तथागत बुध्दके बारेमें फैली हुयी गलतफैमिया

तथागत बुध्दके बारेमें फैली हुयी गलतफैमिया

तथागत बुध्दके बारेमें फैली हुयी गलतफैमिया तथागत और बुध्द ये दोनों शब्द किसी व्यक्ति या वस्तुका नाम नाही है। ये दोनों शब्द विशेषण है। विशेषण यानी जो शब्द किसी चीज एवं नामकी विशेषता, खासियत, प्रथकता बताता है, वह शब्द विशेषण एवं खास कहलाता है। तथागत और बुद्ध ये दोनों विशेषण है। शुद्धोदन यह इसापूर्व छटवी सदी में कृषक और राजा था। वह शाक्य कुलसे था, और उनका कुल या वंशनाम गोतम था। उनकी जीवनसाथी महामाया कोलीय गण एवं कुलसे थी। कृषक राजा शुध्दोधन गोतमके समयमें शाक्य कोलीय और वज्जी ऐसे तीन कुल, गण या टोलीयां थी। सिद्धार्थ गोतम यह राजपुत्र था। किंतु उसने सत्य के खोजके लिये गृहत्याग कर दिया था। वह राजपाट छोड़कर जंगलमें चला गया था। सत्यकी खोजके लिये वह जंगलोंमे भटकता रहा और अनेक साधूसंतो, ॠषि-मुनियोंसे सला-मशवरा लेते रहा। कई सालोंत भटकते भटकते और विचार, चिंतन, मंथन, संकलन करने के पश्‍चात उसे सत्य ज्ञानकी प्राप्ती हुयी और इस सत्यज्ञानका प्रचार प्रसार करते रहने के कारण जनताने उन्हे तथागत बुध्द की उपाधि, पदवी देकर इस उपाधि, पदवी के नामसे संबोधना शुरु किया। मतलब तथागत और बुध्द यह दोनो विशेषण, उपाधि एवं पदवी है, और यह पदवी सच्चा ज्ञान प्राप्ति के बाद सिध्दार्थ गोतमको दी गयी दो उपाधियां है। तथागतका अर्थ है प्रकृति, निसर्ग के स्वभाव गुणानुसार और बुध्द का अर्थ है, अविकृत, वैज्ञानिक, बुध्दीप्रामाण्यवादी प्रखर ज्ञान, जिसके पास है ऐसा महान बुद्धिवादी, ज्ञानी, विचारवंत, तत्वज्ञ और सिध्दांतवादी महापुरुष। बुध्द यह धर्म नही है, पंथ, संप्रदाय भी नही है। बुध्द यह प्रकृति प्रदत्त अविकृत, मानवी, समता, स्वातंत्र्य, न्याय स्नेह, शांति, सुख, समृध्दिकी प्रख विचारधारा, जीवन पध्दती जीवनशैली, एवं मानवी जीवनका महासिध्दांत, तत्वज्ञान है। यह सिध्दांत तत्वज्ञान किसी जाति एवं समुह विशेष का नही, बल्कि समस्त वैश्‍विक, मानव एवं समस्त जीव समुहोंके लिये, राष्ट्रके और विश्‍वके अस्तित्वके लिये, साथही सभी प्रकारके स्वास्थ्यके लिये है। ऐसे इस तत्वज्ञानको धम्म नामसे संबोधा जाता है। धम्म यह धर्मके भाांति विकृत, अमानवीय,शोषक, अन्यायी, अत्याचारी विषमतावादी नही। यह अविकृत, समता,भाईचारा, स्वतंत्रता, मानवतावादी न्यायदाता है। जिस जनसमुहने इस धम्मरुपी विचारधाराको, नैतिकतापूर्ण, ज्ञानपुर्ण विचारधाराको स्वीकार कर लिया है। उन्हे बौध्द यानी ज्ञानी जन समतावादी, कहा या माना गया है। इस बुध्द के धम्मतत्व ज्ञान ने इ.पू. ब्राह्मणी, पौराणिक, आर्यन विचारधाराको भारतसे नष्ट कर दिया था। किंतु बादके समयमें ब्राह्मण सेनापती पुष्यमित्र शुंगने प्रतिक्रांती कर बुध्द धम्मको भारतभूमिसे नष्ट कर दिरा था। किंतु यह धम्म उसके पश्‍चात भारतके अलावा विश्‍वके अन्य 46 देशोंमे फैला हुआ है। बुध्द धम्म यानी विचारधारा यह वास्तवमे सिंधुकालीन संस्कृतिका प्रतिरुप या पर्यायी माना जाती है। ब्राह्मणी हिंदू आर्य सनातनी, वैदिक(पौराणिक) विकृत विचारधारा यह इ.स. पूर्व 85 के बादकी पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण राजा की विषमतावादी है। सिंधु संस्कृति यह आर्य ब्राह्मण भारत आने के पूर्वकी प्रकृती, पूर्वज, पशुपंछी वृक्षलता, नदिया, पहाड, बीजली, तुफान, बाढ, लोकतंत्रवादी, मातृवंदक थे। धर्ममें जो विकृतिया पायी जाती है, यह विकृतीया दोष सिंध कालीन संस्कृतीमें नही थे। हिंदू मुस्लिम, इसाई, पारसी, मनू एवं ब्राह्मणी संस्कृतीका निर्माण इसवीसन के बाद में हुआ है। किंतू उपरोक्त सभी संस्कृतीयोंगा वर्चस्व इ.स. सुरु होने के बादमें बढ जाने के कारण सिंधु संस्कृतिमें घुसखोरी यानी धर्मांतरण किया है। यह संकरीकरण ही सिंधु संस्कृतिवालोंकी सबसे बडी भूल परिणाम भोग रहे है। वे उपरोक्त सभी धर्मयुक्त संस्कृतिमें पूर्णत: गुलामीका जीवन जी रहे हैं। इसलिये मेरा कहना है की धर्मवादी संस्कृतियोंको त्यागकर, मुल सिंधुसंस्कृतिवासियोंनकी सिंधू संस्कृतिका स्विकार कर धर्म संस्कृतिकाी गुलामीसे मुक्ती पाये। अन्यथा आनेवाले समयमें तुम्हारे हिस्सेमे अखंड गुलामी अटल है। जरभारत- जर संविधान प्राचार्र ग.ह.राठोड

G H Rathod

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