सिंधु घाटी सभ्रताका इतिहास :- लेखक-पु.श्री. सदार

सिंधु सभ्रता मानव जातिकी प्रथम सभ्रता होने के कारण रह मिश्र और सुमेरिरा (बौबीलोनिरा) राने आजका इराक इन सभ्रताओसे भी पुराणी है।

(संदर्भ-सूची) 1) सिंधु सभ्रता मानव जातिकी प्रथम सभ्रता होने के कारण रह मिश्र और सुमेरिरा (बौबीलोनिरा) राने आजका इराक इन सभ्रताओसे भी पुराणी है। (सुमेरिरा = इराक) रह सभ्रता केवल भारतमेही नही बल्कि भारतके बाहर आजके इराण, इराक, इजिप्त, भूमध्रसमुद्रमे स्थित किअ, माइसिनी, तथा टिराणिस (टिगलिस) द्विप और ग्रीस (ग्रीक का दक्षिण किनारा इन प्रदेशोंमें फैली हुरी थी। आर्र सिंधुस्थान, सिंधुगण, हिंदुस्थानमें इ.पू.3300 मे आरे और उन्होंने आर्रोंका पहिला राज्र ब्रम्हावर्त, दृशदवती और सरस्वती नदीके बीच स्थापन किरा। सिंधु नगरोंकी खुदाईमे (मोहेंजोदडो) और हडप्पा) मे जो मानवी कंकाल मिले है। उनमे नार्डीक आर्रोंका एक भी कंकाल नहीं मिला है। आर्र खुदको नार्डीक आर्र मानते है। खुदाईमें कुल 26 खोपडिरा मिली है, उनमें (डॉ. गुहा और कर्नल स्नेल के अनुसार) तीन प्रोटो ऑस्ट्रेलाईड एक मां अल्पाईन मंगोलाईड, एक बच्चा अल्पाईन और 21 भूमध्र समुद्रीरा वंश के मेडीटेरिरन कंकाल मिले है। लंबे सीरके अल्पाईन मंगोलाईड मेडीटेरीरन) आर्रोने भारतमें प्रवेश अफगाणिस्तान और इराणके मार्गसे किरा था। सिंधुस्थानमें आतेही उन्होंने सिंधु नगरोंपर आक्रमण नही किंरा था। इराण की आर्र शाखाने प्रथम सिंधुस्थानमें इ.स.पूर्व 3300 में प्रवेश करके सिंधु नगरोंसे दूर सरस्वती नदीकें दूसरे किनारेपर बस्ती बनाई थी। वहांसे उन्होंने छोटे छोटे हमले करके सिंधु लोेगोंका परकोटाके बाहरका माल जैसे गार, पशु, घोडे, अनाज, स्त्रिरा और बच्चे लुटना आरंभ किरा था। उस जमानेकी सरस्वती नदी एक प्रमुख नदी थी। उसकी ॠग्वेदमें अन्र किसी नदीसे ज्रादा स्तुती की गई है। रह सरस्वती नदी आज सुख गई है। परंतु सिंधु नगरोंके कालमे वह पणि व्रापारिरोंका जलमार्गसे व्रापार करनेका साधन थी। उसमेसे वे अरबके समुद्रमे उतरकर इराण की खाडीसे होते हुरे टारग्रीस और रुफ्राटिस नदिरोंके मुहानेमें प्रवेश कर इाक के सुमेरिरा प्रदेशके इरिडू, उर, हरेक, सुमेर, लगारा, बॉबिलोनिरा और अगद नगरोतक तथा टारग्रीस नदीपर बसे असुर और निप्पूर नगरोतक पहुच जाते थे, व्रापार करने के लिरे। आज (2007) में सुखी नदी सरस्वतीको स्थानिक भाषामे घग्गर नामसे तथा सरस्वतीकी समांतर नदी दृशदवती चौतांग नामसे जानी जाती है। इन्ही दो नदिरोंके बीच अतिथीग्व दिवोदासने आर्रो का पहला राज्र ब्रम्हावर्त बसारा था। रह घटना इ.पू. 3102 की है) आर्रोकी एक के बाद एक करते भारतमें तीन टोलीरा आरी थी। 1) भरत टोलीका प्रमुख वध्रास्व था। 2) उसका पुत्र दिवोदास रह ब्रम्हावर्त स्थापन करनेवाला 3) दिवोदासका पुत्र सुदास रह हुरी भरतोकी तीन पिढिरां एवं टोलीरा। ऐसी कुुल नौ पिढीने सिंधु राजाओंके साथ संघर्ष किरा था। पाकिस्तानमें बलुचिस्तान राज्र है। बलुचिस्तानमें क्वेटा और क्लात नामके जिल्हे के बीच काछी (मेहरगड) क्षेत्र है। रहा क्वेटा जिल्हे में बोलन दरा एवं खींड है। रह बस्ती इ.स.पूर्व 10,000 की मानी जाती है। मेहरगडसे एक रास्ता दक्षिण अफगाणिस्तान की और जाता है। बीचमें मुंडीगाक स्थल लगता है। अफगाणिस्तानके मुंडीगाक के पास पडोसमें, सिंधु नगरीर पणि व्रापारिरोंके केंद्र थे। रहासे एक मार्ग इराणसे इराक जाता है। दुसरा मध्र अशिरा होकर कॉस्पीरन समुद्रके किनारे तक पहुचता है। सुमेर रह रुक्राटिस नदीपर बसा आजके इराण का एक नगर राज्र था। उसी प्रकार दुसरा नगरराज्र सुसा था। रह आजके इराणके पश्‍चिम हिस्सेमे बसा हुआ एक नगर था। इन दोनों राज्रोंसे सिंधु व्रापारी पणिरोंका काफी बड़ा व्रापार और सांस्कृतिक संबंध था। सुमेरसे सिंधु लोगोंका संबंध इतने घनिष्अ थे कि सुमेरको सिंधु लोगोंका उपनिवेशही कहा जाता था। उर और किश रह दो नगर राज्र थे, जो सुमेरिरामे रुफ्राटिस नदीपरही बसे हुरे थे। सिंधु पणि व्रापारी इन सुमेरी नगरोसे, इराणके आखातसे, और आरे रुफ्राटिस नदी द्वारा जहाजोंसे संबंध रखते थे। सिंधु व्रापारी उर और किशमे उपनिवेश स्थापण करके दूर भूमध्र समुद्री टापू क्रिट और सारप्रस द्वीपसे व्रापारिक संबंध रखते थे।र डाकर्राड बनानेकी कलामे तथा नौकारनमें कुशल थे। सिंधु बनावटकी मुद्रारे सुमेरिराके नगर उर, किश, उमा, लगास, तेलअस्मर, तेपी, गव्हारा और सुसामे पाई गई है। वसिष्ट और अगस्त्र अप्सरा उर्वशी की संतान थी। रे दोनों सिंधुस्थानमें लढनेवाले प्रथम आर्रोमेसे थे। वशिष्टके जन्मकी कहानी मे कहा गरा है, कि उर्वशी को देखतेही देवता वरुण मित्राका विर्र पतन हुआ था एक कमलके फुलमें। इसी फुलसे वशिष्टका जन्म हुआ था। ऐसी ही जन्म कथा ॠषि अगस्त्रकी है। उसके जन्मदाता भी उर्वशी और मित्र वरुण है। अगस्त्रका जन्म मिट्टीके घडे में हुआ था, ऐसा बतारा गरा है। अप्सरारे विदेशी स्त्रिरा थी। वे दूर के देशसे समुद्री मार्गसे सिंधुस्थान आती थी। वे तरुण और सुंदर होती थी तथा राजा-महाराजा और धनी व्रक्तिरोंके पास सहवास के लिरे चार सालके करार करके रहती थी। करार समाप्त होनेपर वे वापस अपने देश चली जाती थी। वे अपने शरीर और रुपका बहुत खराल रखती थी। रदि संतान पैदा हुरी तो वे उसको उनके प्रेमीके भरोसे छोड़कर चली जाती थी। इसका एक उदाहरण अप्सरा मेनका का है। वह शकुंतला को विश्‍वमित्र के साथ छोड़कर वापस चली गरी थी। रह अप्सरारे सिंधु पणि व्रापारिरों के साथ चार चार सालका करार करके रहती थी। करारवाले बड़े व्रापारी, धनिक, राजा, पुरोहित तथा सेनापती रहते थे। चार सालके बाद उन्हीं व्रापारिरोंके साथ अपने देश चली जाती थी। रदि वे जाते समर गर्भवती रहती तो उनके देशमे बालकको व्रापारिरोंके माध्रमसे पिताको सौपा देती थी। सुमेरिरन सभ्रता (मेसोपोटेमिरन सभ्रता) सिंधुस्थान की ही देन थी। मेसोपोटेमिराके तीन मुख्र विभाग थे। सुमेर, बॉबीलोनिरा और असिरिरा। इन तीनोंकी सभ्रतामे कुछ मामुली भेद थे। रह भेद रानी सुमेर और बॉबीलोनिराकी मिट्टी महिन और वालुकामर थी। उनके भवण इटोंके थे। इसलिरे वे ज्रादा सदी तक नही टिक सके। असिरिरा टापुमे पत्थरोकी भरमार थी। इसलिरे वहां शाश्‍वत स्मारक उपलब्ध है। परंतु इन तीनों टापुओंका भवन निर्माण इजिप्तके भवनोंके समान सौंदर्रमरी नहीं है। रहांपर रहुदीवंशी लोग नही थे। सिंधु लोग आगे थे और रहुदी असिरिरन पीछे थे। सुमेरिरन सिंधू लोग संशोधक वृत्तीके थे। बॉबीलोनिरन (रहुदी) व्रवहारिक थे। असिरिरन आर्र शुध्द हिंसक और नकल करनेवाले थे। हुबहू रही हालत सिंधु समाजमें घुसे आर्रोकी थी। वे तो निरा भकारी अवस्थामें सिंधुस्थान आरे थे, जिसे बॉबीलोनिरन सभ्रता कहते थे। उसमें जो भी सर्वोत्तम था, वह सुमेरी लोगोंके सिंधु लोगोंके कारण था। मानव समुह कहासे पुरे विश्‍वमें फैला : विश्‍वके सभी लोग अफ्रिकासेही फैले हुरे है। बॉबीलोनिराके नुपूर एवं उर नामक स्थलके पश्‍चात पाकिस्तानके काछी मैदानमे स्थाईक होनेके पूर्व पणि लोग लाल समुद्रके किनारे रहते थे। रह लाल समुद्र सौदी अरबिराके पश्‍चिमका और अफ्रिकाके सहारा वालुमर क्षेत्रके पूर्वको रानी अरबिरा और अफ्रिकाके बीचोबीच अरबी समुद्रके उत्तर किनारेको संलग्न ढडनके आखातसे भूमध्र सागरके किनारेपर स्थित कैरोतक बबहुत लंबा लालसमुद्र फैला हुआ है। इस लाल समुद्रके पश्‍चिम किनारेसे अफ्रिका तक विशाल रेती क्षेत्र फैला हुआ है। रह रेती क्षेत्र भूमध्र समुद्रके दक्षिण किनारे तक फैला हुआ है। अफ्रिकाके कांगो पहाड़ीसे निकली नाईल नदी जगह जगहपर छह स्थानोंपर मोड लेती हुरी, भूमध्र समुद्रके दक्षिण पूर्व किनारेपर समुद्रको मिलती है। रह नाईल नदी कांगो पहाड़ोसे बाहर निकलतेही सहारा बालुमर क्षेत्रसे बहती हुरी अंतमे भूमध्र समुद्रको मिलती है। नाईल नदीका छटवे मोडतकका दक्षिण की ओरका हिस्सा रह कांगो पहाड़ोंसे निकली खेत और नील ऐसे दो नदीका हिस्सा है। छटवे मोडसे दोनों नदिरा एकरुप हो जाती है। रह नदी अफ्रिकाके इजिप्त देशसे बहती है। इजिप्तका भूमध्र समुद्रके ओरका क्षेत्र नीचला इजिप्त और दक्षिण की ओरका उपरी हिस्सा कहलाता है। नाईल नदी कैरोसे विभाजीत होकर बहती हुरी पांच मार्गोसे अलेक्झेंडरिराके पास भूमध्र समुद्रको मिलती है। लाल समुद्रक किनारेपर रहनेवाले और नाईल नदीकी किनारे से दक्षिण की ओरसे पूर्वकी ओर स्थलांतरीत होनेवाले लोग एक समर कैरो और अलेक्झेंडरिराके क्षेत्रमे भूमध्र समुद्रके किनारेपर आकर वहा कई सालोतक रुककर इराण और अफगाणिस्तानके मार्गसे भारत पहुचकर पाकिस्तानके बलुचिस्तान राज्रमें मेहरगडको (काछी) मैदानपर बस्ती बनाई। 1) मार्शल का मानना है कि, हडप्पा सभ्रतामें वैदिक देवगण तो थे। किंतु रह सभ्रता अवैदिक थी। इस सभ्रताकी पृष्ठभूमिमे तीन बाते विशेष थी। पहली विशेषता रह थी कि हडप्पा सभ्रतामे पालतु घोडोके उपरोग का प्रमाण नहीं मिलता। किंतु ॠग्वेदिक आर्रोकी कथाही घोडोंद्वारा चालित रथोंसे आरंभ होती है। दुसरी विशेषता रह थी कि हडप्पा सभ्रतामें लोहेका प्ररोग कभी नही हुआ था, जब कि वैदिक आर्रोद्वारा इसका प्रचुर मात्रामें उपरोग होता था। तीसरी खास बात रह थी, कि हडप्पा सभ्रता एक अत्रंत विकसित नगरीर सभ्रता थी, वही दूसरी और वैदिक संस्कृति एक नितांत ग्रामीण संस्कृति थी। लेखक भगवानसिंह (हडप्पा सभ्रता और वैदिक साहित्र) 2) वेदोंमे आर्र शब्द अ, अर्र 88, असुर 105, दास 61, दस्रु 84, पणी 176 और बल 24 बार प्ररोगमे आरा है। ॠग्वेदमें असुरोंको प्राणवान, शक्तीवान, ऐश्‍वर्रवान, देवता, ईश्‍वर, विधाता, अर्र, विश, अरि, अहि, पणी, द्रविड, नाग, श्रमण, मेलुव्हा, बलवान, स्वामी, शासक। 3) प्राचीन भारतके अधिकांश महापुरुष इंद्र, ब्रम्हा, विष्णु, शिव, राम, कृष्ण, बुध्द, महावीर आदिका ब्राह्मणीकरण करके उन्हें दान-दक्षिणा प्राप्त करनेके लिरे देवोंका रुप दे दिरा. पहले तो उन्हें बदनाम करनेका प्ररत्न किरा। किंतु बदनाम न होते देखकर, देव बनारा। 4) वेदमें प्ररुक्त कृण्वन्तोविश्‍वमार्रम का अर्थ विश्‍वको अर्र, खेतीहर (कृषक) बनाना है। 5) निमोहीजीका कहना है कि, इराण, इराक, अजरबेजान जैसे शब्द अर्रान, अर्राक, अर्राना बेइजो से बने है, जिसका अर्थ अर्रोका देश है। उनके विचारोनुसार आर्र रुरोपसहित विश्‍वकमे उतरी भागके 21 देशोसे भटकते भटकते भारत तक आरे थे, जिसे वे 21 सुवर्ण रा स्वर्गलोक के रुपमें राद करते हैं। 6) दासरज्ञ रुध्द असुर-आर्र संघर्ष न होकर असुरोका परस्पर संघर्ष माना गरा है। 7) पहले तीन वर्ण विश, क्षत्र, ब्राह्मण, तीन पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम, तीन आश्रम ब्रम्हचर्र, गृहस्थ, वानप्रस्थ थे। परंतु बादमे शुद्र, मोक्ष, संन्रास जोडे गरे। रह हेराफेरी आर्रोने की है। 8) वेदोंमे असुर शब्द ईश्‍वर रा देवताका पर्रार है। अवेस्तामे भी रही अर्थ है। परंतु बादके पौराणिक संस्कृत ग्रंथोमे उन्हें पापी, दुराचारी, बलात्कारी बतारा गरा है। वेदोंमे कृषि कार्र सर्वश्रेष्ठ है। परंतु बादके पुराण, रामारण, महाभारत तथा स्मृति ग्रंथोमे पापकर्म, अधर्म, गर्हित कर्म बतारा गरा है। वेदोंमे ब्रम्हा, विष्णु, शिव, इंद्रको श्रेष्ठ मानव बतारा गरा है। किंतु बादके ग्रंथोंमे उन्हें भगवान बना दिरा गरा है। 9) ॠग्वेदिक भारतमे कृषि, पशुपालन, व्रापार, शिल्पकारी (कारागीरी), गृहउद्योग करनेवाले विश, वैश्र, मनुष्र, कृष्टी, किनास, अर्र, अरिर व्रात्र, कुटसी, कुटंबी, कुळंबी, कुणबी, कृषक, पणि नामोंसे पहचाने जाते थे। आर्र लोक वैदिक सनातनी, ब्राह्मण (हिंदू) द्विज, भट, पुरोहित, भूदेव, भूसूर, भूपति, पृथ्वीपति। 10) आर्र लोग मनुष्र लोग थे। उपर उतरी ध्रुवसे रुरोप तक के देश स्वर्ग लोग कहे जाते थे। रही आर्रोके मूल देश थे। भूमंडलके दक्षिणी देश, दक्षिण अफ्रिका, आस्टे्ररिा, सुमात्रा, जावा, बोनिओ, दक्षिण अमेरिका वगैरे देश पाताल लोगके अंतर्गत आते थे। 11) सिंधुघाटीके लोग अमृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर इत्रादीसे बननेवाला स्वास्थ्रवर्धक पेर सोमरस (भांग) पीते थे। शराबसे रहा के लोग परिचित नहीं थे। 12) ॠग्वेदके देवताओंमे इंद्रको सबसे उच्च स्थान प्राप्त है। इंद्रके लिरे ॠग्वेदमे 250 मंत्र लिखे गरे है। रह इंद्र समस्त देवोका भी राजा अर्थात देवराज है। रह स्थान उसे देवोमे शीर्ष स्थान होनेसे मिला है। वेदोंमे देव-देवताका अर्थ सुर नहीं है। क्रोंकि सुर तो कवेल आर्रोको ही कहा गरा था। रहा देवराजका अर्थ है, वैदिक देवताओं सूर्र, चंद्रमा, सितारे, पृथ्वी, आग, पाणी, हवा, बिजली, नदी, पहाड़, पेड पौधे, मेंढक, उल्लू, बिल्ली, कुत्ता, गार, भैस, हाथी, उट, आदी। वेदोमे जहांपर इंद्रकी देवताके रुपमे स्तुती की गई है, वहापर इंद्रको असुर भी कहा गरा है। हिंदुओंके सभी भगवान सृष्टिकर्ता ब्रम्हा, (कश्रप), पालन कर्ता विष्णु, संव्हारकर्ता शिव, (तीनो ॠग्वेदिक महापुरुष) तथा राम, कृष्ण, बुध्द, महावीर जैसे भगवान असुर कहे गरे है। क्रोंकि वेद, कुरमी, कृषकोंका काव्र ग्रंथ है। अथर्व वेदमे असुरके पर्रार व्रात्र देवता (कृषक देवता) के लिरे अनेक मंत्र लिखे गरे है। 13) असुरोके बारेमें ब्राह्मण तथा पौराणिक ग्रंथोंमे जहां उन्हे दुष्ट, नीच आदी के रुपमें प्रस्तुत किरा गरा है, वही कही कही उनसे जुडे सत्र का भी उद्घाटन किरा गरा है। ब्राह्मण ग्रंथोके अनुसार असुर संपूर्ण भूमंडलके स्वामी थे। तीनों लोकोंमे उनका साम्राज्र फैला हुआ था। तैतरीर ब्राह्मणमें लिखा है, कि पृथ्वीके अधिकांश भागपर असुरो का अधिकार था। जबकि (बादके देव अथवा आर्रो) के पास तो मात्र उतनाही भाग था, जितना कि कोई बैठा हुआ मनुष्र देख सकता है। पंचविश ब्राह्मण, ऐतरेर ब्राह्मण रही सत्र उद्घाटीत करते है। जैमिनीर ब्राह्मण के अनुसार संपूर्ण भूमंडलके समस्त भौतिक सुख पदार्थ असुरोके आधिक्रमें थे। देवो, असुुरोंके अधिकार क्षेत्रमें तो मात्र वाणी/वाक थी। वाल्मीकी के अनुसार पर्वत और समुद्रसहित संपूर्ण पृथ्वीपर असुरोंका साम्राज्र था। कठक सहितामें की रह सत्र प्रकट हुआ है। मतलब असुर समस्त भूमंडलके स्वामी थे। असुरोंके किल्ले लोहा, सोना, चांदीसे बने हुरे थे और इन तीनो चीजोंसे उनके घर भरे रहते थे। पर रुध्दके शस्त्र नहीं थे। 14) ॠग्वेदमे प्ररुक्त ‘पंचजना:’ का अर्थ भी पाच कृषक जनके अर्थमे आरा है। बादमे उन्हें पंच कृष्टर: पंचविश, पंचजना: का प्ररोग विश, कृषक के लिरेही आरा है। अनु, द्रुहर, तुर्वस, रदु, पुरु को उपरोक्त शब्दोसे संबोधा गरा है। रे सब कृषक राजा और कृषकोंके हितचिंतक और एक विचारसे चलने रा रहनेवाले थे। सभी असुर थे। व्रापारी, कृषक , पशुपालक, कारागीर (शिल्पक) सभी असुर थे। उपरोक्त नामोंके अलावा ॠग्वेदमे पान्च जन्र, पांचजन्रा, पाचजन्रासु, पाचजनेन आदीका उपरोग मिलता है। 15) असुर कृष्ण रा श्रामवर्णी थे। रही कारण था कि शिव, ब्रम्हा, राम, कृष्ण, विष्णु, काली (दुगा)ृ रह श्रामवर्णी असुरही पूज्र हुरे। असुरोमे सर्वश्रेष्ठ अज (ब्रम्हा-कुर्मी कृश्रम) कृष्ण, द्रुहर, नमुचि इलीविश, अर्बुद, विश्‍वरुप व्रास, शंबर, दशाणि, पंचजन माने गरे थे। इन्हे पूर्व देव भी माना गरा है। पणि लोग मूलत: सप्तसिंधू प्रदेश हरप्पा, मोहेंंजोदडो, कालीबंगा चन्हूदडो आदी क्षेत्रोंके मूलनिवासी थे और असुर रा विश समाज के ही थे। इनका (पणिरोंका) व्रापार एशिरा, रुरोप, अफ्रिका इत्रादी के अनेक देशोंमे फैला हुआ था। भूमार्गके अलावा समुद्र मार्गसे भी वे व्रापार करते थे। कुछ विदेशी पणिरोंका भी उल्लेख प्राचीन ग्रंथोंमे मिलता है। भागवत पुराणमें रसातलमे निवात, कवच, दैत्र, दानव पणिरोंके हिरण्रपूरमे रहनेका उल्लेख मिलता है। महाभारतमें भी हिरण्रपूरवासी असुर पणिरोंका चित्रण है। विद्वानो के अनुसार रह हिरण्रपूर प्राचीन बेबीलोनिरा का प्रसिध्द नूपूर नामक नगर था। इसीके निकट उर नामक नगर था। रह असुर सभ्रता का दूसरा विख्रात केंद्र था। वैदिक कालमे पणिरोंने रही इंद्रकी गारे चुराकर छिपा रखी थी। जिसकी खोजके लिरे सरमा कुतिरा (दूती) को भेजा गरा था। वेद मंत्रो तथा वृहदेवता नामके ग्रंथमे रसा नदी तटवासी पणिरोंका उल्लेख है। संभवत: इसी रसा नदी क्षेत्रको रसातल कहा गरा अथवा रसातल नदी होनेसे उसे रसा नामसे जाना गरा हो। अवेस्ता (पारसी ग्रंथ) में इस रसाका रहा नदीके रुपमे उल्लेख है। पश्‍चिमी एशिरामें आजकल इस नदीको सीर नदी कहते है। उत्तरकालमें पणि लोग अपनी सुरक्षाके लिरे रुरोपकी ओर भाग गरे, और रहां उन्होंने फिनिशिरा रा फिनलँड बसारा। इस प्रकार पणि मूलत: भारतीर विश असुर समाजके अंग थे। उन्होंने भलेही आम जनताका शोषण किरा हो, परंतु नगरीर सभ्रता के रेही जनक थे और आज भी नगरीर संस्कृतिके प्रसारमे इनकी शोषक प्रवृत्तीको नकारा नही जा सकता। वैदिक कालमे जब इनके शोषणकी अति हो गई, तो आम जनताद्वारा उनका विनाश किरा गरा। बादमे भी कुछ लोगोंद्वारा स्वार्थके लिरे इनका संव्हार किरा गरा। संव्हार के कारण पणि भागकर पश्‍चीमोत्तर क्षेत्रोमें पहुचे और उन्होंने वहा देशी-विदेशी वस्तुओंका व्रापार चालू रखा और वहांपर भी उन्होंने भारतीर संस्कृतिकी नींव रखी। वेदोमें इंद्र, कृषक सम्राट (कृष्टीनाम राजा) महान कुरमी (तुवि कुर्मि) विशोका राजा (विशापति) मानवोंका राजा, असुर सम्राट जैसे नामोंसे जाना गरा है। अग्नि भी विशो/कुर्मी/कृषको के घर का स्वामी/विशाम्पति है। इसी प्रकार सरस्वती नदी विशो/कुरमी/कुषको, असुरोंकी प्राणदारीनी नदी है। इसी नदीके तटपर असुरोने प्रथमत: कृषि का अविष्कार कर सभ्रता/संस्कृतिको जन्म दिरा था। इस प्रकार पणिरोंका विनाश करनेवाले इंद्र, अग्नि, और सरस्वती रे तीनों तत्व विशो/कुरमी/कृषको/असुरोंसे जुडे है। पणि/वणिक इन्ही विशों आदिकी शोषणसे धनी बने थे। जब विशो कुरमी कृषको असुरोंको इंद्र जैसे महारोध्दाका नेतृत्व प्राप्त हुआ तो उन्होंने अपने कृषक सम्राट इंद्र के नेतृत्वमें अपने शोषणकर्ता पणिरोंका विनाश कर डाला। उन्होनं उन्हे न केवल मार डाला, और उनके घरो, किलोंको भी उध्वस्त कर डाला। उन्होंने धन लुटकर उनके घरों, गोदामों, किल्लों आदीमे आग लगाकर भी उनका विनाश किरा। आगे बाढमे (सरस्वतीके) पणिरोंके नगर भूमीमे दब गरे। इस तरह सरस्वती पणिरोंकी और कुरमीओंकी विनाशकारीणी बनी। आर्रोके माने जानेवाले देश आस्ट्रिरा, हंगेरी, स्वीत्झरलँड, मिश्र, जर्मनी, लिथुनिरा, रुस, कॉस्पीरन सागर क्षेत्र, मध्र एशिराके सीरिरा, असीरिरा एवं अरब देशोंके साथ भारतिरोंका प्रत्रक्ष संबंध था। रुरोप और अफ्रिका के बीच भूमध्र सागर है। इस भूमध्र सागर के उत्तर (रुरोप) और दक्षिण अफ्रिकावालोंके बीच शत्रुता थी। उत्तरी भागवाले अपनेको सुर/देव मानते थे तथा दक्षिणवालोंको असुर कहा जाता था। आर्रोका संबंध रुरोपके सुमेरु गंधमादन (अल्पस पर्वत, जंबुद्विप, आस्ट्रिरा, हंगेरी, स्वीत्झरलँड क्षेत्र) कॉकेशस पर्वत आदीसे था। मंजूश्री मूलकल्पमें लिखा है कि औड (मग ब्राह्मण) राजा शशांक, जो सोम नामसे भी जाना जाता था, ने वाराणसी तक अपना राज्रविस्तार किरा था। उसीने वाराणसी स्थित सारनाथकी बौध्द मूर्तिरोंकों तोडा था। उसीने विहारों, आश्रमो और अन्र चैत्र स्तुपोंका भी ध्वंश किरा था। पुराणोंमे मिलता है कि ब्राह्मण क्षत्रिर संघर्षमें पराजित होकर ब्राह्मण शशांकके पास पहुचे, जो ब्राह्मण राजा था। उसे धर्मात्मा सोम राजा कहा जाता था। वह स्वरं ब्राह्मण था और ब्राह्मणोंका संरक्षक और बौध्दद्रोही था। शशांक शूर के साम्राज्र का महामात्र था। जो बादमें राजा बन बैठा। इसीने जरवर्धनका वध किरा था। ब्राह्मणोंने कन्नोजके राजा हर्षवर्धनको वधका भी षडरंत्र रचा था, क्रोंकि ब्राह्मण बौध्द राजा हर्षको पसंद नहीं करते थे। मारने के लिरे आरे षडरंत्री पकडे गरे और उन्हें दंडीत किरा गरा। साथही 500 ब्राह्मणों को देशसे भगारा गरा। ब्राह्मणोंकी संस्कृति विषमतावादी, परोपजीवी, शोषक, स्वर्गवादी, अप्सरा, सुरा, मांसाहारी रज्ञ, स्वैराचारी, वर्ण, ईश्‍वर, मोक्षवादी, भोगवादी, वेद दर्शन के विरुध्द है। उनके संस्कृतिके चरित्र नारक कृषक/कुरमी/असुर है, किंतु उन्हें स्वर्गवादी बतारा गरा है। उनका ब्राह्मणीकरण किरा गरा है। ब्राह्मण ठंडी, प्रकृतिके होने के कारण कामशक्ती बढ़ानेके लिरे मांसाहार,सुरापान और स्वैराचार करते थे। सिंधु सभ्रताका इतिहास : पणि नामके सिंधुक्षेत्र के व्रापारी थे। रे व्रापारी फारसकी खाडीसे होकर टारग्रीस और रुफ्राटीस नदीके मुहानेमें पहुच जाते थे। रे वहांसे मेसोपोटोमिरा (इराक) और सिईस्तान (पर्शीरा-इराण) से खूब व्रापार करते थे। पणी का अर्थ पाणीमे जहाजोंद्वारा व्रापार करनेवाले लोग रा व्रापारी। सिंधुराजा का सेनापती उषानस था और सरमा नामकी फितुर महिला थी। इन दोनोंके कारणोंसेही सिंधु राजाका पराभव हुआ था। (सेनापतीने वज्र व इतर हत्रारे इंद्राला दिली व सरमाने परकोटाचे सर्व गुप्त दरवाज्राची माहिती दिली) पाणी रह पणी जनसमुहका प्रतिक है। (पणि = पाणी) सम उच्चारी है। पणी और इंद्र (आर्र प्रमुखमें शत्रुता थी) शंबर राजाने 100 किल्ले निर्माण किरे थे। (अरिवंशी वृत्र था और बल रह सिंधु राजा था) ब्रम्हावृत रह सरस्वती और दृशदवती नदी बीचका आर्रोका राज्र था। वध्रास्व आर्रके पुत्र दिवोदासने सिंधु नगरोंकी लुट की थी। प.रा. देशमुख इतिहासकारने और एस.एल. निर्मोहीने बतारा है कि सिंधु नगरोंके निर्माता पणि, दास, दसु, अहि, अरि, दैत्र, दानव राक्षस सैतान मृधवाच सब एकही समुद्र है और वे आर्रोके शत्रु थे। इसके अलावा सर्प, नाग, वृषारीप्र, दरसिखा, असुर, वृत्र, सुस्न, वर्ची, दावु, विश्‍वरुप सिंधनगरके मुलनिवासी थे। सिंधुनगर परकोटा और खंदकोंसे घेरे हुरे थे। सुमेर = इराक) शिवा, विशनिन, अलिन, भालानस, और पक्थ सिंधुस्थानके लोग थे। हडप्पा के कुल 26 कंकालोमेंसे 21 कंकाल पेडीटेरीरन रानी सिंधुस्थानी है। अफ्रिकी लोग मानव जातीके प्रथम माता-पिता है। लंबे सिखाला मनुष्र भूमध्र समुद्री मानव रानी मेडीटेरिरन अफ्रिकी, लंबे सिखाका भूमध्र समुद्री मेडीटेरिरन रह सिंधुस्थानी है।

G H Rathod

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