला है। और बाद में बहु-बेटीयों की ओर बुरी नजरों से देखनेवाला है। मजबूर बनाकर, गुलाम बनाकर तुम्हारी आखोंके सामने शिलभंग, संकरण करनेवालपा है। गोर भाई-बहनो, जागो सोचो और हिंदुत्व के सभी कर्मकांडों का त्याग करो। केवल गोरधाटी, गोरनिती, रिती, नियम, आचार संहिताका, गोर विज्ञानवादी परंपराओंका पालन, संभाल और संरक्षण करने की प्रतिज्ञा करो।
जय भारत - जय संविधान - जय गोर
निवेदक
प्रा. गहरा और शतचंडी यज्ञ विरोधी कृति समिती,
महाराष्ट्र राज्य।