गोर बंजारा इतिहासकारों एवं विचारवंतो के लिये डॉ. एस.एल. निर्मोही और डॉ. नवल वियोगीकी रचनाओंसे कुछ महत्त्वपूर्ण संदर्भ
दि. 9/4/2023
गोर बंजारा इतिहासकारों एवं विचारवंतो के लिये डॉ. एस.एल. निर्मोही और डॉ. नवल वियोगीकी रचनाओंसे कुछ महत्त्वपूर्ण संदर्भ
1) नाग लोक (साप नहीं) मानव थे। (डी.सी. ओल्डाम) वे पश्चिम एशिया (असिरियासे) आये थे और राक्षस नहीं मानव/मनुष्य थे।
2) उत्तर भारतमे तक्षशिला नाग लोगोंका मुख्य केंद्र था।
3) तक्षक यह नाग लोगोंका मुखिया (राजा था) और वह तक्षशिलामे रहता था। यह तक्षशिला नाम तक्षक के नामसे पड़ा था।
4) नाग लोग इराणसे चलकर अफगाणिस्तान (काबुलमे) आ बसे थे। उसके बाद उन्होंने भारतमे प्रवेश किया, जिसका प्रमाण तक्षशिला है।
5) विद्वानोंका मानना है कि, आस्ट्रेलियन तथा भूमध्य सागर तटीय लोगोंकी उत्पत्ति भूमध्यसागर पूर्व तटीय क्षेत्रोंमे हुयी। नागपुजा की उत्पत्ति वास्तव मे पश्चिम एशियासे हुयी, ऐसा माना जाता है। वहांसे बादमें इजरायल, फिलीस्तीन, असीरिया, बेबीलोन, मेसोपोटामियामे और पडोसी देश मिश्र, क्रेट और ग्रीस (युनान मे) फैल गयी। नागपाल नाम के राजासे नागवंश शुरु हुआ होगा।
6) दो नदियोंके मध्यभागको ग्रीक भाषामें मेसोपोटामिया कहते है। दजला और फरात नदी के बीच का यह मैदान है। एक काली चमड़ीवाली जाति उत्तर-पश्चिम भारतसे आयी और यहां बस गयी। वे स्वयंमको काले सिरवाले याने सुमेर के लोग पुकारते थे। ये दुनिया के पहले आदमी थे, जो सभ्य हुये। मेसोपोटामिया के मैदानमे उनका प्रवेश इ.पू. 5000 में हुआ था।
7) खासी, नाग, कुकी, बोदो, कोलीय, मायो, अंगामी, रेंगम ये जातियां हैं। खासी जाति दिनारिक प्रकार की अल्पाईन जाति हैं।
8) द्रविड लोग जो सिंधू घाटी के सृजनकर्ता है, वे सुमेरसे आये थे।
9) वृत्र, अहि, नाग, दास एकही है। अहिवृत्र यह सिंधू लोगोंका प्रमुख था।
10) आंध्र, पुंड्र, सबर, पुलींद आदी दसु जाति के बताये गये हैं। बुद्ध यह इक्ष्कवाकुवंशी थे। शाक्य गण यह वज्जी महासंघ का एक घटक था। सार्थवाह यह एक व्यापारी महासंघ था। शिशुनाग विदेहोकी संतान थे और विदेह इक्ष्वाकुओंकी एक शाखा थी। वैदेहिक यानी बैलों और गाडीयोंपर माल ढोनेवाला समुह था। सार्थवाह और वैदेहिक एकही जनजाति थी और व्यापार भी करती थी। विद्वानोंने वास्तवमें इस जनजातिकी तलाश या खोज नहीं की। ये चरवाहका भी काम करते थे। इनके कारवांओंकोही सार्थवाह या वैदेहिका कहा जाता था। ये लोग बहुत धनवान और शक्तिशाली सेना रखते थे। इनके वैशाली, विदेह, वज्जी, पालन, शुद्रक, अंधक, वृषिनी, त्रिगर्तशास्ता आदी महासंघ थे। प्राचीन समयमे तीन प्रकार के संघ थे।
1) राजनीतिक 2) धार्मिक 3) व्यापारिक एवं शिल्पक।
तक्षक का अर्थ संस्कृतमे नाग, साप हैं। नाग जाति की उत्पत्ति असिरीयामें हुयी थी। टका, टक्खा, तक्खा सभी तक्षक शब्द के अपभ्रंश शब्द हैं। टका लोग गणसंघ, गणतंत्र के लोग थे। मालव, अर्जूनिया, मद्र, कर्पटी, आंध्र, वहिका, जार्तिक, मुद्रक, अंध्रका, कुनिंद, औधेया, आम्बस्था, कठामिया, वृषिनी एकही वंश के लोग हैं। टका जाति का मूल पुरुष सहारण टका था। इजरायलीका सूर्यदेव बल या बाल था। सिंधूघाटी के पणि लोगोंका देवता भी बल था।
कश्मिरमे चार नाग परिवारोंने राज्य किया। 1) लोहरा 2) गोनंदा 3) नागपाल और 4) कर्कोटक। मुख्य परिवार या राजा कर्कोटक वंशने बौद्ध धम्म का संरक्षण किया।
सिंधूघाटीकी सभ्यता व्यापारी लोगोंकी सभ्यता थी और वे मेसोपोटामिया, मिश्र, बेबीलान तक माल पहुंचाते थे। ये व्यापारी पणि लोग ही थे। विश्व प्रसिद्ध व्यापारी यहुदी दास पणि की संतान है। पृ. 310
खासी शब्द की उत्पत्ति इजरायल की हेब्रु भाषा के नाखस शब्दसे हुयी है, जिसका अर्थ नाग है। महाराष्ट्र के लोग इराणी, द्रविड प्रकार के है। वे लोग इराणसे चलकर बलुचिस्तान सिंध रास्ते से चलकर गुजरात और महाराष्ट्रमें पहुंचे। स्कंद पुराणमें नागों के अनेक नाम दिये गये हैं। वे निम्न प्रकार के हैं।- एलपात्र, कंबल, कर्कोटक, धनंजय, वासुकी, पन्नगश्रेष्ठ, तक्षक, नील, पदमक, अर्बद, परमघोर, नाग, ऐरावत, महाभाग, कालिप, शंखचुड़, महान तेजस्वी, धृतराष्ट्र, वृकोदर, कुलिक, पदम, महापदम, शंखपाल वामन आदी। तक्षकोंने विभिन्न नामोंसे स्थानों और तिथिओंमे लगभग 2500 तक राज्य किया। तक्षक सबसे आगे थे। वे सारी व्यवस्था का केंद्रबिंदू बनकर जिये और तेजीसे आगे बढ़े। वे महान उत्पादक थे। स्वामी, श्रमिक और वीर सैनिक भी थे। धनवान, शौर्यवान थे। वे बराबरी और भाईचारे के सिद्धांत मे विश्वास रखते थे। जात और वर्णव्यवस्था, हिंसामें विश्वास नहीं रखते थे। वे बहुतही शांत, समताप्रिय, न्यायी और मानवतावादी थे। खासी जाति बौद्ध (ज्ञान) धर्मीय या बौद्धानुयायी थी। किंतु शंकराचार्य के प्रादुर्भाव के पश्चात वह हिंदुत्व की ओर झूक गयी और 1884 के पश्चात राजपूत कहलाने लगी। कुनिंद, किरात, कनेत, कुनेत, कत्थुरिया आदी खस जातिकीही शाखायें मानी जाती हैं।
शाही तथा लोहरा वंश एकही होने के कारण दोनों खस जाति तथा सातवाहन अथवा तक्षक नाग वंशसे संबंधित थे। खस जाति का ‘शू’ शब्द उनके देवतासे लगाव था। अत: अमलासु, उतरासु, कडासु, तंगसु, भदरासु, थलासु, वासु, मांगसु आदी नाम पाये जाते हैं। खासी जातिमे साझी पत्नियां और पती की प्रथा मानी जाती थी।
वज्जीगण (समुह, गुट, टोली, समाज) यह वर्तमान उत्तरी बिहार मे आठ गणराज्योंका संघ था। जिसमे शाक्य, कोलीय, बुली, कोलाम, भग, पिप्पलवन, विदेह, लिच्छवी आदी शामील थे। उत्तर पश्चिम भारत के वर्तमान पंजाब, सिंध और कश्मिर क्षेत्रमें गांधार, कंबोज, कैक्य, मुद्रक, त्रिगर्त, औधेय, सौबीर, शिबी, अम्बष्ट, शुद्रक, अभिसार, प्रोस्थ, अश्वक, पौरव, नीसा, गौर, उसा, कठ ऐसे छोटे छोेटे राज्य थे।
कुशक यह जनसमुह इ.पूर्व 140-120 तक राज्य स्थापनामें सफल रहा। कुशान यह समुह इ.पूर्व 50 से 186 इसवी तक शासक के रुपमे सफल रहे। हुण यह जनसमुह असभ्य, बर्बर अतताई, रक्त पिपासु, निर्दय एवं भ्रमणशील मध्य एशिया के कबिले थे। इराण, चीन, युरोप, फारस आदी स्थानों को अतंकीत करते करते भारत पहुंचे। भारतपर आक्रमण करनेवाले पाच हुण कबिले माने जाते है। इन सभी का एक संघ था, जिसमे प्रतिहार, परमार, चाहमान, चालुक्य/चौल, गहलोत आदी कबिले थे। उनका नेता तोरमन के नेतृत्वमे उन्होंने मध्य भारतमे प्रवेश किया। यह समय इसा के बाद का 526 का या उसके बाद का माना जाता है। कलहनकी राजतंरगीनी के अनुसार तोरमल के नेतृत्वमे हुणोंने काश्मिर, पंजाब, सिंध, राजस्थान और मालवापर अधिपत्य स्थापन कर लिया था। तोरणमलका उत्तराधिकारी मिहिरकुल या मिहिर भोज था। बादमें इनपर तुर्क और फारसियोंने अधिकार जमा लिया। बचे हुये हुण भारतमें छोटे छोटे कबिलों के रुपमे भारत में फैल गये। मध्यकालमे इन्होंने अपने आपको राजपूत घोषित किया।
हर्षवर्धन - इतिहासकार बाण के हर्ष चरित्रनुसार हर्षवर्धन के पूर्वज़ श्रीकंठ थानेश्वर के सामंत थे। इस कुल के संस्थापक पूष्यभूति माने जाते है। इस वंश का शक्तिशाली राजा प्रभाकर वर्धन था। प्रभाकर वर्धन की पत्नी यशोमती से तीन संताने हुयी थी। राज्यवर्धन, हर्षवर्धन व कन्या राजश्री। राजश्रीका विवाह कनोज के नरेश गुणवर्धनसे हुआ था। राज्यवर्धन की मृत्यु के बाद सत्ता हर्षवर्धन के हाथ आयी। हर्षवर्धनने राजा शशांक का पराभव किया। उसने अपनी बेटी कमा विवाह हर्षवर्धन के साथ कर अपने प्राण की रक्षा की।
विदेशियोें के प्रवेश द्वार - हिमालय पर्वत और उसके तराई के प्रदेश की खैबर, बोलन, मकरान, टोची, गोमल आदी दरोंसे विदेशी भारतमें घुसते थे। इराणी, युनानी, मध्य एशिया के शक, कुशान, हुण, मंगोल या सभी समुह विदेशी आक्रमक थे। भारत के गव्हर्नर जनरल लार्ड केनिंग (1856-1962) 1860 इसवीमे सर्व प्रथम भारतमें पुरातत्व विभाग की स्थापना हुयी, जिसके प्रथम निदेशक सर अलेक्झांडर कनिंघम थे। पाकिस्तान, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, दिल्ली, उत्तरप्रदेश आदी स्थलोंपर सिंधूघाटी सभ्यता के अवशेष मिले हैं। भारतमे युनानियोंका शासन 183 इ.पूर्वसे 50 इ.पूर्वतक रहा। शक, कुशान, प्रयियनोंने इ.पू. 130 से 425 इसवीतक राज किया।
साधारण तौरसे कालगणना निम्न प्रकारसे की जाती है-
प्राचीनकाल - मानव सभ्यता के आरंभसे सातवी शताब्दि तक।
मध्यकाल - आठवी शताब्दिसे पंधरवी शताब्दि तक।
आधुनिक काल - सोलहवी शताब्दिसे आज तक।
आदियुग - आदिकालसे 13000 इ.पूर्व तक।
पाषाणयुग - 14000 इ.पूर्व से 8000 इ. पूर्व तक।
मध्य पाषाण काल - 9000 इ. पूर्वसे 7000 इ. पूर्व तक।
उत्तर पाषाण काल - 6000 इ. पूर्वसे 5000 इ. पूर्व तक।
धातु ताम्रयुग - 5000 इ. पूर्वसे 4000 इ. पूर्व तक।
लोहयुग - 1000 इ. पूर्वसे आजतक।
मिश्र का राजनैतिक इतिहास इ.पू. 3400 से शुरु हुआ। मिश्र की सभ्यता नाईल नदी के क्षेत्र की है। इ. पूर्व 332 में इराण और मिश्र को सिकंदरने गुलाम बनाया था। मध्य एशियामें दजला और फरात नदियोंका सुसा और निनेवा यह इसके प्राचीन नगर माने जाते है। इसके मुलनिवासी सुमेरियन थे। वे सूर्य, चंद्रमा, इंद्रदेव, तारों आदी के वंदक थे। बेबीलोन में मेसोपोटामिया सबसे बड़ा व्यापारी केंद्र था। बादमे बेबीलोनपर कसाईटोने अधिकार जमा लिया था। यहांपर इ.पू. दुसरी शताब्दिमे राजा हमुरानीने 42 वर्ष तक राज किया था। गौर राज्य यह अश्वक राज्य की सीमासे लगा पंजकौर नदी घाटीमे था। तक्षशिला यह राज्य गांधार के पूर्व मे सिंधू और झेलम नदियोंके बीचमे था।
काश्मिर के पश्चिममे स्थित तक्षशिला प्राचीन कालसे भारतमे सबसे बड़ा नागसत्ता और सभ्यता का केंद्र था। प्राचीन और मध्यकालमे खशादि अनार्य नाग शासकही यहां अधिकतर शासन करते रहे। इनमें गोनंदा, करकोटा और लोहारा, उत्पल और भद्रवाहाका नागपाल वंश प्रमुख है। करकोटा वंश का ललितादित्य राजा इसवी 700 में मध्य एशियातक पहुुंच गया था। लोहारा वंश की बेटी महाराणी दिधा चतुर शासक के रुपमें प्रसिद्ध है। राजनैतिक लोहारा वंश की स्थापना 830 इसवीमें नाराने की थी। यह नारा खस जातिसे था। नारा का बेटा नरवाहन (840-890) नरवाहन का बेटा फुला और फुला का बेटा सातवाहन था। काश्मिरका लोहारा वंश अपनी उत्पत्ति शालीवाहनसे मानता है। शालीवाहन तक्षक नाग परिवार का था, शालीवाहन अनंता का बेटा था, जिसकी पुष्ठी एक अन्य साक्षीसे होती है। काश्मिरकी प्रसिद्ध महाराणी दिधा जो लोहारा वंश की राजा सिंहराज की बेटी थी। उनका पति क्षेमगुप्त के देहांत के बाद उसका चहेता, प्रेमी तुंगा खासी जाति का एक चरवाह के साक्ष थी। उसने 1003 तक राज्य किया था। क्षेमगुप्त 950-958, पुत्र अभिमन्युगुप्त 958-971, पौत्र नंदीगुप्त 972-973, त्रिभुवणगुप्त 973-975, भीमगुप्त 975-981 और दिधा राणीने 981 से 1003 तक राज्य किया था।
मेसोपोटामिया यानी आज का इराक यह सिंधू संस्कृति समयमे विश्व व्यापार एवं व्यापारिओंका केंद्र था। पणि (द्रविड) व्यापारी आज के गोर (बंजारा) यह जनसमुह भूमध्य सागर की ओरसे इराण-इराक मार्गसे भारतमें आये थे। गुजरात के पश्चिमी तटसे सौराष्ट्र होते हुये मलबार तट तक पहुंचे। वहांसे आगे मेसोपोटामिया (इराक पहुंचकर) वहां फिनिशिया (फिनलँड) और बेबीलोन नगर बसाये। यह लोग आर्य नहीं, आज के सभी पीछड़े वर्ग के थे। इनमें पणि नाम की एक खास धनिक, व्यापारी जाति थी, जो वर्तमान समयमे बंजारा नामसे संबोधी जाती है। भूमध्य सागर के द्विपों तक्षा आफ्रिका के उत्तरमें पहुंचकर वहां उपनिवेश बनाये। वे दक्षिण युरोप तक गये और ब्रिटन स्केंडेनेविया तक समुद्र मार्गसे व्यापार किया और सिंधू सभ्यता फैलाई। स्केंडेनियामे इनकी बल नाम की देवता है। पणिसे पणिक, प्युनिक, फिनिक, फिनिक्स, फिनीशिया, फिनिशियन आदी नामाकरण हुये, ऐसा विद्वानोंका मानना है। पणि लोगोंकी एक बस्ती इराण के दक्षिण भाग, अरब के पूर्वी भाग या अरब के दक्षिणी सागरमे थी। फिनिशिया के उत्तरमे कारक्षेजको इनकी अंतिम बस्ती थी।
आर्य आगमन पूर्व कालमें यानी मुल वेदकालमे पणि जनसमुह यह द्रविड, अरि, अहि, नाग, श्रमण, अर्य, असुर, अनार्य, अव्रत, अपव्रत, अन्यव्रत, अनिंद्र, अदेवस्य, अदेववू, अब्रम्हण, अयज्वन, अयाज्ञिक, अश्रद्धान, मनुष्य, विश, वैश्य, किनास, कुर्मी, कुडूंबी, कुटूबी, कुणबी, कष्टक, कृषक, पंजजन्य आदी नामोंसे संबोधे जाते थे।
उत्तर वेदकालमें याने पुराणिक कालमे दैत्य, दानव, राक्षस, दस्यु, दास, सैतान, भूत, पिशाच्च, निशाचर, नरमांसभक्षक, अगडबंब, विचित्र, लोभी, कंजूस, पाखंडी, पापी, दुष्टात्मा, मायावी, जादूपरायण, अवर्ण व्रतहनं, अनाश, मृध्रवाच आदी नामोंसे पहचाने जाते थे।
सिद्धार्थ गोतम (बुद्ध) के धम्म कालमें वज्जी, ववंजही, वैदेही, वैदेहीक, सार्थवाह, तक्षक, कोलीय (बुनकर) शाक्य (कियान) वज्जी यानी मालवाहक व्यापारी ऐसे तीन गणसंघ थे।
इसवीसन दसवी शताब्दि के बाद गोर जनसमुह के पणि नामक जनसमुह के नाम का रुपांतर पणिसे वणी, बनी, वणीज, बनीज, वाणिज्य, बानिज्य और अंतमे वंजारा और बंजारामे हुआ, ऐसा इतिहासकारोंका मानना है। इसके अलावा बंजारोंका लबाना, लभाना, लुभाना, लमानी, लभानी, लमाना, लंबाडा, लुंबाडी, नायक, गोर, गंवार, गवारीयां नामोंसे भी जाना जाता है। धंदे और धर्म के आधारपर गोर (बंजारा) निम्न नामोंसे भी पहचाना जाता है।
वंजारा, बंजारा, लभाना, लुबाना, लमानी, लंबाडा, लदेनिया, बाळदिया, बळदिया, गराशा, गोर, जांगडगोर, गोर नावी, गोर सनार, कंजड गोर, मथुरा गोर, नटगोर, बाजीगर गोर, सिंगाडा गोर, कांगसिया गोर, ओसरीया गोर, मारु गोर, मुकेरी गोर, मुलताकी गोर, कामडी गोर, धानकुटे गोर, फनाडा गोर, सिरकी गोर, घुगरिया गोर, काली गोर, ब्रींजारी गोर, तुरी गोर, गमळीया गोर, वागोरा गोर, जिप्सी गोर, रोमा गोर आदी।
इसके अलावा प्रथक प्रथक धर्म के आधारपर बौद्ध गोर, मुस्लीम गोर, रविदास गोर, शिख गोर, इसाई गोर, राजपुत गोर, बामणिया गोर, हिंदू गोर आदी नामोंसे भी गोर बंजारा पहचाना जाता है। गोर बंजारा आज विश्वमे सैकडों नामोंसे पहचाना जाता हैं। फिर भी इन गोर बंजारोंकी जीवनशैली, भाषा, अलंकार, पोशाख, त्योंहार आदी में बड़ी मात्रामे समानता, समता, भाईचारा, नैतिकता, शिष्टाचार, श्रम आदीमे एकता दिखाई देती हैं।
विश्व जनसमुहकी भ्रमणशीलता - बड़ी संख्यामे इतिहासकार यह वास्तविकता मानते है, कि विश्व के सभी जनसमुह यह आफ्रिका देश से पुरे विश्वमें फैले है। भारत का मुलनिवासी प्रथम आफ्रिकासे बेबीलोनिया के नुपूर एवं ऊर नामक स्थलपर स्थाईक होने के बाद कई सालोंके पश्चात पाकिस्तान के काछी नामक मैदानपर स्थाईक हुआ। पाकिस्तान का यह काछी मैदान (मेहरगड) यह पाकिस्तान के बलुचिस्तान राज्यमे बोलन खींड के पास है। यह काछी मैदान (आज का मेहरगड) क्वेटा, कलात और सिबील जिले के बीचोबीच है। सिंधू नदीसे यह स्थल पश्चिम की ओर 200 कि.मी. दूरी पर है। यहां का जनसमुह यह बड़ी संख्यामें पणि जनसमुह था। काछी मैदान पर स्थाईक होने के पूर्व यह पणि जनसमुह लाल समुद्र के किनारेपर रहता था। यह लाल समुद्र सौदी अरेबिया के पश्चिम को और आफ्रिका के सहारा बालुमय क्षेत्र के पूर्व को याने अरबिया और आफ्रिका के बीचोबीच और अरबी समुद्र के उत्तर किनारेको संलग्न एडन के आखात से भूमध्य समुद्र के किनारेपर स्थित कैरोतक बबहुत लंबा लाल समुद्र फैला है। इस लाल समुद्र के पश्चिम किनारेसे आफ्रिका तक विशाल रेती क्षेत्र फैला हुआ हैं। आफ्रिका के कांगो पहाड़ीसे निकली नाईल नदी जगह जगहपर छह स्थानोंपर मोड लेती हुयी भूमध्य समुद्र के दशिण-पूर्व किनारेपर समुद्रको मिलती है। यह नाईल नदी कांगो पहाड़से बाहर निकलतेही सहारा बालुमय (रेती) क्षेत्रसे बहती बहती अंतमे भूमध्य समुद्रको मिलती है। नाईल नदीका छटवे मोडतक का दक्षिण की ओर का हिस्सा है। छटवे मोडसे यह दोनों नदियां एकरुप हो जाती है। यह नदी आफ्रिका के इजिप्त देशसे बहती है। इजिप्त का भूमध्य सागरकी ओरका क्षेत्र नीचला इजिप्त और दक्षिण ओरका उपरी इजिप्त कहलाता है। नाईल नदी कैरोसे विभाजित होकर बहती हुयी पांच मार्गोसे अलेक्झेंडरिया के पास भूमध्य समुद्रकोे मिलती है। लाल समुद्र के किनारेपर रहनेवाले और नाईल नदीकी किनारेसे दक्षिण की ओरसे पूर्व के ओर स्थलांतरीत होनेवाले लोग एक समय कैरो और अलेक्झेेंडरीया के क्षेत्रमे भूमध्य सोमर के किनारेपर आकर वहां कई सालोंतक रुककर इराण और अफगाणिस्तान मार्गसे भारत पहुंचकर पाकिस्तानमे मेहरगडको बस्ती बनाई थी।
यह जनसमुह पाकिस्तान के बलुचिस्तान राज्य के काछी (मेहरगड) को लगभग इ.पू. 7000 से 4500 तक याने 2500 साल रहा। इसके पश्चात यह जनसमुह धीरे धीरे इ.पू. 4500 के लगभग सप्तसिंधू नदियोंके क्षेत्रमे आ बसा। यहांपर इस जनसमुहने आदर्श अति विकसित आधुनिकतम नगर सभ्यता और संस्कृतिका निर्माण किया था, जो इ.पू. 2000 मे प्रगति एवं समृद्धि के शिखरपर थी। किंतु यह सभ्यता एवं संस्कृति युरोपसे (उत्तर धु्रवसे) आर्य ब्राह्मणोंने अप्सरा तंत्र का प्रयोग करके और विश्वासघात करके यह आदर्श और समृद्ध संस्कृति इ.पूर्व 1800 से 1750 के बीच तोड़फोड़ करके संहार करके, जलाकर नष्ट कर डाली। सिद्धार्थ गोतम का और उनके अनुयायियोंका शासन काल छोड़कर आज तक यह विदेशी आर्य ब्राह्मण सप्तसिंधू नदी के क्षेत्रमे बसे मुलनिवासियोंपर उन्हें बौद्धिक मानसिक, शैक्षणिक, आर्थिक, राजकिय, सांस्कृतिक क्षेत्रमें कमजोर बनाकर उनपर असहनीय अन्याय, अत्याचार कर रहे है।
सनातनी पौराणिक आर्य ब्राह्मण यह खुदको वैदिक कहलाते है। किंतु वे वैदिक न होकर पौराणिक (पुराण ग्रंथ) रचियता है, जो अमानवियता और विकृतियोंसे परिपूर्ण है। यह आर्य ब्राह्मण भारत के निवासी न होकर युरोप खंड के उत्तरीय ध्रुव 21 प्रदेशोंसे टोली टोलीसे भारत आकर यहां के मुलनिवासी बहुजनोंका विश्वासघात करके शासक बने हुये हैं। युरोप के हंगेरी, ऑस्टेरिया, बोहेमिया, डेन्युब नदी, स्वीत्झरलँड, मिश्र, जर्मनी, लिथुनिया, रुस का क्षेत्र, कॉस्पीयन सागर, मध्य एशिया, सिरिया, असिरिया, उत्तरी क्षेत्र, सुमेरु पर्वत, जंबुद्विप, केतुपालखंड आदी देशोेंसे आये हुये है। आर्य लोग वास्तवमे घुमंतु, जंगली, असभ्य, असंस्कृत, स्वैराचारी, अश्रमण, अकर्षक, लड़ावू, अश्वधारी, विश्वासघाती, शरणार्थी, भिक्षक, स्वर्गवादी, भोगवादी, अमिथुनी, कंदमुळ, फल, मांसाहारी थे। किंतु बहुजनोंको युद्धमे हराकर आज वे शासक बन बैठे हैं।
आज वे खुदको देव, सुर, वैदिक, आर्य, ब्राह्मण, याज्ञिक, नियोगी, भूपति, पृथ्वीपति, भूसुर, जगत्पति, ईश्वर, परमेश्वर, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, सर्वव्याप्त, संकटमोचक, सनातनी, विश्वगुरु, सवर्ण, श्रेष्ठ, सनातनी, द्विज पुरोहित, भटजी आदी नामोंसे पहचाना जाता हैं।